नयी दिल्ली, दो दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें ट्रांसजेंडर वकीलों के पंजीकरण के लिए वैधानिक बार निकायों द्वारा लिए जाने वाले शुल्क को माफ करने का अनुरोध किया गया था। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि ऐसे मुद्दे न्यायिक समीक्षा के मापदंडों के तहत नहीं आते हैं।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि न्यायिक समीक्षा संबंधी मानदंड संवैधानिक अदालतों को नामांकन शुल्क में छूट जैसे आदेश पारित करने की अनुमति नहीं देते हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘आप यह नहीं कह सकते कि आप नामांकन शुल्क नहीं लें। सिर्फ ट्रांसजेंडर व्यक्ति ही क्यों, इसे महिलाओं, दिव्यांगों और वंचित व्यक्तियों तक क्यों नहीं बढ़ाया जाए। आपको न्यायिक समीक्षा के मापदंडों को समझना चाहिए।’
पीठ ने कहा कि केवल कानूनी पेशे में ही क्यों, चिकित्सा क्षेत्र में भी इस तरह की शुल्क माफी की जानी चाहिए। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि वह याचिका खारिज कर देगी।
इसके बाद याचिकाकर्ता एम करपगम के वकील ने याचिका वापस लेने का फैसला किया।
पीठ ने करपगम को इस संबंध में वकीलों की शीर्ष वैधानिक संस्था बार काउंसिल ऑफ इंडिया को एक अभिवेदन देने की अनुमति दे दी।
भाषा अविनाश मनीषा
मनीषा
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