चंडीगढ़, 28 जुलाई (भाषा) जाने-माने अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली एक समिति ने पंजाब सरकार से बिजली क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाने की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि सब्सिडी समेत मुफ्त बिजली की मौजूदा वित्तीय गतिविधियां लंबे समय तक चलने वाली नहीं हैं और इससे आने वाली पीढ़ी को नुकसान होगा।
पिछले साल गठित समिति में अर्थशास्त्री और उद्योग विशषज्ञ शामिल हैं। इसका गठन पंजाब के लिये कोविड के बाद की मध्यम और दीर्घावधि आर्थिक रणनीति तैयार करने के लिये किया गया था।
समिति के अनुसार 15वें वित्त आयोग (एफएफसी) ने मुफ्त बिजली से सिंचाई के माध्यम से भूजल के बड़े पेमाने पर दोहन को बढ़ावा मिलने की बात कही है।
उसने कहा, ‘‘पहली रिपोर्ट में हमने बिजली क्षेत्र में सुधार करने की आवश्यकता की बात कही थी। पंजाब सरकार ने कहा था कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘हम मानते हैं कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था के विचार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं लेकिन यह भी स्वीकार करना आवश्यक है कि मौजूदा वित्तीय गतिविधियां टिकाऊ व्यवस्था नहीं है और भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान पहुंचाएगी। हम दृढ़ता से यह सिफारिश करेंगे कि राज्य सरकार को बिजली क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘राज्य के बजट पर बिजली सब्सिडी के बोझ को कम करने का एक तरीका कृषि उत्पादों के उत्पादन की लागत में बिजली की लागत को शामिल करना और उसके अनुसार एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) बढ़ाना हो सकता है। यदि ऐसा किया जाता है तो सब्सिडी का भुगतान खाद्य सब्सिडी के हिस्से के रूप में किया जाएगा।’’
उल्लेखनीय है कि किसानों को मुफ्त बिजली सहित पंजाब का बिजली सब्सिडी बिल 10,000 करोड़ रुपये से अधिक आंका गया है।
हाल में सौंपी गयी रिपोर्ट में विशेषज्ञों के समूह ने कहा है कि पंजाब वर्तमान में ‘सबसे अधिक वित्तीय दबाव वाले राज्यों में से एक’ है, जहां पूंजी व्यय का स्तर न्यूनतम है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘जब तक इस स्थिति को अगले कुछ वर्ष में ठीक नहीं किया जाता है, तब तक पंजाब का पहले जो दर्जा रहा है, उसे उस स्थिति में लाने के उद्देश्य को हासिल करना संभव नहीं होगा।’’
भाषा रमण मनोहर
मनोहर
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