सोरेन के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की शाह से मुलाकात, जाति आधारित जनगणना की मांग |

सोरेन के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की शाह से मुलाकात, जाति आधारित जनगणना की मांग

सोरेन के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की शाह से मुलाकात, जाति आधारित जनगणना की मांग

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:02 PM IST, Published Date : September 26, 2021/8:15 pm IST

नयी दिल्ली, 26 सितंबर (भाषा) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने रविवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और मांग की कि देश में जाति आधारित जनगणना करायी जाए।

यह दौरा ऐसे समय हुआ है, जब केंद्र ने कुछ ही दिन पहले उच्चतम न्यायालय में कहा था कि पिछड़े वर्गों की जाति आधारित जनगणना ‘‘प्रशासनिक रूप से कठिन और दुष्कर’’ है और जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग रखना ‘‘सतर्क नीतिगत निर्णय’’ है।

सोरेन के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस की झारखंड इकाई के अध्यक्ष राजेश ठाकुर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य दीपक प्रकाश, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, आजसू अध्यक्ष एवं पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश महतो और राजद नेता सत्यानंद भोका शामिल थे।

सोरेन ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम सभी ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उनसे यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि जाति आधारित जनगणना हो। हमने उन्हें जाति आधारित जनगणना के समर्थन में अपने राज्य की भावनाओं से अवगत कराया।’’

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को धैर्यपूर्वक सुना और आश्वासन दिया कि वह ‘‘मामले को देखेंगे।’’

भाजपा के दीपक प्रकाश पत्रकारों के इस सवाल का सीधा जवाब देने से बचते दिखे कि क्या उनकी पार्टी जाति जनगणना का समर्थन करती है। उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा भी इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थी। हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पिछड़े वर्ग के लोगों की शुभचिंतक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार ने ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया और मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण भी दिया। भाजपा और उसकी सरकार पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ खड़ी है।’’

प्रकाश ने कहा कि उनकी पार्टी लगातार ओबीसी के कल्याण के लिए काम कर रही है।

सोरेन के नेतृत्व वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भाकपा-माले नेता विनोद सिंह, भाकपा के भुवनेश्वर मेहता, माकपा के सुरेश मुंडा, राकांपा विधायक कमलेश सिंह और एमसीसी नेता अरूप चटर्जी भी शामिल थे।

सोरेन ने शाह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक पत्र भी सौंपा जिसमें मांग की गई है कि प्रस्तावित 2021 की जनगणना के दौरान जाति आधारित जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण किया जाए। पत्र पर प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं।

इसमें कहा गया है, ‘‘आजादी के बाद से कराए गए जनगणना सर्वेक्षणों में जातिगत आंकड़ों की कमी के कारण पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष लाभ प्राप्त करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘2021 में प्रस्तावित जनगणना में, केंद्र सरकार ने एक लिखित रिकॉर्ड के माध्यम से संसद को सूचित किया है कि वह जाति जनगणना नहीं करेगी, जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं’’ इसमें कहा गया है कि यह पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए अनुचित है और वे अपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहे हैं।

पत्र में लिखा है, ‘‘यदि अभी जातिगत जनगणना नहीं की गई तो पिछड़ी/अति पिछड़ी जातियों का न तो शैक्षिक, न ही सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक स्थिति का ठीक से आकलन होगा। इससे उनकी बेहतरी के लिए एक सही नीति तैयार करने में बाधा आएगी।’’

पत्र में, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि जाति आधारित जनगणना समाज में असमानताओं को दूर करने में मदद करेगी।

इसमें लिखा है, ‘‘भारत में, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के लोगों ने सदियों से आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन का खामियाजा भुगता है। आजादी के बाद, विभिन्न वर्गों ने विभिन्न गति से विकास किया है जिसके परिणामस्वरूप अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी हो गई है।’’

प्रतिनिधिमंडल ने पत्र में लिखा गया है कि भारत में आर्थिक असमानता का जाति के साथ ‘बहुत मजबूत’ संबंध है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े भी होते हैं।

पत्र में कहा गया है, ‘‘ऐसी स्थिति में इन असमानताओं को दूर करने के लिए जाति आधारित आंकड़ों की जरूरत है। जाति आधारित जनगणना कराने से देश के नीति निर्माण में कई फायदे होंगे।’’

केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया है कि केंद्र ने पिछले वर्ष जनवरी में एक अधिसूचना जारी करके जनगणना 2021 के लिए जुटाई जाने वाली सूचनाओं का ब्योरा तय किया था और इसमें अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से जुड़ी सूचनाओं सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया, लेकिन इसमें जाति के किसी अन्य श्रेणी का जिक्र नहीं किया गया है।

इसने कहा कि जनगणना के दायरे से किसी अन्य जाति के बारे में जानकारी को बाहर करना केंद्र सरकार द्वारा लिया गया एक ‘सतर्क नीतिगत निर्णय’ है।

उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे के मुताबिक, सरकार ने कहा है कि सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना (एसईसीसी), 2011 में काफी गलतियां एवं अशुद्धियां थीं।

भाषा अमित नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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