नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी उच्च जाति के शख्स पर एससी/एसटी एक्ट में मुकदमे चलाने का आधार सिर्फ ये नहीं हो सकता कि शिकायतकर्ता एससी या एसटी से है। कोर्ट ने कहा कि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध केवल इस तथ्य पर स्थापित नहीं होता कि सूचनादाता अनुसूचित जाति का सदस्य है, जब तक कि एससी एसटी के सदस्य को उसकी जाति को आधार बनाकर अपमानित करने का कोई इरादा नहीं हो।
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ घर की चारदीवारी के अंदर किसी गवाह की अनुपस्थिति में की गई अपमानजनक टिप्पणी अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत लगाए गए आरोपों को रद्द करते हुए ये टिप्पणी की। जिसने घर के अंदर एक महिला को कथित तौर पर जातिसूचक गाली दी थी। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अपराध नहीं होगा। जब तक कि इस तरह का अपमान या धमकी पीड़ित के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण नहीं है।
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जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, तथ्यों के मद्देनजर हम पाते हैं कि अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप नहीं बनते हैं। इसलिए मामले में दाखिल आरोप पत्र को रद किया जाता है। आरोपित व्यक्ति के खिलाफ अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर मुकदमा चलाया जा सकता है। इस संबंध में प्राथमिकी की कानून के अनुसार सक्षम अदालत अलग से सुनवाई करें।
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