एक माह के भीतर बॉन्ड न भरने पर कैदियों की जमानत शर्तों में बदलाव पर विचार किया जाए: न्यायालय |

एक माह के भीतर बॉन्ड न भरने पर कैदियों की जमानत शर्तों में बदलाव पर विचार किया जाए: न्यायालय

एक माह के भीतर बॉन्ड न भरने पर कैदियों की जमानत शर्तों में बदलाव पर विचार किया जाए: न्यायालय

:   Modified Date:  February 2, 2023 / 09:35 PM IST, Published Date : February 2, 2023/9:35 pm IST

नयी दिल्ली, दो फरवरी (भाषा) जमानत दिए जाने के बाद भी कई विचाराधीन कैदियों के जेल में ही रहने का जिक्र करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अदालतों से कहा है कि अगर एक महीने के भीतर बॉन्ड नहीं भरा जाता है तो (जमानत की) शर्तों में बदलाव करने पर विचार किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि किसी आरोपी या दोषी की रिहाई में देरी का एक कारण स्थानीय ज़मानत पर जोर देना है।

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में जहां विचाराधीन कैदी या दोषी अनुरोध करे कि वह रिहा होने के बाद ज़मानत बॉन्ड या ज़मानत राशि दे सकता है, तो एक उपयुक्त मामले में, अदालत आरोपी को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए अस्थायी जमानत देने पर विचार कर सकती है, ताकि वह ज़मानत बॉन्ड या ज़मानत राशि जमा कर सके।’’

पीठ ने कहा, ”अगर ज़मानत मंजूर करने की तारीख से एक महीने के भीतर ज़मानत बॉन्ड नहीं भरा जाता, तो संबंधित अदालत इस मामले को स्वत: संज्ञान में ले सकती है और विचार कर सकती है कि क्या ज़मानत की शर्तों में संशोधन या छूट की जरूरत है।”

शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि किसी विचाराधीन कैदी या दोषी को ज़मानत देने वाली अदालत को उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से आदेश की प्रति ई-मेल पर उपलब्ध करानी होगी।

इसने कहा, ‘‘जेल अधीक्षक को ई-जेल सॉफ्टवेयर (या जेल विभाग द्वारा उपयोग किए जा रहे किसी अन्य सॉफ्टवेयर) में ज़मानत देने की तारीख दर्ज करनी होगी।’’

न्यायालय ने कहा, ‘यदि ज़मानत देने की तारीख से सात दिन की अवधि के भीतर आरोपी को रिहा नहीं किया जाता है, तो यह जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वह सचिव, डीएलएसए को सूचित करें, जो किसी अर्ध-कानूनी स्वयंसेवक या जेल का दौरा करने वाले अधिवक्ता की प्रतिनियुक्ति कर सकते हैं। कैदी के साथ बातचीत करें और उसकी रिहाई के लिए हरसंभव तरीके से कैदी की मदद करें।’

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को ई-जेल सॉफ्टवेयर में आवश्यक स्थान बनाने के प्रयास करने का भी निर्देश दिया, ताकि जमानत देने की तारीख और रिहाई की तारीख जेल विभाग द्वारा दर्ज की जा सके और यदि कैदी सात दिन के भीतर रिहा नहीं होता एक स्वचालित ई-मेल डीएलएसए सचिव को भेजा जा सके।

भाषा नेत्रपाल सुभाष

सुभाष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)