Exclusive Interview of CM Bhupesh Baghel on ibc24

CM भूपेश बघेल का Exclusive Interview : बोले- मैं तय नहीं करूंगा कि मेरा बेटा राजनीति में आए, संघ उग्रवादी संगठन, चुनाव में कटेंगे कईयों के टिकट, पढ़ें विस्तृत साक्षात्कार

नरवा, घुरुवा, गरुवा, बाड़ी को लेकर सरकार बहुत सक्रिय है। यह हमारी अग्रणी योजनाओं में है। मैं इसे सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इंजन नहीं मानता बल्कि यह कस्बाई इलाकों तक रोजगार का साधन बन रही है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:12 PM IST, Published Date : September 1, 2022/5:22 pm IST

Exclusive Interview of CM Bhupesh Baghel on ibc24: रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आईबीसी-24 के साथ खास बातचीत में कहा, मेरे परिवार से कोई सदस्य राजनीति में नहीं है। मेरा पैतृक काम खेती है। मैंने बेटे को बोला है वह खेती सीखे। बेटियां अपने-अपने घरों में उनके अनुसार काम करेंगी। वे राजनीति में आएंगे या नहीं, वे स्वयं तय करेंगे। मैं न सपोर्ट करूंगा न विरोध। संघ की विचारधारा उग्रवादी पैदा करती है। हिंदू दुनिया की सबसे समावेषी कौम है। भाजपा असहमतियों को विरोध मानती है। जबकि हमारी संस्कृति में चार्वाक भी स्वीकार्य हैं। उन्हें भी ऋषि माना गया है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति समृद्ध और विराट संस्कृति है। मैं तो इसे जीता हूं। लोगों के मन में इसे लेकर गौरव भाव जगाया है। पेश हैं सह-कार्यकारी संपादक बरुण सखाजी के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विस्तृत बातचीत।    >>*IBC24 News Channel के WHATSAPP  ग्रुप से जुड़ने के लिए  यहां CLICK करें*<<

बरुण सखाजीः नरवा, घुरुवा, गरुवा, बाड़ी ने देशभर में सुर्खियां बटोरीं, इसके अब तक के प्रदर्शन से आप कितने संतुष्ट हैं या और आगे गुंजाइश है? क्या यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इंजन बन पा रही है?

भूपेश बघेलः बहुत अच्छा सवाल है बरुण जी। नरवा, घुरुवा, गरुवा, बाड़ी को लेकर सरकार बहुत सक्रिय है। यह हमारी अग्रणी योजनाओं में है। मैं इसे सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इंजन नहीं मानता बल्कि यह कस्बाई इलाकों तक रोजगार का साधन बन रही है। सबसे पहले हम नरवा की बात करेंगे। नरवा यानी गांव में जलस्रोत। यह हमारी संस्कृति का सबसे अहम हिस्सा रहा है। इसके माध्यम से हम भूजल बढ़ा रहे हैं। जानवरों, जंगलों की पानी की जरूरत पूरी कर रहे हैं। पूरे प्रदेश में हमने वर्षा जल बचाने में कीर्तीमान बनाए हैं। इसलिए यह सिर्फ गांव की योजना के रूप में न समझें। इससे जो रोजगार के अवसर सृजन हो रहे हैं वे नगरीय क्षेत्रों पर भी असर डाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ 44 फीसद वनक्षेत्र वाला राज्य है। यहां मानव-वन्य पशु संघर्ष न हो। इसमें भी यह योजना सहायक हो रही है। जंगल के अंदर जानवरों को पानी मिल रहा है। वे शहरों, गांवों तक नहीं आ रहे। हम लगातार इस पर नजर रखते हैं। देखते हैं राज्य में भूजल का स्तर बढ़ाने में इस योजना ने प्रामाणिक कदम उठाए हैं। अब बात करते हैं घुरुवा की। इसमें आपने देखा बरुण जी हमने प्रदेशभर में ऑर्गेनिक खाद पर काम किया। इससे एक तरफ जहां रोजगार मिल रहा है तो वहीं नगरीय क्षेत्रों तक में सब्जियां अच्छी गुणवत्ता की आ रही हैं। इस तरह से हम देखें तो स्वास्थ्य को भी एड्रेस कर रहे हैं। गरुआ में सड़कों पर गायें नहीं हैं। गायों और गौवंशों को आश्रय मिल रहा है। गौपालन बढ़ रहा है। किसान अब गायों, भैंसों को पुरानी संस्कृति की तरह ही अपना धन मानने लगे हैं। ऐसे ही जब हम बाड़ी की बात करते हैं तो यह अहम है। घर-घर सब्जी हो और वह भी ऑर्गेनिक तो कितना अच्छा। कई ऐसे इलाके हैं जहां सब्जी नहीं होती, भले ही मुर्गा मिल जाता। वैसी जगहों पर भी सब्जी मिल रही है। तो मैं कहूंगा यह सिर्फ गांव की योजना नहीं है। यह सबके काम की है। सबके लिए है और इसके नतीजे बहुत अच्छे हैं। मैं मानता हूं कि इसमें सतत काम करने की जरूरत है। राज्य की हर पंचायत तक इसे लेकर जाएंगे। वहां इससे जुड़ा इफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहे हैं।

बरुण सखाजीः आपकी छवि संस्कृतिप्रेमी मुख्यमंत्री की है, क्या ऐसी कोई योजना पर काम करेंगे, जिससे संस्कृति प्रेमियों को प्रश्रय मिले?

