संविधान संसद को खानों, खनिज विकास पर पूरा अधिकार नहीं देता: उच्चतम न्यायालय |

संविधान संसद को खानों, खनिज विकास पर पूरा अधिकार नहीं देता: उच्चतम न्यायालय

संविधान संसद को खानों, खनिज विकास पर पूरा अधिकार नहीं देता: उच्चतम न्यायालय

:   Modified Date:  March 6, 2024 / 10:43 PM IST, Published Date : March 6, 2024/10:43 pm IST

नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि संविधान संसद को खनिज विकास का समस्त अधिकार नहीं देता है तथा राज्यों के पास भी खानों और खनिजों के विनियमन व विकास की शक्तियां हैं।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की इस दलील का जवाब दे रही थी कि खनिजों पर कर लगाने की संसद की शक्ति राज्यों के अधिकार का सफाया कर सकती है। साल्वे कई खनन कंपनियों की तरफ से पेश हुए।

पीठ ने कहा, ‘‘संविधान की सूची 1 की प्रविष्टि 54 संसद को उस विषय का संपूर्ण अधिकार नहीं देती क्योंकि यह ‘जिस सीमा तक’ के तहत है। इसका मतलब है कि यह सूची 2 की प्रविष्टि 23 को मान्यता देता है जो कहता है कि राज्यों के पास भी खानों के विनियमन और खनिजों के विकास की शक्ति है।’’

नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या खनन पट्टों पर केंद्र द्वारा एकत्र की गई रॉयल्टी को कर के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि 1989 में सात-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था।

पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं।

साल्वे ने तर्क दिया कि सूची 1 की प्रविष्टि 54 के तहत संसद की शक्ति इस हद तक ‘‘अनियंत्रित’’ है कि वह ‘‘प्रविष्टि 23 को हटा’’ सकती है।

सुनवाई अब 12 मार्च को होगी जब केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अपनी दलीलें रखेंगे।

सुनवाई के अंत में साल्वे ने कहा कि कई तेल कंपनियों ने भी तेल निकाले जाने पर लगाए गए करों के संबंध में शीर्ष अदालत का रुख किया है, लेकिन तेल संविधान के तहत एक अलग प्रविष्टि में आता है। साल्वे ने कहा, ‘‘तेल कंपनियों को नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष इस कार्यवाही को हाईजैक करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’’

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उनसे कहा कि अदालत इस मुद्दे पर संदर्भ आदेश के दायरे का विस्तार नहीं करेगी।

शीर्ष अदालत ने 27 फरवरी को इस जटिल मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी कि क्या खान एवं खनिज (विकास एवं विनियम) अधिनियम, 1957 के तहत निकाले गए खनिजों पर देय रॉयल्टी कर की प्रकृति में है।

भाषा आशीष प्रशांत

प्रशांत

 

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