(सुगंधा झा)
नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति योगेश सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालय को परिसर में विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जैसे कड़े उपायों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि दोनों विश्वविद्यालयों का चरित्र अलग है।
जेएनयू ने पिछले साल दिसंबर में संशोधित ‘चीफ प्रॉक्टर ऑफिस’ (सीपीओ) नियमावली पेश की थी जिसमें परिसर के निषिद्ध क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन करने पर 20 हजार रुपये तक का जुर्माना और ‘राष्ट्र-विरोधी’ नारे लगाने पर 10 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया था।
डीयू के कुलपति ने पीटीआई-भाषा के साथ साक्षात्कार में कहा कि फिलहाल विश्वविद्यालय में नियमों की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘हम जेएनयू से बहुत अलग हैं। यह एक छोटे आकार का लेकिन प्रतिष्ठित कैंपस विश्वविद्यालय है। दूसरी ओर, हम बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षा प्रदान करते हैं। हमारे पास 6.5 लाख छात्र हैं और हमारा प्रभाव एवं पहुंच (जेएनयू से) बहुत अलग है।’
यह पूछे जाने पर कि क्या परिसर में विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए विश्वविद्यालय जेएनयू जैसे नियम लागू करने पर विचार करेगा, सिंह ने कहा, ‘‘नियमों की अभी जरूरत नहीं है। हालाँकि विरोध प्रदर्शनों के लिए हमारे पास आवश्यक दिशानिर्देश हैं। छात्रों को अनुमति लेनी होगी और किसी भी ‘धरना प्रदर्शन’ के लिए एक जगह है। डीयू दिल्ली पुलिस के साथ समन्वय में सब कुछ प्रबंधित कर रहा है और हमें किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है।’’
पूर्व तदर्थ शिक्षिका रितु सिंह द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाने के बारे में पूछे जाने पर कुलपति ने इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ घटना बताते हुए कहा कि परिसर में हर दिन विरोध प्रदर्शन से विश्वविद्यालय का कामकाज बाधित होता है।
डीयू के कुलपति ने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन हमें यह महसूस करना चाहिए कि हर दिन विरोध प्रदर्शन से विश्वविद्यालय के कामकाज में बाधा आती है। हर किसी को इसके बारे में सोचना चाहिए। इसके अलावा मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।’
रितु दिल्ली विश्वविद्यालय के उन सैकड़ों तदर्थ शिक्षकों में से हैं, जो स्थायी भर्ती के लिए विश्वविद्यालय की कवायद के बीच नौकरी संबंधी संकट का सामना कर रहे हैं।
वह 2020 में डीयू के दौलत राम कॉलेज से छिटपुट विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। उनका आरोप है कि कॉलेज प्रशासन द्वारा जाति-आधारित भेदभाव के कारण उनका चयन नहीं किया गया।
इस साल की शुरुआत में मार्च में, रितु ने दलित शिक्षाविदों के साथ कथित भेदभाव के विरोध में डीयू के कला संकाय के बाहर ‘पकौड़े’ की एक स्टॉल लगाई थी और कहा था कि शिक्षित युवाओं का बेरोजगारी की ओर बढ़ना चिंताजनक है।
कुलपति ने कहा कि डीयू में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति को बंद करने का निर्णय एक ‘कठिन’ निर्णय था, लेकिन लंबे समय से कार्यरत गैर-स्थायी संकाय के हित में यह आवश्यक था।
भाषा
नेत्रपाल माधव
माधव
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