भूपेश बघेलः संस्कृति को लेकर मेरी कोशिश होती है कि छत्तीसगढ़िया विचार और भाव लोगों में गौरव के रूप में हो। यह हमारा पिछड़ापन या हीनता नहीं बल्कि हमारी ताकत है। मैं मानता हूं इसे मैं आगे लेकर जाने की कोशिश कर रहा हूं। सरकार अपने हर व्यवहार में एक आम छत्तीसगढ़िया के भाव को आगे रखती है। यह सरकार उन सबकी है जो इस भाव के साथ काम करते हैं। गांव-गांव में लोगों में अब गौरव का भाव लौटा है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति पर इतना काम हुआ नहीं था। अब हम इसे प्राथमिकता में रखते हैं। हमार साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों ने लगातार लिखा है। हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए काम भी किया है, लेकिन राजनीतिक मैदान में इसकी शून्यता थी। जहां तक संस्कृतिकर्मियों के लिए काम की बात है तो सरकार प्रदेशभर में ऐसा माहौल बना रही है जिससे उन्हें सम्मान मिल रहा है। उनके लिए नए अवसर खुल रहे हैं।

बरुण सखाजीः आत्मानंद स्कूलों को आम स्कूलों से अलग बनाए रखने के लिए क्या प्लानिंग है?

भूपेश बघेलः इन स्कूलों को लेकर सरकार बहुत सक्रिय है। आत्मानंद स्कूल में हम सिर्फ अधोसंरचना की बात नहीं कर रहे बल्कि बच्चों के लिए फ्रैंडली सिलेबस और शिक्षा की पैडोगॉजी की भी बात कर रहे हैं। शिक्षकों को हर स्तर की ट्रेनिंग की बात कह रहे हैं। इनके प्रशिक्षण के लिए विदेश भी भेजना पड़े तो भेजेंगे। वे जितना समृद्ध शिक्षा को कर सकते हैं हम उन्हें सपोर्ट करेंगे। यह चूंकि सतत चलने वाली प्रक्रिया है। इसलिए इसके कोई मुकाम नहीं होते। माइलस्टोन होते हैं। जो हम हासिल करते रहेंगे। प्रयास है कि यह दुनियाभर में एक मॉडल बनकर उभरें।

बरुण सखाजीः आपने मेरे साथ ही मरवाही उपचुनाव के दौरान एक साक्षात्कार में कहा था केंद्र धान से एथनॉल की इजाजत दे, कीमतें खुले बाजार में भी पर्याप्त मिलने लगेंगी। ये आपका सपना है। राज्य में इन्हें क्या सहूलियतें मिल रही हैं?

भूपेश बघेलः राज्य की ओर से हर संभव मदद की जा रही है। इसमें केंद्र की एक नीति अड़चन डाल रही है। केंद्र ने धान से एथनॉल बनाने की इजाजत व्यापारियों को हर साल लेने का प्रावधान कर रखा है। इससे कई व्यावसायी झिझक रहे हैं। चूंकि इसका प्लांट करोड़ों का होता है। किसी ने लगाया और अगले साल अनुमति में कोई रोड़ा आ गया तो नुकसान होगा। हमने इस संबंध में हाल ही में मध्य क्षेत्र की बैठक में इस मसले को उठाया था। केंद्र को इस संबंध में जल्दी निर्णय करना चाहिए। हम सबको सहूलियतों उपलब्ध करवा रहे हैं। उद्योगपति आएं और प्लांट लगाएं। यह तो मेरी प्राथमिकता है।

बरुण सखाजीः केंद्र-राज्य के बीच टकराव के लिए कौन जिम्मेदार है, इसका राज्य पर क्या असर हुआ?

भूपेश बघेलः कोई टकराव नहीं है। इसे टकराव नहीं कहते। मीडिया की भाषा में यह टकराव हो सकता है। क्या मैं छत्तीसगढ़ की बातें केंद्र से न करूं। यह तो सीधी सी बात है। मैं जो कुछ भी छत्तीसगढ़ के लिए अच्छा हो सकता है वह केंद्र से कहता हूं। इसे आप लोग टकराव कहते हैं। अगर अपनी बात रखना टकराव है तो हां यह टकराव है।

बरुण सखाजीः हाल में अमित शाह आए थे, उन्होंने एक जगह बोला राज्य और केंद्र मिलकर नक्सल को हरा देंगे और दूसरी जगह बोला सरकार बदलो चुटकियों में नक्सलवाद खत्म कर देंगे?

