संगठन को प्रतिबंधित करना समाधान नहीं, उन्हें राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने की जरूरत : येचुरी |

संगठन को प्रतिबंधित करना समाधान नहीं, उन्हें राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने की जरूरत : येचुरी

संगठन को प्रतिबंधित करना समाधान नहीं, उन्हें राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने की जरूरत : येचुरी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:40 PM IST, Published Date : September 28, 2022/4:12 pm IST

तिरुवनंतपुरम, 28 सितंबर (भाषा) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी ने बुधवार को कहा कि पॉपुरल फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाना समाधान नहीं है बल्कि बेहतर विकल्प यह होता कि उन्हें राजनीतिक रूप से अलग-थलग कर उनकी आपराधिक गतिविधियों के खिलाफ सख्त प्रशासनिक कार्रवाई की जाती।

अपनी पार्टी के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) द्वारा शासित केरल पर भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा द्वारा “आतंकवाद का गढ़” होने का आरोप लगाए जाने पर पलटवार करते हुए येचुरी ने उनसे (नड्डा से) “प्रतिशोध के चलते मार डालने के चलन’’ पर रोक लगाने और राज्य प्रशासन को चरमपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने की इजाजत देने के लिये कहा।

वामपंथी नेता ने कहा कि नड्डा अगर केरल को आतंकवाद व उपद्रवी तत्वों का गढ़ बनने से रोकना चाहते हैं तो “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करना, नफरत फैलाना, आतंक और बुलडोजर की राजनीति” जवाब नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि आरोप लगाना आसान है, लेकिन अगर वह चाहते हैं कि राज्य प्रशासन कार्रवाई करे तो उन्हें (आरोपों को) साबित करने के लिये साक्ष्य दिखाना होगा।

संवाददाताओं से बातचीत में येचुरी ने कहा कि बुलडोजर की राजनीति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति से उपद्रवी संगठनों और उनकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिये अनुकूल माहौल बनेगा।

उन्होंने कहा, “भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि केरल आतंकवाद का गढ़ है। अगर वह इस तरह के आतंकवाद को रोकना चाहते हैं तो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उसकी, प्रतिशोध के चलते की जाने वाली हत्याओं को रोकने के लिए कहना चाहिए। राज्य प्रशासन को कार्रवाई करने दीजिए। राज्य प्रशासन चरमपंथी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा, चाहे वह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) हो या कोई अन्य।”

उन्होंने कहा, “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने, नफरत और आतंक फैलाने और बुलडोजर की राजनीति भारत की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करने का जवाब नहीं थी। यह केवल चरमपंथी संगठनों और उनकी गतिविधियों के विकास के लिए माहौल बनाने का काम करती है।”

उन्होंने सुझाया कि समाधान प्रतिबंध नहीं बल्कि ऐसे संगठनों का “राजनीतिक अलगाव” और प्रशासन द्वारा उनकी आपराधिक व अवैध गतिविधियों के खिलाफ बेहद सख्त कार्रवाई है।

उन्होंने कहा, “इस समस्या से निपटने के लिये प्रतिबंध समाधान नहीं है। हमने देखा है कि हमारा अपना अनुभव और भारत का अनुभव क्या रहा है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ को तीन बार प्रतिबंधित किया गया था। क्या कुछ हुआ? नफरत और आतंक के ध्रुवीकरण अभियान, अल्पसंख्यक विरोध, अल्पसंख्यकों का नरसंहार, ये सब जारी है।”

भाषा

प्रशांत मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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