झारखंड में पारंपरिक उल्लास के साथ मनाए गए सरहुल और ईद |

झारखंड में पारंपरिक उल्लास के साथ मनाए गए सरहुल और ईद

झारखंड में पारंपरिक उल्लास के साथ मनाए गए सरहुल और ईद

:   Modified Date:  April 11, 2024 / 05:49 PM IST, Published Date : April 11, 2024/5:49 pm IST

रांची, 11 अप्रैल (भाषा) झारखंड का सबसे बड़ा आदिवासी त्योहार ‘सरहुल’ और मुस्लिम समुदाय का पर्व ‘ईद-उल-फितर’ बृहस्पतिवार को पूरे राज्य में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था के बीच धार्मिक और पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया गया।

झारखंड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सरहुल और ईद के मौके पर राज्य के नागरिकों को बधाई दी।

सरहुल के अवसर पर बड़ी संख्या में पारंपरिक पोशाक पहने पुरुष, महिलाएं और बच्चे सड़कों पर उमड़ पड़े और उन्होंने राज्य के विभिन्न हिस्सों में पारंपरिक अनुष्ठान करने तथा आदिवासियों के विभिन्न पूजा स्थलों, सरना धार्मिक स्थलों पर प्रार्थना करने के बाद जुलूस निकाले।

मुख्यमंत्री, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री ने राजधानी रांची में अलग-अलग स्थानों पर सरहुल उत्सव के अनुष्ठानों में भाग लिया।

रांची में आदिवासी छात्रावास परिसर में एक सरना स्थल पर प्रार्थना करने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘सरहुल आदिवासियों के लिए एक पवित्र त्योहार है। आज ईद भी मनाई जा रही है और नवरात्रि का त्योहार भी चल रहा है। मैं इन सभी समुदायों के लोगों को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूं।’’

सोरेन ने सिराम टोली और कराम टोली का भी दौरा किया और साल के पेड़ के समक्ष प्रार्थना की।

राज्यपाल राधाकृष्णन और केंद्रीय मंत्री मुंडा ने रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा आयोजित सरहुल उत्सव में भाग लिया था।

इस मौके पर राज्यपाल ने कहा, ‘‘सरहुल वसंत ऋतु की शुरुआत के प्रतीक के रूप में पूरे राज्य में मनाया जाता है। सरहुल का अर्थ है पेड़ों और प्रकृति की पूजा करना। पेड़ों, जानवरों और जंगलों की पूजा करना हमारे खून में नहीं बल्कि हमारे जींस में है जो कभी खत्म नहीं होगा। यह हमारी संस्कृति और हमारे जीने के तरीके की महानता है।”

उन्होंने कहा कि झारखंड का प्रत्येक नागरिक जन्म से पर्यावरणविद् है और उन्हें प्रकृति के प्रति अगाध स्नेह है।

मुंडा ने कहा, ‘‘सरहुल पर्व के माध्यम से आदिवासी यह स्वीकार करते हैं कि प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। आदिवासी कभी भी प्रकृति को छोड़ना नहीं चाहते। इसलिए, उन्होंने इसे अपनी जीवनशैली, परंपरा और रीति-रिवाजों में शामिल कर लिया है।”

यह तीन दिवसीय उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन प्रारंभ होता है।

इस मौके पर महिलाओं और पुरुषों को आदिवासी गीतों पर नृत्य करते तो बच्चों को विभिन्न संदेश लिखी पट्टिकाएं लेकर जुलूस निकालते देखा जा सकता है। एक पट्टिका पर लिखा था, ‘‘पेड़-पौधे मत करो नष्ट, वरना सांस लेने में होगा कष्ट’’।

राज्य में बृहस्पतिवार को कड़ी सुरक्षा के बीच ईद का त्योहार भी पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया।

राजधानी रांची में हरमू ईदगाह, अपर बाजार जामा मस्जिद, दोरोंदा ईदगाह, कदरू ईदगाह और इकरा मस्जिद में बड़ी संख्या में लोगों ने नमाज अदा की।

रांची के अतिरिक्त जिलाधिकारी (कानून व्यवस्था) राजेश्वर नाथ आलोक ने कहा कि जिला प्रशासन ने दोनों त्योहारों में शांति बनाये रखने के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं।

भाषा वैभव नरेश

नरेश

 

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