वृद्धि अनुमान में कमी के बावजूद भारत तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: संयुक्त राष्ट्र |

वृद्धि अनुमान में कमी के बावजूद भारत तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: संयुक्त राष्ट्र

वृद्धि अनुमान में कमी के बावजूद भारत तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: संयुक्त राष्ट्र

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:38 PM IST, Published Date : May 19, 2022/11:13 am IST

(योषिता सिंह)

संयुक्त राष्ट्र, 19 मई (भाषा) संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है वहीं भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि भी पिछले वर्ष के 8.8 फीसदी की तुलना में कम होकर 2022 में 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है। इसके बावजूद भारत सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है।

रिपोर्ट में कहा गया कि ऊंची मुद्रास्फीति का दबाव और कामगार बाजार में असमान पुनरुद्धार से निजी उपभोग और निवेश प्रभावित हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग ने बुधवार को ‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं (डब्ल्यूईएसपी)’ रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के 2022 में 3.1 फीसदी की दर से वृद्धि करने का अनुमान है जो जनवरी 2022 में जारी 4.0 फीसदी के वृद्धि पूर्वानुमान के मुकाबले कम है। 2022 में वैश्विक मुद्रास्फीति भी 6.7 फीसदी दर से बढ़ने का अनुमान है जो 2010 से 2020 की औसत 2.9 फीसदी के मुकाबले दोगुनी है। खाद्य वस्तुओं और ऊर्जा की कीमतों में भी वृद्धि हो रही है।

इसमें कहा गया, ‘‘भारत की अर्थव्यवस्था के 2022 में 6.4 फीसदी की दर से वृद्धि का अनुमान है जो 2021 की 8.8 फीसदी की वृद्धि दर की तुलना में कम है।’’ वित्त वर्ष 2023 के लिए भारत की वृद्धि अनुमान 6 फीसदी है।

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग में आर्थिक विश्लेषण एवं नीति प्रखंड में वैश्विक आर्थिक निगरानी शाखा के प्रमुख हामिद रशीद ने कहा कि पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया को छोड़कर दुनिया के लगभग सभी क्षेत्र उच्च मुद्रास्फीति से प्रभावित हैं।

रशीद ने कहा इस मामले में भारत कुछ बेहतर स्थिति में है। उन्होंने कहा, ‘‘निकट भविष्य यानी अगले साल में भारत का आर्थिक पुनरुद्धार मजबूत रहने की उम्मीद है। हालांकि जोखिम अभी खत्म नहीं हुआ है।’’

रिपोर्ट में कहा गया कि उर्वरक समेत कृषि उत्पादों की ऊंची कीमतों और इनकी कमी के कारण बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका में कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा।

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