Batangad: Political stunt of doing 'Bharat that was India'

‘भारत दैट वाज इंडिया’ करने की सियासी स्टंटबाजी

बतंगड़ : 'भारत दैट वाज इंडिया' करने की सियासी स्टंटबाजी Batangad: Political stunt of doing 'Bharat that was India'

Edited By :   Modified Date:  October 19, 2023 / 09:42 AM IST, Published Date : September 6, 2023/12:32 pm IST

  • सौरभ तिवारी

“संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) 18 से 22 सितंबर को बुलाया गया है।” संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के इस एक लाइन के एक्स (X) ने प्रस्तावित सत्र के संभावित और गुप्त एजेंडे को लेकर इतना सस्पेंस क्रिएट कर दिया है कि हर दिन एक नई अटकलबाजी शुरू हो जाती है। विशेष सत्र में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’, महिला आरक्षण बिल, समान नागरिक संहिता, नई संसद में स्थानांतरण, चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 की कामयाबी पर वैज्ञानिकों को धन्यवाद ज्ञापित करने जैसी तमाम शिगूफेबाजी के बीच अब संभावित एजेंडे की लिस्ट में देश का नाम ‘भारत’ किया जाना भी जुड़ गया है। चर्चा है कि सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित ‘इंडिया दैट इज भारत’ को संशोधित करके अब देश का नाम इंडिया की बजाए केवल भारत करने की तैयारी कर ली है।

‘इंडिया दैट इज भारत’ से ‘भारत दैट वाज इंडिया’ किए जाने की अटकलबाजी को बल मिला G-20 समिट से जुड़ी कुछ घटनाओं के बाद। मंगलवार सुबह सामने आया कि, भारत के प्रेसीडेंसी G20 ने नया हैंडल G-20 भारत लॉन्च किया है। इसके बाद ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ और ‘द प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ से संबोधित दो निमंत्रण पत्र सामने आ गए। पहला लेटर 9 सितंबर को राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले G20 के रात्रि भोज से संबंधित है जबकि दूसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इंडोनेशिया यात्रा से जुड़ा फंक्शन नोट है। इन पत्रों के सामने आने के बाद खलबली मचना लाजिमी था। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स में लिखा, ”तो ये खबर वाकई सच है। राष्ट्रपति भवन ने 9 सितंबर को जी20 रात्रिभोज के लिए सामान्य ‘President Of India’ की बजाय ‘President Of Bharat’ के नाम पर निमंत्रण भेजा है। संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है कि ‘भारत, जो इंडिया है, राज्यों का एक समूह होगा’. लेकिन अब इस ‘राज्यों के समूह’ पर भी हमला हो रहा है।” जयराम रमेश के इस ध्यानाकर्षण के बाद बवाल मचना लाजिमी था। जयराम रमेश ने अपने एक्स की पहली लाइन में जिस खबर के सच होने की आशंका जताई है, दरअसल उसका आधार मोहन भागवत का वो बयान है जो उन्होंने 2 सितंबर को सकल जैन समाज के कार्यक्रम में दिया था। मोहन भागवत ने इस कार्यक्रम में देशवासियों से इंडिया की जगह भारत नाम प्रयोग करने का आह्वान किया था।

मोहन भागवत के बयान के 3 दिन बाद ही ‘President Of Bharat’ और ‘ The Primeminister Of Bharat से संबोधित पत्रों के सामने आने पर अब ‘इंडिया वर्सेस भारत’ को लेकर नई बहस छिड़ गई है। मंशा भले गुलामी के प्रतीक ‘इंडिया’ से मुक्ति की बताई जा रही है लेकिन इस कवायद के सियासी मायने निकाल कर इसे मोदी विरोधी नवगठित गठबंधन I.N.D.I.A.के साथ जोड़ दिया गया है। I.N.D.I.A.के घटक दलों की प्रतिक्रिया बताती है कि उन्होंने इसे अपनी ‘पहचान’ पर सरकारी कुठाराघात की कोशिश माना है। वैसे देखा जाए तो I.N.D.I.A.के घटक दलों की चिंता और विरोध नाजायज नहीं है। दरअसल इस गठबंधन ने अपना नाम इसी सोच के साथ ही रखा था कि उसके नाम की पहचान देश के साथ जुड़ने के बाद उसके द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे देशवासियों की आवाज को प्रतिबिंबित करेंगे। लेकिन अब जबकि देश की आधिकारिक पहचान ‘इंडिया’ की बजाए ‘भारत’ हो जाएगी तो ये I N.D.I.A. ‘पहचान’ के लिए बड़ा झटका साबित होगा। विपक्ष ने पूछा भी है कि कल अगर किसी गठबंधन का नाम भारत पर रखा जाएगा तो क्या बीजेपी इसे भी बदल देगी?

