अंबाला, 14 अगस्त (भाषा) हरियाणा में अंबाला की रहने वाली 94 वर्षीय कैलाश रानी विभाजन के भयानक मंजर को याद कर आज भी सिहर उठती हैं।
रानी और उनके परिवार को विभाजन के दौरान पाकिस्तान के रावलपिंडी से निकलने को मजबूर होना पड़ा था। उस दिन को याद करते हुए वह कहती हैं, ‘‘हर जगह खून-खराबा हुआ..ट्रेन में सवार हर दूसरा व्यक्ति किसी प्रियजन के खोने का शोक मना रहा था।’’
रानी ने रविवार को यहां कहा, ‘‘हमारे साथ आए कई करीबी रिश्तेदारों को कुछ युवकों ने मार डाला।’’
उन्होंने कहा कि उनके कारोबारी पति सूरज प्रकाश को भी सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का सामना करना पड़ा, जिसके बाद परिवार ने रावलपिंडी छोड़ने का फैसला किया।
बुजुर्ग महिला ने कहा, ‘‘हमारा परिवार संपन्न था और वहां हम एक पॉश कॉलोनी में रहते थे। अचानक, दंगे भड़क उठे और हमें रावलपिंडी छोड़ना पड़ा।’’
उन्होंने कहा कि उस समय स्थिति इतनी खराब थी कि वे लोग अपने साथ कोई कीमती सामान नहीं ले जा सकते थे।
रानी ने कहा, ‘‘हमने अपने सोने के गहनों को घर के एक कोने में यह सोचकर दबा दिया था कि कुछ साल बाद स्थिति सामान्य होने के बाद उन्हें वापस ले लेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, हम 75 वर्षों में अपने पैतृक घर वापस नहीं जा पाए। हमें यह भी नहीं पता कि क्या रावलपिंडी में हमारा घर अभी भी मौजूद है?’’
रानी ने कहा कि वह और उनका परिवार रेलवे स्टेशन पहुंचने में कामयाब रहे और भारत जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए।
उन्होंने कहा, ‘‘ट्रेन में अराजकता और भय का माहौल था। ट्रेन शरणार्थियों से भरी हुई थी। भगवान का शुक्र है कि हम सुरक्षित अंबाला पहुंच गए।’’
आज उनके छह बेटे और तीन बेटियां खूब साधन संपन्न हैं । कहते हैं कि वक्त हर घाव को भर देता हैलेकिन रानी के लिए तो वक्त 75 साल पहले विभाजन की घड़ी पर ही अटका हुआ है। वह कहती हैं, ‘‘मैं बंटवारे के दिनों को नहीं भूल सकती । वे यादें आज भी मेरे दिलो दिमाग में हैं ।’’
भाषा शफीक नरेश
नरेश
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