वैवाहिक बलात्कार मामले में अदालत का खंडित फैसला; मामले से जुड़ा घटनाक्रम |

वैवाहिक बलात्कार मामले में अदालत का खंडित फैसला; मामले से जुड़ा घटनाक्रम

वैवाहिक बलात्कार मामले में अदालत का खंडित फैसला; मामले से जुड़ा घटनाक्रम

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:45 PM IST, Published Date : May 11, 2022/5:48 pm IST

नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले में बुधवार को खंडित फैसला सुनाया। इस मामले से जुड़ा घटनाक्रम इस प्रकार है:-

1860: भारतीय दंड संहिता (भादंसं) लागू हुई, 10 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के संबंध में वैवाहिक बलात्कार अपवाद लागू।

1940 : भादंसं में संशोधन किया गया और 10 साल की उम्र सीमा को बदल कर 15 वर्ष किया गया।

11 जनवरी, 2016: दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को नोटिस जारी किया और भादंसं में वैवाहिक बलात्कार अपवाद को चुनौती देने वाली पहली याचिका पर पक्ष रखने को कहा।

29 अगस्त, 2017: केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है।

11 अक्टूबर, 2017: उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को खारिज कर दिया और व्यवस्था दी कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, अगर पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं है।

18 जनवरी, 2018: दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार पहले से ही कानून के तहत क्रूर अपराध है और कोई महिला अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से इनकार करने की हकदार है।

7 जनवरी, 2022: उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू की।

13 जनवरी: केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह ‘पहले से ही मामले से अवगत है’ और वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मुद्दे पर ‘रचनात्मक दृष्टिकोण’ के साथ विचार कर रहा है तथा राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों सहित विभिन्न हितधारकों से सुझाव मांगे गए हैं।

17 जनवरी: उच्च न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह अपनी सैद्धांतिक स्थिति स्पष्ट करे।

24 जनवरी: केंद्र ने अदालत से अपनी स्थिति रखने के लिए ‘उचित समय’ देने का आग्रह किया और कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जिन्हें ‘सूक्ष्म नजरिए’ से नहीं देखा जा सकता है।

28 जनवरी: उच्च न्यायालय ने केंद्र से यह बताने के लिए कहा कि क्या वह अपने 2017 के हलफनामे को वापस लेना चाहता है जिसमें कहा गया है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाया जा सकता है।

1 फरवरी: केंद्र ने उच्च न्यायालय से कहा कि वह अपने पहले के रुख पर ‘पुनर्विचार’ कर रहा है।

3 फरवरी: केंद्र ने अदालत से वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की दलीलों पर सुनवाई टालने का आग्रह किया और कहा कि वह एक समयबद्ध कार्यक्रम प्रदान करेगा और इसके तहत वह इस मुद्दे पर प्रभावी परामर्श प्रक्रिया को पूरा करेगा।

7 फरवरी: अदालत ने केंद्र को याचिकाओं पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।

21 फरवरी: उच्च न्यायालय ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा, केंद्र को और समय देने से इनकार करते हुए कहा कि मामले को स्थगित करना संभव नहीं है क्योंकि इस मुद्दे पर सरकार के परामर्श समाप्त होने की कोई तारीख निश्चित नहीं है।

11 मई: उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाए जाने के मुद्दे पर खंडित फैसला सुनाया और उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर करने के लिए पक्षों को अनुमति दी।

भाषा

अविनाश मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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