‘चीन के साथ सैन्य गतिरोध के समानांतर कूटनीतिक वार्ता दर्शाती है कि विदेश और रक्षा नीति अविभाज्य है’ |

‘चीन के साथ सैन्य गतिरोध के समानांतर कूटनीतिक वार्ता दर्शाती है कि विदेश और रक्षा नीति अविभाज्य है’

‘चीन के साथ सैन्य गतिरोध के समानांतर कूटनीतिक वार्ता दर्शाती है कि विदेश और रक्षा नीति अविभाज्य है’

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:31 PM IST, Published Date : March 24, 2022/10:16 pm IST

नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि मई 2020 से चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध के समानांतर चल रहा कूटनीतिक संवाद दर्शाता है कि विदेश और रक्षा नीतियां एक साथ जुड़ी हुई हैं।

सेट स्टीफन कॉलेज में आयोजित एमआरफ विशिष्ठ पुरा छात्र वार्षिक व्याख्यान को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विश्व जैसा है वैसा है, लेकिन स्वार्थ और संमिलन की गणना पूरी तरह नहीं की जा सकती है, खासतौर पर पड़ोसियों के संदर्भ में।

जयशंकर ने कहा, ‘‘उनकी महत्वकांक्षा और भावना का हमेशा पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता, न ही उनमें खतरा उठाने की इच्छा का। कुछ प्रत्याशित होंगे, उदाहरण के लिए भारत का चीन के साथ गत दो साल के संबंध। इसलिए कोई भी दूरदर्शी नीति उसकी क्षमता और प्रतिरोध पर आधारित होती है।’’

उन्होंने कहा कि इसलिए भारतीय कूटनीति की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि वह ऐसी आकस्मिक स्थिति के लिए विस्तृत विकल्प तैयार करे। विदेशमंत्री ने कहा कि इसका अभिप्राय रक्षा क्षमताओं और अन्य सहायक उपायों का अधिग्रहण, यह हमारी नीतियों और गतिविधियों के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय की समझ हासिल करना है।

जयशंकर ने रेखांकित किया कि पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान से बहुत अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि उस मोर्चे पर कूटनीति का पहला लक्ष्य पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद को उजागर करना और उसकी वैधानिकता को समाप्त करना था।

उन्होंने कहा कि जब जवाबी कार्रवाई की वर्ष 2016 में उरी में और वर्ष 2019 के दौरान बालाकोट जरूरत पड़ी तो प्रभावी कूटनीति ने सुनिश्चित किया कि भारत के कदम को लेकर वैश्विक समझ हो।

जयशंकर ने कहा, ‘‘जहां तक चीन का मामला है तो मई 2020 से सैन्य गतिरोध के बाद से समानांतर कूटनीतिक संवाद चल रहा है जो दर्शाता है कि विदेश और रक्षा नीति अविभाज्य है। यहां भी वैश्विक समर्थन और समझ का महत्व स्पष्ट है।’’

उन्होंने रेखांकित किया कि बहुध्रुवीय विश्व का लाभ स्पष्ट रूप से हमारे रक्षा बलों के लिए जरूरी हथियार और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में दिख रहा है। जयशंकर ने कहा कि राफेल विमान की फ्रांस के साथ उसी समय खरीद हो सकती है जब अमेरिका से एमएच-60 आर हेलीकॉप्टर या पी-8 विमानऔर रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली या इजराइल से स्पाइस बम खरीद की जा रही हो। उन्होंने कहा कि यह हमारे चपलता के विस्तार को बताता है।

विदेश मंत्री ने कहा कि संक्षेप में कहें तो कूटनीति राष्ट्रीय सुरक्षा की कोशिश को समर्थन, सशक्त और सहज बनाती है।

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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