नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1991 में एक भूखंड के आवंटन के लिए अपना पंजीकरण कराने वाली एक महिला को 30 वर्षों से अधिक समय तक दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा परेशान किये जाने और उसके उदासीन रवैये को लेकर डीडीए को फटकार लगाई है।
उल्लेखनीय है कि महिला को इस भूखंड का कब्जा नहीं मिल पाया है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डीडीए की अपील खारिज कर दी। साथ ही, उसे महिला को भूखंड सौंपने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा कि प्राधिकरण का रवैया पूरी तरह से गैरपेशेवर और अक्षम्य है तथा वह डीडीए पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने की इच्छुक है।
पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद भी शामिल हैं।
पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि महिला ने डीडीए को अपना पैसा वापस करने को कहा था और उसके द्वारा प्राधिकारियों को सारे दस्तावेज उपलब्ध कराने के बावजूद डीडीए ने मूल मांग सह आवंटन और अन्य दस्तावेज मांगे।
अदालत ने एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और टिप्पणी की, ‘‘डीडीए का उदासीन रवैया, गैर पेशेवर व्यवहार अक्षम्य है। इस मामले के तथ्य डीडीए के हाथों एक महिला को सिर्फ परेशान किये जाने को प्रदर्शित करते हैं। ’’
अदालत ने कहा कि रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जो यह प्रदर्शित करे कि एक नोटिस जारी किया गया था, जबकि डीडीए ने ऐसा दावा किया है। साथ ही, एकल न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा था कि डीडीए ने अपनी फाइल खो दी है।
भाषा
सुभाष नरेश
नरेश
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