परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से जवाब तलब |

परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से जवाब तलब

परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और निर्वाचन आयोग से जवाब तलब

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:50 PM IST, Published Date : May 13, 2022/5:05 pm IST

नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका पर केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और देश के निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा।

केंद्रशासित प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा सीट के पुनर्निर्धारण को लेकर परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए जम्मू-कश्मीर के दो निवासियों ने यह याचिका दायर की है।

न्यायमूर्ति संजय कृष्ण कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करके उनसे छह सप्ताह में जवाब मांगा है। अदालत ने यह भी कहा कि इसके दो सप्ताह बाद जवाबी हलफनामा भी दायर किया जाए।

दोनों याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ.मोहम्मद अयुब मट्टू की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि संविधान के प्रावधानों के विपरीत परिसीमन की प्रक्रिया चलाई गई। पीठ ने कहा कि परिसीमन आयोग कुछ समय पहले गठित किया गया था।

पीठ ने याचिकार्ताओं से पूछा कि वे तब कहां थे और उस समय आयोग के गठन को चुनौती क्यों नहीं दी। अधिवक्ता ने कहा कि परिसीमन आदेश के मुताबिक केवल चुनाव आयोग ही सीमा में बदलाव कर सकता है।

पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद 32 के तहत एक विशिष्ट सवाल पूछ रही है कि आप ने आयोग के गठन का विरोध क्यों नहीं किया और क्या आप ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध किया था?

पीठ ने अधिवक्ता को, जो आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे थे, उचित शब्दों के चयन की हिदायत दी और कहा कि कश्मीर हमेशा से भारत का अंग था और केवल एक विशेष प्रावधान हटाया गया है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका में दोतरफा बात है। मेहता के मुताबिक पहले तो यह कहा गया है कि परिसीमन केवल निर्वाचन आयोग द्वारा किया जा सकता है न की परिसीमन आयोग ऐसा कर सकता है, दूसरी बात यह कि उन्होंने जनगणना के बारे में भी सवाल उठाए हैं।

मेहता ने कहा, ‘‘इन सवालों का पुनर्निर्धारण कानून में जवाब है। दो तरह के परिसीमन होते हैं। एक भौगोलिक आधार पर होता है, जिसको परिसीमन आयोग करता है, जबकि दूसरा परिसीमन सीट के आरक्षण को लेकर होता है जिसे निर्वाचन आयोग करता है। ’’

मेहता ने कहा कि याचिकार्ताओं का मामला यह है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जनगणना वर्ष 2026 में हो सकेगी। याचिका में कहा गया कि जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 170 में यह प्रावधान है कि अगला परिसीमन वर्ष 2026 के बाद किया जाएगा, फिर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को परिसीमन के लिए क्यों चुना गया?

इस मामले की अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह चाहते हैं कि अदालत सरकार को संसद के समक्ष कागजात पेश करने से रोके, लेकिन यदि आप बहुत चिंतित थे, तो आपने इस मामले को दो वर्ष पहले क्यों नहीं उठाया? याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि जम्मू-कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीटों सहित) करना संवैधानिक प्रावधानों जैसे कि अनुच्छेद 81, 82, 170, 330, और 332 का अतिक्रमण है, विशेषककर जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत।

भाषा संतोष माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)