child marriage: नई दिल्ली। देश में बाल विवाह के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। जैसा कि सभी जानते हैं… भारत में बाल विवाह के खिलाफ सख्त कानून है। इसके बावजूद देश के कई हिस्सों में ये प्रथा आज भी प्रचलित है। लेकिन क्या सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की ही कम उम्र में शादी होती है? या फिर इससे कहीं ज्यादा हिंदुओं में आज भी बाल विवाह का प्रचलन जारी है। वहीं इस बढ़ते मामले को देखते हुए बाल विवाह के खिलाफ असम में जोरदार अभियान चलाया जा रहा है।
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बाल विवाह के इस गंभीर समस्या को देखते हुए असम सरकार ने बाल विवाह पर रोक लगाने के मकसद से मुस्लिम विवाह और तलाक से जुड़े 1935 के कानून को खत्म कर दिया है। 23 फरवरी को मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने फैसला लिया है। ये समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक सोशल मीडिया पर लिखा कि असम कैबिनेट ने सालों पुराने असम मुस्लिम विवाह एवं तलाक पंजीकरण कानून वापस लेने का एक बड़ा फैसला लिया है। यह राज्य में बाल विवाह रोकने की दिशा में अहम कदम है। सीएम हिमंत बिस्वा ने ये भी कहा कि अगर लड़का और लड़की शादी की कानूनी उम्र (लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल) तक नहीं पहुंचे हैं, तो भी उनकी शादी करा दी जाती थी। लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ मुस्लिम विवाह का सालों पुराना कानून निरस्त करने से बाल विवाह की समस्या खत्म हो जाएगी?
भारत में बाल विवाह की समस्या गंभीर है। दुनिया के 40% से ज्यादा बाल विवाह भारत में ही होते हैं। यहां लगभग आधी लड़कियों की 18 साल से पहले ही शादी कर दी जाती है। वैसे तो हाल के दशकों में बाल विवाह की समस्या में कमी आई है। 1993 में जहां 49% लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती थी, वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर 22% हो गया है।
ये आंकड़े भले ही सकारात्मक है, लेकिन पूरे देश में बाल विवाह की समस्या अभी भी गंभीर है। 2021 में भी लगभग हर पांचवीं लड़की और हर छठे लड़के का विवाह 18 साल से कम उम्र में ही हो जाता है। यानी 2021 में लगभग 135 लाख लड़कियां और 14 लाख लड़के बाल विवाह के शिकार बने।
अब भी कुछ चार-पांच राज्यों में देश के आधे से ज्यादा लड़के-लड़कियों का बाल विवाह होता है। इनमें बिहार, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सबसे ऊपर हैं। गांवों में शहरों के मुकाबले बाल विवाह की समस्या ज्यादा गंभीर है। गांव में 56% और शहरों में 29% लड़कियों का विवाह 18 साल से पहले हो जाता है।
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लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल ने 1993 से 2021 तक 5 बार (1993, 1999, 2006, 2016, 2021) हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की है। अनुमान के अनुसार, 2021 में बाल विवाह की शिकार हुई लड़कियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 34 लाख 64 हजार 450 थी, जबकि लड़कों की संख्या लगभग 14 लाख 54 हजार 894 थी।
लड़कियों के बाल विवाह मामले में कुल आंकड़ों का आधे से ज्यादा हिस्सा सिर्फ चार राज्यों में पाया गया- बिहार (16.7%), पश्चिम बंगाल (15.2%), उत्तर प्रदेश (12.5%), और महाराष्ट्र (8.2%)। वहीं लड़कों के लिए ये आंकड़े गुजरात (29.0%), बिहार (16.5%), पश्चिम बंगाल (12.9%) और उत्तर प्रदेश (8.2%) में सबसे ज्यादा थे।
लड़कियों की कम उम्र में शादी करने के मामले में असम 11वें नंबर का राज्य है। सर्वे के अनुसार, यहां 2021 में 5 लाख 9 हजार 557 लड़कियों का बाल विवाह हुआ। ये आंकड़ा देश की कुल लड़कियों के बाल विवाह का 3.8% है। 1993 में असम में बाल विवाह के 4 लाख 50 हजार 447 मामले देखे गए थे। यानी कि 30 सालों में यहां 13 फीसदी मामले बढ़ गए।
child marriage: किसी भी समुदाय की तीन विवाहित महिलाओं में से एक की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है। सबसे ज्यादा 31.3 फीसदी हिंदू महिलाएं और फिर उसके बाद 30.6 फीसदी मुस्लिम लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी गई। उनमें से कई लड़कियों 10 साल की भी नहीं हुईं थी। 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन महिलाओं का आंकड़ा कम था। केवल 6 फीसदी पुरुषों की शादी 18 साल से पहले हुई थी। सभी हिंदू महिलाओं में से 6 फीसदी की शादी 10 साल की उम्र से पहले हो गई थी।
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