बेशकीमती वनों को आग से बचाया जाना चाहिए : उच्चतम न्यायालय |

बेशकीमती वनों को आग से बचाया जाना चाहिए : उच्चतम न्यायालय

बेशकीमती वनों को आग से बचाया जाना चाहिए : उच्चतम न्यायालय

:   Modified Date:  May 17, 2024 / 10:36 PM IST, Published Date : May 17, 2024/10:36 pm IST

नयी दिल्ली,17 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बेशकीमती वनों को आग से बचाया जाना चाहिए और उत्तराखंड के जंगल में हाल में लगी आग से संबंधित याचिका को ”प्रतिद्वंद्वीपूर्ण” नहीं करार दिया।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हर किसी की रुचि केवल ‘‘वनों को बचाने’’ में है।

उत्तराखंड सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को वनों में लगने वाली आग को काबू करने एवं उसकी रोकथाम के लिए निधि के उपयोग, वन विभाग में रिक्तियों को भरने और आग बुझाने के लिए आवश्यक उपकरण मुहैया करने सहित विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया।

मेहता ने जब पीठ को बताया कि आग बुझाने के कार्य के लिए उपकरण मुहैया किये जा रहे हैं, न्यायालय ने कहा, ‘‘जब आंकड़े दर्ज किए जाते हैं, तो आपके वन रक्षकों की तस्वीरें और बयान भी होते हैं। वे केले के पत्तों से आग बुझा रहे हैं। यह एक सच्चाई है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता।’’

पीठ ने कहा, ‘‘तस्वीरों के साथ खबरों में हमने जो कुछ पढ़ा है हम उस बारे में सवाल पूछ रहे हैं।’’

मेहता ने कहा, ‘‘मीडिया में जो कुछ प्रकाशित हुआ है मैं उसकी अनदेखी नहीं कर रहा लेकिन कभी-कभी उनपर पूरी तरह से यकीन करना कुछ नुकसानदेह हो सकता है।’’

उन्होंने कहा कि खबरों में दिखाई गई कुछ तस्वीरें कैलिफोर्निया (अमेरिका) के वनों में लगी आग की हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसके तहत इन उपकरणों को पहले ही वितरित किया जाना चाहिए। अगर वे सिर्फ भंडार में पड़े हैं, तो इसका क्या फायदा है।’’

मेहता ने कहा कि राज्य में अग्निशमन दलों को 40,184 विभिन्न उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं।

उन्होंने पीठ को एक ऐसी योजना के बारे में भी बताया, जिसमें गांवों को कुछ प्रोत्साहन राशि मिलती है, बशर्ते कि वहां वनों में आग लगने की घटनाएं नहीं हुई हों।

सुनवाई के दौरान उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी भी न्यायालय में मौजूद थीं। सॉलिसीटर जनरल के साथ उप महाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी भी राज्य सरकार की ओर से पेश हुए।

शीर्ष अदालत उत्तराखंड के वन में लगी आग पर वरिष्ठ वकील राजीव दत्ता द्वारा दायर एक अर्जी पर सुनवाई कर रही है, जिनकी सहायता अधिवक्ता नेहा सिंह कर रही हैं।

पीठ ने उल्लेख किया कि सॉलिसीटर जनरल ने राज्य की ओर से मुख्य सचिव द्वारा तैयार एक रिपोर्ट रिकॉर्ड में जमा की है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘जैसा कि पहले कहा गया है, मौजूदा मुकदमा कोई प्रतिद्वंद्वीपूर्ण (एडवर्सियल) मुकदमा नहीं है। एकमात्र चिंता यह है कि मूल्यवान वन को आग से बचाया जाना चाहिए।’’

पीठ ने कहा कि सॉलिसीटर जनरल ने आश्वासन दिया है कि मुख्य सचिव अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को देख रही हैं और वन में आग लगने को टालने और उन्हें जल्द से जल्द काबू करने के लिए एक स्थायी समाधान तलाशने की कोशिश कर रही हैं।

न्यायालय ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकार द्वारा अपनाये गए रुख की सराहना करते हैं।’’

पीठ ने कहा कि उसके समक्ष पहले उठाए गए मुद्दों में से एक क्षतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैम्पा) निधि के उपयोग से संबंधित था।

शीर्ष अदालत ने 15 मई को मुख्य सचिव से यह बताने को कहा था कि इस निधि से वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए केवल 3.4 करोड़ रुपये जारी किए गए, जबकि भारत सरकार ने 9.12 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।

सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा, ‘‘इसका पूरा उपयोग किया गया।’’

मेहता ने यह भी जवाब दिया कि संबंधित जिलों में सरकारी कर्मचारियों की कमी के कारण वन विभाग के कुछ क्षेत्रीय अधिकारी चुनाव ड्यूटी में तैनात थे।

मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह, राज्य की मुख्य सचिव, केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और मामले में न्याय मित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे वकील के. परमेश्वर साथ बैठेंगे और इन मुद्दों पर रणनीति तैयार करेंगे।

पीठ ने विषय की सुनवाई सितंबर में निर्धारित कर दी।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश

 

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