भूपेश बघेलः पहला कार्यक्रम सरकारी था, दूसरा उनकी पार्टी का। पार्टी के कार्यक्रम में वे क्या बोलें यह महत्वपूर्ण नहीं। सरकारी कार्यक्रम में क्या बोला यह महत्वपूर्ण है। दलगत टकराव है। वे अपनी बात कहेंगे हम अपनी बात कहेंगे।

बरुण सखाजीः छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री आवास का काम क्यों रुका है?

भूपेश बघेलः इसे ठीक कर लिया गया है। हमने बजट में अपने हिस्से के 800 करोड़ रुपए जारी कर दिए हैं। केंद्र से कुछ करैक्शन के लिए पत्राचार चल रहा है।

बरुण सखाजीः अगले चुनावों में क्या मुद्दे रह सकते हैं, सरकार किन 5 कार्यों को लेकर मैदान में जाएगी?

भूपेश बघेलः हमने किसानों का कर्ज माफ किया। धान की कीमतें बढ़ाईं। बोनस दे रहे हैं। गांव में नरवा, घुरुवा, गरुआ, बाड़ी के माध्यम से रोजगार सृजन किए। बिजली बिल हाफ कर रहे हैं। बिजली, सड़क, पानी के इंतजाम हो रहे हैं। उद्योगों के लिए अच्छा माहौल बना रहे हैं। आत्मानंद स्कूल हैं। इसी पैटर्न पर कॉलेज भी हैं। ऐसे देखेंगे तो 5 नहीं अनेक काम होंगे जिन्हें लेकर चुनाव में जाएंगे।

बरुण सखाजीः हाल ही में प्रदेश भाजपा ने कुछ बदलाव किए हैं, क्या लगता है 2023 की टक्कर अच्छी होने वाली है?

भूपेश बघेलः यह उनका आंतरिक मसला है। आप उनसे पूछिए कि इन बदलावों के बाद क्या छत्तीसगढ़ी लोगों ने उन्हें स्वीकारा है। वे पहले अपना घर ठीक कर लें। मेरे हिसाब से तो छत्तीसगढ़ की जनता भाजपा को पूरी तरह से खारिज कर चुकी है। वे चाहे जो कर लें उनकी स्वीकार्यता ही खतरे में है।

बरुण सखाजीः विधायकों के प्रदर्शन को लेकर क्या पैरामीटर होंगे, 2023 में व्यापक टिकट कटौती जैसे चुनावी राजनीतिक तरीकों पर काम करेंगे?

भूपेश बघेलः जनता के बीच दो चीजों पर जाया जाता है। पहला सरकार कैसा काम कर रही है, दूसरा स्थानीय विधायक कैसे हैं। हम सरकार के रूप में अच्छा काम कर ही रहे हैं। विधायकों से भी लगातार बात करते रहते हैं। हमारे बहुत सारे विधायक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। कुछ हमने मैदान पर फीडबैक लेवल पर काम किया है। कुछ फीडबैक आ रहा है। कुछ और चुनाव के वक्त आएगा। यह सवाल तब पूछिए। आज इसे संख्या में नहीं कहा जा सकता कि कितने कटेंगे, लेकिन जो जीतने वाला नहीं होगा उसे हम टिकट क्यों देंगे? ऐसे ही जो जीतने वाला होगा उसका टिकट नहीं कटेगा। यह एक साधारण चुनावी तैयारी का हिस्सा होता है, कि कुछ के टिकट्स कटते हैं कुछ के नहीं।

बरुण सखाजीः देश में 3 हिंदुत्व चर्चा में हैं, एक भाजपा का, दूसरा पुरी के शंकराचार्य का और तीसरा राहुल गांधी का, आपके हिसाब से ज्यादा सटीक परिभाषा किसकी है और क्यों? बाकी परिभाषाओं पर आपकी क्या राय है।

