बोफोर्स मामला: उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका पर जल्द सुनवाई को लेकर अर्जी दाखिल |

बोफोर्स मामला: उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका पर जल्द सुनवाई को लेकर अर्जी दाखिल

बोफोर्स मामला: उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिका पर जल्द सुनवाई को लेकर अर्जी दाखिल

:   Modified Date:  March 9, 2024 / 05:43 PM IST, Published Date : March 9, 2024/5:43 pm IST

नयी दिल्ली, नौ मार्च (भाषा) राजनीतिक रूप से संवेदनशील 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स घूस कांड में हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ लगाए गए आरोप समेत सभी आरोपों को रद्द करने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय में में एक अर्जी दाखिल की गई है।

अधिवक्ता अजय अग्रवाल की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने दो नवंबर, 2018 को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की अर्जी खारिज कर दी थी। इसमें यह भी कहा गया है कि जांच एजेंसी उस फैसले के खिलाफ उनके द्वारा दायर अपील में सभी आधार उठा सकती है।

अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने 2005 में ही उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी और मामला सामने आने के बाद तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है।

अर्जी में कहा गया है, ‘‘आवेदक द्वारा इस मामले को दायर करने के लगभग 16 साल बीत चुके हैं और इस घोटाले को हुए 35 साल बीत चुके हैं। हिंदुजा बंधुओं को छोड़कर इस बीच सभी आरोपी व्यक्तियों की मौत हो चुकी है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘रक्षा क्षेत्र में घोटालों की पुनरावृत्ति हुई है, क्योंकि इस पहले घोटाले यानी बोफोर्स घोटाले के आरोपियों को सजा नहीं दी गई। न्याय के हित में यह उचित होगा कि मामले की जल्द सुनवाई की जाए।’’

शीर्ष अदालत ने दो नवंबर, 2018 के अपने आदेश में उच्च न्यायालय के 31 मई, 2005 के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में 13 साल की देरी को माफ करने की मांग करने वाली सीबीआई की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह एजेंसी की ओर से प्रस्तुत किये गये आधारों से संतुष्ट नहीं है।

उच्च न्यायालय ने 2005 के अपने फैसले में तीन हिंदुजा बंधुओं- एसपी हिंदुजा, जीपी हिंदुजा और पीपी हिंदुजा तथा बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था।

वर्ष 2005 के फैसले से पहले उच्च न्यायालय ने चार फरवरी, 2004 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस मामले में दोषमुक्त कर दिया था और एबी बोफोर्स के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहत जालसाजी का आरोप तय करने का निर्देश दिया था। पूर्व में स्वीडिश हथियार निर्माता कंपनी रही एबी बोफोर्स अब ब्रिटेन की कंपनी बीएई सिस्टम्स का हिस्सा है।

भारतीय सेना के लिए 155 मिमी हॉवित्जर तोपों की 400 इकाइयों की आपूर्ति के लिए भारत और एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा 24 मार्च 1986 को हुआ था।

स्वीडिश रेडियो ने 16 अप्रैल, 1987 को दावा किया था कि कंपनी ने सौदा हासिल करने के लिए शीर्ष भारतीय राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी थी।

सीबीआई ने 22 जनवरी, 1990 को एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन अर्दबो, कथित बिचौलिए विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के कथित अपराधों और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की अन्य धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।

इसमें आरोप लगाया गया था कि भारत और विदेश में कुछ लोक सेवकों और निजी व्यक्तियों ने 1982 और 1987 के बीच एक आपराधिक साजिश रची थी, जिसके तहत रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और जालसाजी के अपराध किए गए थे।

इस मामले में पहला आरोप पत्र 22 अक्टूबर, 1999 को चड्ढा, इतालवी व्यवसायी और कथित बिचौलिए ओतावियो क्वात्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, अर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ दायर किया गया था। इसके बाद नौ अक्टूबर, 2000 को हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ एक पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था।

दिल्ली की एक विशेष सीबीआई अदालत ने चार मार्च, 2011 को क्वात्रोची को इस मामले से आरोप मुक्त करते हुए कहा था कि भारत उसके प्रत्यर्पण पर अपनी मेहनत की कमाई खर्च नहीं कर सकता, जिस पर पहले ही 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

भाषा संतोष दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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