वैसे ये सच्चाई है कि मोदी की सत्ता से बेदखली के एकमात्र एजेंडे के साथ गठित हुए I.N.D.I.A.ने भाजपा को असहज कर दिया है। यही वजह है कि गठबंधन का नाम I.N.D.I.A.रखने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने इस नामकरण का मजाक उड़ाते हुए तीखे कटाक्ष करने शुरू कर दिए थे। खुद प्रधानमंत्री ने इस नवगठित I.N.D.I.A.नाम का साम्य पीएफआई और इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों के नाम में जुड़े इंडिया से जोड़ दिया था। मोदी इस गठबंधन को लुटेरों का जमावड़ा बताते हुए इसकी तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी तक से भी कर चुके हैं। अब ऐसे में अगर मोदी सरकार देश का नाम इंडिया की बजाए भारत करने की कवायद करने जा रही है तो उसकी इसकी कवायद के पीछे सियासी मंशा तो तलाशी ही जाएगी।

वैसे देश के नामकरण को लेकर छिड़ी सियासी दंगलबाजी से परे हटकर देखें तो देश का नाम इंडिया की बजाए भारत करने की मांग कोई आज की नहीं है। देश के संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा में भी इसे लेकर जोरदार बहस हुई थी। संविधान के ड्राफ्ट के अनुच्छेद 1 में उल्लिखित ‘इंडिया दैट इज भारत’ पर एच वी कामथ, सेठ गोविंद दास, एम. अनंतशयनम अय्यंगर, शिब्बन लाल सक्सेना, कमलापति त्रिपाठी, हरगोबिंद पंत, मौलाना हसरत मोहानी जैसे सदस्यों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। नौबत इस प्रस्ताव के संशोधन पर वोटिंग की आई जिसमें 38 सदस्यों ने इसके समर्थन में जबकि 51 ने इसके खिलाफ वोट किया। यानी ये प्रस्ताव गिर गया और संविधान सभा ने ‘इंडिया दैट इज भारत’ को स्वीकार कर लिया।

इसके बाद भी समय-समय पर देश का नाम भारत करने की संवैधानिक और कानूनी कोशिशे की जाती रहीं। खास बात ये है कि विपक्षी पार्टियों का गठबंधन I.N.D.I.A. देश का नाम भारत करने पर ऐतराज जता रहा है लेकिन खुद इस गठबंधन के अहम हिस्सा समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने देश का नाम ‘भारत’ करने की वकालत की थी। इसके लिए 9 अप्रैल 2004 को बकायदा घोषणापत्र जारी करके देश का नाम इंडिया से भारत करने के लिए संविधान संशोधन का वादा किया था। यही नहीं बल्कि अगस्त 2004 में यूपी विधानसभा में खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने संविधान में ‘इंडिया मतलब भारत’को ‘भारत मतलब इंडिया’करने की प्रस्ताव पेश किया था। ये प्रस्ताव निर्विरोध पारित हुआ था। हालांकि, दिलचस्प बात ये है कि प्रस्ताव पर ध्वनि मत से ऐन पहले बीजेपी ने सदन से वॉकआउट कर दिया था।

दिलचस्प ये भी है कि आज जो कांग्रेस देश का नाम भारत किए जाने की कथित कोशिश पर इतनी हाय तौबा मचा रही है खुद उसी के सांसद शांताराम नाइक ने 2010 और 2012 दो प्राइवेट बिल पेश किए थे जिसमें उन्होंने संविधान से इंडिया शब्द हटाने का प्रस्ताव रखा था। इसके अलावा भाजपा सांसदों की ओर से भी ‘वन नेशन-वन नेम’ की कोशिशें की जाती रही हैं। 2015 में योगी आदित्यनाथ ने प्राइवेट बिल पेश करके संविधान में ‘इंडिया दैट इज भारत’ की जगह ‘इंडिया दैट इज हिंदुस्तान’ करने का प्रस्ताव दिया था। अभी हाल ही में भाजपा के राज्यसभा सांसद नरेश बंसल भी संविधान में संशोधन करके देश का नाम भारत करने की मांग कर चुके हैं।

देश का नाम भारत करने की मांग से जुड़ी दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में भी दाखिल की जा चुकी है। 2016 में दाखिल एक जनहित याचिका को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने खारिज करते हुए कहा था कि लोग देश को अपनी इच्छा के अनुसार इंडिया या भारत कहने के लिए स्वतंत्र हैं।’ चार साल बाद 2020 में फिर से सुप्रीम कोर्ट में ऐसी ही याचिका दायर हुई, जिसे खारिज करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा था, ‘भारत और इंडिया, दोनों ही नाम संविधान में दिए गए हैं। संविधान में देश को पहले ही भारत कहा जाता है।’

बहरहाल एक बार फिर देश का नाम इंडिया की बजाए भारत करने की चर्चा छिड़ गई है। लेकिन इस बार मामला पिछली कवायदों से जरा हटकर है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इस बार ये कोशिश अंजाम तक पहुंच सकती है। क्योंकि ये मामला ना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘पंच प्रण’ की भावना के अनुरूप है, बल्कि सरकार के पास ऐसा करने की संवैधानिक बहुमतीय ताकत भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते वर्ष 15 अगस्त को लाल किले से देश के सामने जिन ‘पंच प्रणों’ का आह्वान किया था उसमें गुलामी की हर सोच से मुक्ति और भारत की विरासत पर गर्व की भावना भी शामिल हैं। इसी भावना के तहत अगर राजपथ का नाम कर्त्तव्य पथ हो सकता है, अमर जवान ज्योति को ब्रिटिश काल में बने इंडिया गेट की बजाए वॉर मेमोरियल में स्थापित किया जा सकता है, गुलामी काल के प्रतीक संसद भवन की जगह नई भव्य संसद भवन बनाई जा सकती है, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सरकारी विमानों में इंडिया की बजाए भारत लिखा जा सकता है तो इसी कड़ी में अगर संविधान की प्रस्तावना में इंडिया शब्द को हटाकर ‘भारत’ कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

                                                                                                                           – लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

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