इस साल वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन का अनुमान सर्वोच्च स्तर के करीब: रिपोर्ट |

इस साल वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन का अनुमान सर्वोच्च स्तर के करीब: रिपोर्ट

इस साल वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन का अनुमान सर्वोच्च स्तर के करीब: रिपोर्ट

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:33 PM IST, Published Date : November 11, 2022/4:45 pm IST

नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मौके पर शुक्रवार को जारी एक नयी रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में 2022 में वातावरण में 40.6 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो सकता है जिसके घटने का कोई संकेत नहीं दिख रहा।

यह अनुमान 2019 में वातावरण में जमा हुई 40.9 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड (जीटीसीओ2) के करीब ही है जो अब तक का सर्वाधिक सीओ2 उत्सर्जन है।

वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा जारी रिपोर्ट ‘ग्लोबल कार्बन बजट 2022’ के अनुसार यदि मौजूदा उत्सर्जन स्तर बना रहता है तो इस बात की 50 प्रतिशत आशंका है कि वैश्विक तापमान वृद्धि बढ़ जाएगी जिसे अभी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने का लक्ष्य रखा गया है।

गौरतलब है कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में वैश्विक तापमान वृद्धि की सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य तय किया गया था। देशों ने उम्मीद जताई कि जलवायु परिवर्तन के खराब परिणामों से बचने के लिए यह सीमा पर्याप्त होगी।

पृथ्वी की सतह का वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक काल के औसत की तुलना में करीब 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और दुनियाभर में सूखा, जंगलों में आग तथा बाढ़ की बड़ी संख्या में आने वाली आपदाओं के लिए इसी तापमान वृद्धि को एक वजह माना जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार 2021 में दुनिया का आधे से अधिक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन तीन देशों- चीन (31 प्रतिशत), अमेरिका (14 प्रतिशत) और यूरोपीय संघ (आठ प्रतिशत) से था। वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन में भारत की भागीदारी 7 प्रतिशत रही।

रिपोर्ट के अनुसार चीन और यूरोपीय संघ में उत्सर्जन में कमी का अनुमान लगाया गया है जो क्रमश: 0.9 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत की कमी हो सकती है, लेकिन अमेरिका, भारत तथा बाकी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि का अनुमान है जो क्रमश: 1.5 प्रतिशत, 6 प्रतिशत तथा 1.7 प्रतिशत रह सकता है।

भारत में 2022 में उत्सर्जन छह प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है जिसमें सर्वाधिक पांच प्रतिशत वृद्धि कोयले से होने वाले उत्सर्जन से हो सकती है।

भारत में प्राकृतिक गैस से उत्सर्जन चार प्रतिशत कम हो सकता है लेकिन इससे बहुत कम असर होगा क्योंकि देश में ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी बहुत कम है।

हालांकि इन आंकड़ों के साथ यह नहीं बताया गया कि समस्या के लिए जिम्मेदारी किसकी है।

वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट में जलवायु कार्यक्रम की निदेशक उल्का केलकर ने कहा, ‘‘मौजूदा दर को देखें तो दुनिया 10 साल से भी कम समय के भीतर वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर रखने की संभावना से भटक सकती है। इसमें आधे से अधिक नुकसान 1990 से पहले हो चुका था जब भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं ने विकसित होना शुरू ही किया था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब भी, भारत का उत्सर्जन अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में धीमी रफ्तार से बढ़ रहा है और भारत का औसत उत्सर्जन यूरोपीय देशों या अमेरिका का छोटा हिस्सा है। भविष्य के लिहाज से भारत के लिए यह सुखद है कि उसके पास पर्याप्त अक्षय ऊर्जा होगी लेकिन इस ऊर्जा के भंडारण और पारेषण के लिहाज से अवसंरचना बनाने के लिए समय पर वित्तपोषण जरूरी है।’’

भाषा वैभव माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)