Employment from natural cocoon

Employment in Natural Whip: सीएम बघेल की पहल से नैसर्गिक कोसा का बंपर उत्पादन, दो लाख से अधिक वनांचलों को मिला रोजगार…

CM Bhupesh Baghel provided employment in forest areas भूपेश सरकार ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए रेशम कीट पालन का दर्जा देकर दिल जीत लिया.

Edited By :   Modified Date:  September 15, 2023 / 12:34 PM IST, Published Date : September 15, 2023/12:33 pm IST

Employment in Natural Whip: रायपुर। भारत में ग्रामीण विकास की वर्तमान रणनीति मुख्य रूप से गरीबी उन्मूलन, बेहतर आजीविका के अवसर, मजदूरी और स्वरोजगार के नवीन कार्यक्रमों के माध्यम से बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान पर केंद्रित है। इसी कड़ी में सीएम भूपेश बघेल प्रदेश के लिए सकारात्मक विचार से अपने छत्तीसगढ़वासियों के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की, जिससे आज प्रदेशवासी आत्मनिर्भर बनने के लिए सक्षम हुए हैं। प्रदेश में यदि हम स्वरोजगार की बात करें तो आज सीएम भूपेश बघेल की विशेष पहल पर रेशम पालन को कृषि का दर्जा मिला है। इसी कड़ी में भूपेश सरकार ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए रेशम कीट पालन एवं मधुमक्खी पालन का दर्जा देकर ग्रामीणों क दिल जीत लिया है।

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नैसर्गिक कोसा से दो लाख से अधिक लोगों को मिले रोजगार

भूपेश सरकार अब रेशम कृषि में किसानों को आर्थिक स्थिति मजबूत करने का मौका दे रही है। रेशम विभाग की ओर से रेशम कीट पालन करके किसान अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। साथ ही भूपेश सरकार के नेतृत्व और ग्रामोद्योग मंत्री गुरु रुद्रकुमार के निर्देशन में विगत पौने पांच साल में रेशम प्रभाग ने दो लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। भूपेश बघेल के नेतृत्व और रेशम प्रभाग में संचालित नैसर्गिक टसर बीज प्रगुणन एवं संग्रहण कार्यक्रम अंतर्गत 2 लाख 5 हजार 565 लोगों को नियमित रोजगार दिया गया।

बता दें कि खेती के साथ-साथ लघु उद्यम के समावेश को बढ़ावा देने का सार्थक पहल करते हुए भूपेश सरकार ने देश का पहला नैसर्गिक कोसा अभयारण्य नया रायपुर अटल नगर में स्थापित किया था। वनांचल के सभी जिलों में नैसर्गिक कोसा उत्पादन के संग्रहण के माध्यम से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों द्वारा आर्थिक लाभ अर्जित किया जा रहा है। इस दिशा में ग्रामोद्योग संचालनालय द्वारा प्राकृतिक वन क्षेत्रों में नैसर्गिक बीज का प्रगुणन कर उसे सघन वन क्षेत्रों में फैलाया जाता है, जिससे वनवासी हितग्राहियों द्वारा नैसर्गिक कोसा संग्रहण कर आय का एक अतिरिक्त साधन प्राप्त कर सके। इस क्षेत्र में निवासरत् परिवार मूलतः वनों पर आधारित उपज का विपणन कर अपना जीविकोपार्जन करते हैं।

नैसर्गिक कोसा से सुधरेगी ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति

सीएम भूपेश बघेल की विशेष पहल से नैसर्गिक कोसा से रोजगार के क्षेत्र में काफी बेहतर अवसर मिल रहे हैं। वहीं बुनकरों की मांग और आपूर्ति की समस्या का समाधान भी हो रहा है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए रेशम पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है, छत्तीसगढ़ में इसके लिए सिल्क समग्र योजना-2 शुरू की गई है। इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए राज्य के 14 जिलों के रेशम अधिकारियों के तकनीकी उन्नयन के लिए केन्द्रीय रेशम बोर्ड बेंगलूरू और ग्रामोद्योग विभाग के रेशम प्रभाग के संयुक्त तत्वाधान में 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है।

किसानों की प्रशिक्षण के लिए मिल रहा अधिकारियों का सहयोग

Employment in Natural Whip: एक मई से शुरू हुए प्रशिक्षण में अधिकारियों को किसानों को सहायता, कृषकों को प्रशिक्षण, विस्तार प्रबंधन, रेशम उत्पादन एवं व्यावसायिक उद्देश्य, क्लस्टर एप्रोच, शहतूती पौधों का विकास एवं प्रबंधन, रेशम विस्तार कृषकों के यहां बुनियादी सुविधाओं का विकास, अधोसंरचनाओं का निर्माण, शहतूत पौधों के रोग एवं कीट प्रबंधन, रेशम कीट पालन प्रबंधन एवं सावधानियां की जानकारी दी जा रही है। इस प्रशिक्षण में जशपुर, सरगुजा, बलरामपुर, सूरजपुर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, रायपुर, मुंगेली, बिलासपुर, कांकेर, बस्तर, नारायणपुर, कोण्डागांव जिलों से जिला अधिकारी एवं प्रक्षेत्र अधिकारी शामिल हैं। उक्त सभी जिलों के वन खण्डों में प्राकृतिक रूप से साल, साजा, सेन्हा, धौरा, बेर के वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इन वृक्षों में टसर कोसा की रैली, लरिया एवं बरफ प्रजाति के कोसाफल नैसर्गिक रूप से उत्पादित होते हैं।

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जानें कैसे पाला जाता है रेशम कीट?

अच्छा उत्पादन करने के लिए तीन तरीके से रेशम कीट पालन किया जा सकता है, जिसमें शहतूत के बाग में रेशम कीट पालन, जिसे मलबरी सिल्क कहते हैं। दूसरा टसर खेती और तीसरा एरी खेती। मलबरी सिल्क खेती के तहत शहतूत और अर्जुन के पत्तों पर रेशम के कीड़ों को पाला जाता है, जो शहतूत और अर्जुन के पत्ते खाकर जीवित रहते हैं।

जानें रेशम के कीट से क्या बनता है?

लार्वा हवा के संपर्क में आने पर बनता है धागा, इसके बाद तीन से आठ दिनों तक यह रेशम कीट अपने मुंह से एक तरल प्रोटीन को निकालता है, जो हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाता है और एक धागे का रूप ले लेता है, जिसके बाद इस धागे से एक बॉल आकार का बन जाता है। जिसे कोकून कहा जाता हैं, जिससे रेशम को तैयार किया जाता है।

 

 

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