ईडब्ल्यूएस आरक्षण: कांग्रेस नेता ने न्यायालय से फैसला बरकरार रखे जाने पर पुनर्विचार का किया अनुरोध |

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: कांग्रेस नेता ने न्यायालय से फैसला बरकरार रखे जाने पर पुनर्विचार का किया अनुरोध

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: कांग्रेस नेता ने न्यायालय से फैसला बरकरार रखे जाने पर पुनर्विचार का किया अनुरोध

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:53 PM IST, Published Date : November 23, 2022/7:57 pm IST

नयी दिल्ली, 23 नवंबर (भाषा) कांग्रेस की एक नेता ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय का रुख कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रखने वाले उसके (शीर्ष न्यायालय के) फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।

कांग्रेस नेता जया ठाकुर द्वारा दायर याचिका में यह कहते हुए सात नवंबर के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया है कि फैसले पर पहुंचने में त्रुटि हुई है।

उल्लेखनीय है कि ईडब्ल्यूएस कोटा में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग (एसी/एसटी/ओबीसी) के गरीबों को शामिल नहीं किया गया है।

उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि आर्थिक न्याय करने की सरकार की कोशिश को व्यर्थ करने में संविधान के मूल ढांचे का उपयोग करना स्वीकार्य नहीं हो सकता।

न्यायालय ने 3:2 के बहुमत वाला अपना फैसला 103वें संविधान संशोधन के पक्ष में दिया था।

शीर्ष न्यायालय ने 2019 में पेश किये गये ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा था कि यह संविधान की किसी मूल विशेषता के प्रति भेदभावपूर्ण नहीं है, या उसका उल्लंघन नहीं करता है।

न्यायाधीशों ने 2019 में संसद द्वारा पारित 103वें संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि ईडब्ल्यूएस को अलग श्रेणी के रूप में देखना एक तर्कसंगत वर्गीकरण है और मंडल मामले में फैसले के तहत कुल आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा गैर-लचीली नहीं है।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने केंद्र द्वारा 2019 में लागू किए गए 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली 40 याचिकाओं पर अलग-अलग फैसले सुनाए थे।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने कानून को बरकरार रखा, जबकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति ललित ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन अदालत की कार्यवाही संचालित करते हुए न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट के साथ असहमति वाला फैसला सुनाया था।

भाषा सुभाष प्रशांत

प्रशांत

 

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