नयी दिल्ली, 31 मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रोफेसर योगेश सिंह की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) जुर्माना लगाते हुए खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश सतीश कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जो कि समाचारों के आधार पर दायर की गई थी और जिसमें ‘‘आधारहीन आरोप’’ लगाए गए थे।
पीठ ने कहा, ‘‘हम आपको इसे (याचिका) वापस लेने की अनुमति नहीं देंगे जब भारत के राष्ट्रपति शामिल हैं… आपने अपनी याचिका में जिस तरह का आधारहीन आरोप लगाया है … बहुत खेद है कि हम आपको वापस लेने की अनुमति नहीं देंगे। अखबारों की कतरनों के आधार पर आपने जनहित याचिका दायर की है, इसलिए आपको इसके परिणाम भुगतने होंगे।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ये (समाचार) कोई भगवद गीता नहीं है। याचिका जुर्माने के साथ खारिज की जाती है।’’ हालांकि पीठ ने यह निर्दिष्ट नहीं किया कि वह याचिकाकर्ता पर कितना जुर्माना लगा रही है।
याचिकाकर्ता संगठन ‘फोरम ऑफ इंडियन लेजिस्ट्स’ ने दावा किया कि सिंह को नियमों का उल्लंघन करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति (वीसी) नियुक्त किया गया और उनके पास अपेक्षित अनुभव नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने समाचार का हवाला देते हुए दावा किया था कि केवल सिंह का ही नाम भारत के राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा गया था जो केंद्रीय विश्वविद्यालय की विजिटर हैं।
हालांकि, प्राधिकारियों की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने दावा किया कि कुलपति का चयन करने के लिए पांच योग्य उम्मीदवारों के नामों की सूची राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की गई थी। उन्होंने इस आशय का हलफनामा भी दिन में दाखिल किया।
मेहता ने कहा कि सिंह के कुलपति का पद संभालने के लगभग दो साल बाद याचिका दायर की गई है। उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान कुलपति इस सितंबर में पद पर दो साल पूरे करेंगे। एक जनहितैषी एनजीओ को अधिक सतर्क रहना चाहिए।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि समाचार पत्रों की खबरों पर आधारित जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है।
भाषा अमित पवनेश
पवनेश
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