भूपेश बघेलः भारत की संस्कृति में हिंदू सबसे बड़ी ताकत है। पहले तो सिर्फ हिंदू ही थे, बाद में लोग आते गए और भारत में समाते गए। जो लुटेरे आए थे वे जा चुके हैं। जो यहां के हो गए हिंदुओं ने उन्हें अपने में आत्मसात कर लिया। वे यहीं के हो गए। दुनिया की सिर्फ हिंदू ऐसी कौम है जो सबको अपने जैसा बना लेती है। राहुल जी हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे आरएसएस के उग्रवाद का विरोध करते हैं। संघ सावरकर वाले हिंदुत्व की बात करता है। जबकि यह सच नहीं है। इनकी विचारधारा उग्रवादी बनाती है। हम समावेषी भारत की बात करते हैं। सावरकर जब तक जीवित रहे संघ ने उन पर हाथ नहीं रखा, लेकिन अब उनके नाम पर सियासत करते हैं। भगवान को पाने के अनेक रास्ते होते हैं। हिंदू इकलौती ऐसी कौम है जो सभी रास्तों को मान्यता देती है। स्वयं ही अपने अंदर कितने ही रास्तों पर चर्चा करती है। हिंदू संस्कृति में शैव, वैष्णव, शाक्त कितने ही संप्रदाय हैं। लेकिन सबका लक्ष्य एक ही है। मैं रामकृष्ण परमहंस की बात करता हूं। वे कहते हैं सबका लक्ष्य एक ही है। ऐसे ही बौद्धों में हीनयान, महानयान, वज्रयान हैं। इसाइयों में भी कैथलिक, प्रोटेस्टेंट आदि हैं। मुसलमानों में भी शिया, सुन्नी आदि रास्ते हैं। सभी में अनेक रास्ते हैं। हमारी संस्कृति दुनिया की महान संस्कृति है। हर किसी को हम अपना बनाते हैं। हमारी लड़ाई यही है। संघ की लड़ाई अलग है। वे उग्रवादी पैदा करते हैं। हमारी संस्कृति में तो चार्वाक भी ऋषि होते हैं, जिन्होंने कहा था ऋणं कृत्वा, घृत्व पीवेत। असहमति सिर्फ असहमति है यह किसी का विरोध नहीं। कम से कम झगड़ा तो नहीं। ये लोग असहमति के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ते। आपने बहुत अच्छा सवाल किया। आध्यात्मिक प्रश्नों के जरिए असल में सामाजिक सौहार्द्र पर बात की जा सकती है बरुणजी।

बरुण सखाजीः परिवार से किसे राजनीति में लाएंगे और कब तक?

भूपेश बघेलः यह मैं तय नहीं कर सकता। मैंने मेरे बेटे और बेटियों को बोला, पढ़ो, लिखो, काबिल बनो और जो अच्छा रोजगार माध्यम हो वह करो। हम लोग माता-पिता के तौर पर अपनी क्षमता से जो आपको आपके लक्ष्य के लिए उपलब्ध करा पाएंगे कराएंगे। मैंने तो कहा बेटे से, हमारा पुस्तैनी काम खेती है, खेती सीखो और करो। मैं न तो उन्हें यह कहूंगा कि राजनीति में आ जाओ न यह कहूंगा कि राजनीति में मत आओ। उन्हें आना होगा तो आएंगे नहीं आना होगा तो नहीं आएंगे। न मैं सपोर्ट करूंगा न विरोध। बेटियां भी अपने-अपने घरों में कोई जॉब करेगी कोई जो उनके घरों में तय होगा वह करेंगी।

बरुण सखाजीः जीवन के ऐसे पल कौन से हैं, जिनमें आप बहुत भावुक हुए हों?

भूपेश बघेलः मैं भावुक हूं। वैसे पल जब कोई दुखी, दीन देखता हूं तो भावुक होता हूं। अपनी क्षमता में उनके लिए कुछ करने की कोशिश करता हूं।

बरुण सखाजीः राजनीति को व्यक्तिगत तौर पर आप क्या मानते हैं, महत्वाकांक्षाओं का साधन, धन साधन, सेवा साधन या रुतबा साधन?

भूपेश बघेलः राजनीति सेवा का साधन है। जब हम कुछ करना चाहते हैं और उसे कर पाते हैं तो उसका एक परिपूर्ण रास्ता राजनीति है। यह धन, संसाधन, रुतबा आदि का साधन कतई नहीं है।

बरुण सखाजीः ऐसे पल कौन से हैं जब आपको अनंत प्रसन्नता महसूस हुई हो?

भूपेश बघेलः जब किसी के काम आता हूं। किसी के दुख, दर्द को देखता हूं। उनके लिए कुछ करने का अवसर मिलता है। जब हमारे करने से उसके चेहरे पर प्रसन्नता आती है तो मुझे संतोष मिलता है। यही मेरी सबसे बड़ी खुशी है।

बरुण सखाजीः कॉलेज जीवन में युवा अनुभूतियों से गुजरे होंगे, कोई अच्छी अनुभूतियां शेयर करना चाहेंगे?

भूपेश बघेलः (हंसते हुए) यह जोरदार सवाल है। साइंस कॉलेज में कोई लड़कियां थी ही नहीं तो मैं क्या करता। मैं कोएड में नहीं पढ़ा।

 

Barun Sakhajee

साक्षात्कारकर्ताः बरूणा सखाजी
सह-कार्यकारी संपादक,IBC24

 

 
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