चार वर्षीय विधि पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता की जांच के लिए समिति बनाने पर विचार करने से अदालत का इनकार |

चार वर्षीय विधि पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता की जांच के लिए समिति बनाने पर विचार करने से अदालत का इनकार

चार वर्षीय विधि पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता की जांच के लिए समिति बनाने पर विचार करने से अदालत का इनकार

:   Modified Date:  May 2, 2024 / 05:56 PM IST, Published Date : May 2, 2024/5:56 pm IST

नयी दिल्ली, दो मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें केंद्र को पांच साल के विधि पाठ्यक्रम संबंधी मौजूदा कानून के बजाय 12वीं कक्षा के बाद चार-वर्षीय पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक विधि शिक्षा आयोग के गठन का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, इसलिए वह इस मामले में हस्तक्षेप करने का इच्छुक नहीं है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा, ‘‘यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हम पाठ्यक्रम तैयार नहीं करते। हम इसमें नहीं पड़ेंगे। आप पांच साल के विधि पाठ्यक्रम को इस तरह से खत्म नहीं कर सकते। यदि आप उन्हें (अधिकारियों को) अभ्यावेदन देना चाहते हैं तो आप ऐसा करने के लिए स्वंतत्र हैं। हमारी तरफ से यह मामला बंद है।”

जैसे ही पीठ ने याचिका खारिज करने का संकेत दिया, याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इसे वापस लेने की अनुमति मांगी और अदालत ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।

याचिका में केंद्र को चिकित्सा शिक्षा आयोग की तरह एक विधि शिक्षा आयोग गठित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, विधि प्रोफेसरों और वकीलों को शामिल करने का आग्रह किया गया था, ताकि चार-वर्षीय बी.टेक पाठ्यक्रम की तरह इतनी ही अवधि के विधि पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता का पता लगाया जा सके।

याचिकाकर्ता ने वैकल्पिक रूप से अदालत से भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) को राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के साथ पांच-वर्षीय विधि स्नातक पाठ्यक्रम की सुसंगतता की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, न्यायविदों और शिक्षाविदों की एक विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्देश देने का आग्रह किया था।

बीसीआई की ओर से पेश अधिवक्ता ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष पहले इसी तरह की याचिका दायर की थी और शीर्ष अदालत द्वारा इस पर विचार करने से इनकार करने के बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

जब याचिकाकर्ता ने दलील दी कि कानून के छात्रों को समाजशास्त्र, इतिहास और अर्थशास्त्र जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं, जिनकी आवश्यकता नहीं है, तो न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि ये विषय बहुत प्रासंगिक हैं और कानून के छात्रों को इनका अध्ययन करना चाहिए।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘‘अगर किसी को कानूनी पेशा शुरू करना है तो उसे हर चीज में हाथ आजमाना होगा। उसे आयकर मामले भी लड़ने होंगे। आप कैसे कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र की कोई भूमिका नहीं है? हम जीएसटी और अन्य सभी मामलों पर हर दिन सुनवाई करते हैं। काश! मैंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया होता तो इन मामलों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती। इंजीनियरिंग भी महत्वपूर्ण है। अब लोग कानून के साथ इंजीनियरिंग कर रहे हैं।’’

अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को ‘कुछ चीजों की जानकारी नहीं’ थी, जिसके कारण यह याचिका दायर करनी पड़ी।

याचिकाकर्ता ने कहा कि पहले, तीन साल का विधि पाठ्यक्रम था। उन्होंने पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी तथा प्रख्यात न्यायविद् एवं पूर्व अटॉर्नी जनरल दिवंगत फली नरीमन का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने क्रमशः केवल 17 और 21 साल की उम्र में कानूनी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।

इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम आपको बताएं, उनकी शिक्षा कभी खत्म नहीं हुई। उस उम्र में भी उन्होंने कितना पढ़ा है। वे लगातार पढ़ रहे थे और खुद को अपडेट कर रहे थे। कोई भी ऐसा नहीं करता।’’

याचिका में कहा गया था कि अगर पांच साल के विधि स्नातक पाठ्यक्रम की जरूरत है तो सिर्फ कानून से जुड़े विषय ही पढ़ाए जाने चाहिए।

भाषा सुरेश नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)