नयी दिल्ली, 26 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 25 साल बाद भी ‘पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य’ की सीमा का सीमांकन नहीं किये जाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए असम सरकार से पूछा कि आखिरकार इस प्रक्रिया को पूरा करने में उसे कितना समय लगेगा।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने राज्य सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल विचार करने को कहा और चेतावनी दी कि ऐसा न करने के गंभीर परिणाम होंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता नलिन कोहली ने यह बताने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है कि 17 मार्च 1998 की अधिसूचना के अनुसार ‘पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य’ की सीमा का वास्तविक सीमांकन कितने समय में पूरा किया जाएगा।
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह वास्तव में आश्चर्य की बात है कि वन्यजीव अभयारण्य को वर्ष 1998 में अधिसूचित किया गया था, लेकिन 25 साल बीत जाने के बाद भी सीमाओं का सीमांकन नहीं किया गया है। हमें उम्मीद है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर तत्कालिता के आधार पर विचार करेगी। हम राज्य सरकार के संज्ञान में यह लाना चाहते हैं कि ऐसा करने में विफल रहने के गंभीर परिणाम होंगे।’’
शीर्ष अदालत ने इससे पहले असम सरकार को हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका दिया था और इसके लिए चार सप्ताह का समय दिया था। हालांकि, राज्य सरकार ऐसा करने में विफल रही।
शीर्ष अदालत पर्यावरण कार्यकर्ता रोहित चौधरी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें बिना किसी देरी के पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य की सीमा का सटीक सीमांकन करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि अधिकारियों ने 11 दिसंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के आदेश की घोर अवहेलना करते हुए अभयारण्य के आसपास के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है।
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