नाबार्ड ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये जीवा कार्यक्रम शुरू किया |

नाबार्ड ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये जीवा कार्यक्रम शुरू किया

नाबार्ड ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये जीवा कार्यक्रम शुरू किया

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:58 PM IST, Published Date : February 9, 2022/8:23 pm IST

नयी दिल्ली, नौ फरवरी (भाषा) राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बुधवार को पर्यावरण अनुकूल खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने के लिये जीवा कार्यक्रम शुरू किया। यह नाबार्ड के 11 राज्यों में जारी जलविभाजक (वाटरशेड) और वाडी (आदिवासी विकास से जुड़ी परियोजनाएं) कार्यक्रमों के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देगा।

नाबार्ड के चेयरमैन जी आर चिंताला ने योजना शुरू किये जाने के मौके पर आयोजित ‘ऑनलाइन’ कार्यक्रम में कहा, ‘‘जीवा जल विभाजक कार्यक्रम कई परियोजनाओं की परिणति है … इसे 11 राज्यों में हमारे मौजूदा पूरी हो चुकी या पूरा होने के करीब पहुंचे वाटरशेड और वाडी कार्यक्रमों के तहत लागू किया जाएगा। इसमें पांच भौगाोलिक क्षेत्र शामिल हैं। ये क्षेत्र पर्यावरण के हिसाब से नाजुक और वर्षा सिंचित क्षेत्र हैं।’’

उन्होंने कहा कि जीवा का उद्देश्य टिकाऊ आधार पर पारिस्थितिकी अनुकूल कृषि के सिद्धांतों को सुनिश्चित करना है और कृषकों को प्राकृतिक खेती के लिये प्रोत्साहित करना है। इसका कारण यह है कि इन क्षेत्रों में व्यावसायिक खेती काम नहीं कर सकती है।

नाबार्ड प्रमुख ने कहा, ‘‘हम इस कार्यक्रम के तहत प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये का निवेश करेंगे। जीवा कार्यक्रम को 11 राज्यों में 25 परियोजनाओं में पायलट आधार पर लागू किया जाएगा…।’’

नाबार्ड जीवा के लिये राष्ट्रीय और बहुपक्षीय एजेंसियों के साथ गठजोड़ करेगा।

चिंताला ने कहा कि नाबार्ड साधारण मृदा पानी निगरानी तकनीक को लेकर ऑस्ट्रेलिया स्थित राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान संगठन (सीएसआईआरओ) और प्राकृतिक खेती गतिविधियों के वैज्ञानिक सत्यापन के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ अनुसंधान सहायता के लिए सहयोग करेगा।

इस अवसर पर मौजूद नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक चुनौती है और अब इसके बारे में सोचना काफी नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें इससे निपटने को लेकर कदम उठाने की जरूरत है। हमें कार्बन को वापस मिट्टी में डालने के उपाय करने की जरूरत है। मुझे प्राकृतिक खेती को छोड़कर अब तक किसी अन्य तकनीक के बारे में पता नहीं है जो ऐसा कर सके।’’

भाषा

रमण अजय

अजय

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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