नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने देश में जेलों की स्थिति पर बृहस्पतिवार को चिंता जताई और बड़े कार्पोरेट घरानों को शामिल कर निजी जेलों के निर्माण का सुझाव दिया।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बड़े कार्पोरेट घराने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत निजी जेलों का निर्माण कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, ‘‘ यूरोप में, निजी जेलों की अवधारणा है। फिर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व है। यदि आप उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन मुहैया कराते हैं तो आप जेल बनवा सकते हैं। क्योंकि आप नहीं चाहते कि इसके लिए सरकारी राशि खर्च हो। विचाराधीन कैदियों की संख्या चिंताजनक है।’’
पीठ ने कहा, “वे इसे बनाएंगे और आपको सौंप देंगे और आयकर के तहत छूट का दावा करेंगे। एक नयी अवधारणा सामने आएगी। फिर एक नयी अवधारणा विकसित होगी, अग्रिम जमानत से लेकर अग्रिम जेल तक।”
पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जेलों में काफी भीड़ है और केवल आयुर्वेद चिकित्सक ही मरीजों के लिए उपलब्ध हैं।
पीठ ने कहा कि जेलों का अध्ययन किसी भी सरकार के लिए सबसे कम प्राथमिकता वाला क्षेत्र है।
न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में जेल में बंद गौतम नवलखा को तुरंत इलाज के लिए मुंबई के जसलोक अस्पताल में स्थानांतरित करने का तलोजा जेल अधीक्षक को निर्देश दिया। इससे पहले नवलखा के वकील ने कहा कि वह कैंसर से पीड़ित हैं।
भाषा अविनाश नरेश
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