‘विस्थापित कश्मीरी पंडितों पर बहुत कम चर्चा हुई, क्योंकि वे 'बड़ी संख्या वाले मतदाता' नहीं थे’ |

‘विस्थापित कश्मीरी पंडितों पर बहुत कम चर्चा हुई, क्योंकि वे ‘बड़ी संख्या वाले मतदाता’ नहीं थे’

‘विस्थापित कश्मीरी पंडितों पर बहुत कम चर्चा हुई, क्योंकि वे 'बड़ी संख्या वाले मतदाता' नहीं थे’

:   Modified Date:  December 30, 2023 / 07:05 PM IST, Published Date : December 30, 2023/7:05 pm IST

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. के. कौल ने कहा है कि आतंकवाद के चलते कश्मीर घाटी से विस्थापित हुए 4.5 लाख कश्मीरी पंडितों के बारे में बहुत कम चर्चा हुई, शायद इसलिए क्योंकि वे ‘इतनी बड़ी संख्या वाले मतदाता’ नहीं थे कि कोई ‘राजनीतिक हस्तक्षेप’ किया जा सके।

न्यायमूर्ति कौल उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के निर्णय को बरकरार रखा था। उन्होंने 1980 के दशक से सरकारी और गैर सरकारी तत्वों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन किए जाने की जांच करने और रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक ‘निष्पक्ष सत्य और सुलह आयोग’ स्थापित करने की सिफारिश की थी।

उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद के कारण शांति भंग होने से पहले विभिन्न समुदायों के लोग आपस में मिलकर रहते थे और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि स्थिति ‘धीरे-धीरे खराब’ कैसे हो गई।

कौल खुद एक कश्मीरी पंडित हैं और उन्हें लगता है कि 30 साल से अधिक समय तक बेलगाम हिंसा के बाद अब लोगों के लिए आगे बढ़ने का समय आ गया है।

उन्होंने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सर्वसम्मत फैसले के बारे में बात की, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘यह एक सर्वसम्मत फैसला था, जिसका मतलब है कि हम सभी ने सोचा होगा कि यह अनुसरण करने का सही रास्ता है। बेशक, हर फैसला, खासकर हर महत्वपूर्ण फैसला, बहस पैदा करेगा। ऐसे लोग होंगे, जो इसके प्रति विपरीत दृष्टिकोण रखेंगे।’’

उन्होंने कहा, ”वास्तव में इसका मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता, क्योंकि फैसला किसी स्थिति पर एक राय होता है और हमें इसके बारे में अति-संवेदनशील नहीं होना चाहिए।”

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित समुदाय के विस्थापन पर चुप्पी पर अफसोस जताया।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘पहले, सुरक्षा संबंधी चिंताएँ वास्तव में कोई समस्या नहीं थीं। लेकिन फिर पतन उस स्तर पर पहुँच गया, जहाँ एक समुदाय के साढ़े चार लाख से अधिक लोग अपने ही देश में विस्थापित हो गए। मुझे लगा कि इसके बारे में बहुत कम कहा गया है।’’

उन्होंने कहा, ‘शायद वे इतनी बड़ी संख्या वाले मतदाता नहीं थे कि किसी राजनीतिक हस्तक्षेप को आमंत्रित कर सकें और फिर स्थिति इस हद तक बिगड़ गई कि सेना बुलानी पड़ी, क्योंकि देश की क्षेत्रीय अखंडता खतरे में पड़ रही थी।’

‘सत्य और सुलह आयोग’ गठित करने की अपनी सिफारिश के बारे में, न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह स्वीकार करने का एक ‘अच्छा तरीका’ था कि कुछ गलत हुआ था।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की एक पूरी पीढ़ी ‘अच्छा समय’ नहीं देख पाई।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या हम उस चीज़ को अभी भी लोगों को चोट पहुँचाने दें, जहाँ वह चोट पहुँचाती है? मैंने सोचा कि यह स्वीकार करने का एक अच्छा तरीका है कि कुछ गलत हुआ था और वह गलत क्या है, जो हुआ है। अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको आगे बढ़ना चाहिए। 30 साल बहुत लंबा समय होता है। आपको आगे बढ़ना होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘30 साल पहले चले गए लोगों के लिए वापस आना आसान नहीं है। सुरक्षा का माहौल ऐसा होना चाहिए कि वे लोग उन स्थानों पर वापस जा सकें जहां वे रहते थे, स्थायी रूप से नहीं, जो अब इतने समय के बाद होने की संभावना नहीं है। लेकिन एक जगह मिलनी चाहिए, क्योंकि लोग नौकरी-पेशे के लिए दूसरी जगहों पर जाते हैं, और अपने पैतृक घरों को बनाए रखते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना ​​है कि केवल कुछ क्षेत्रों में समुदाय के बस्तीकरण से मदद नहीं मिलेगी। इस तरह बहुत से लोग नहीं आएंगे।’’

वह कश्मीरी पंडितों को उनके पूर्व के स्थानों से दूर अत्यधिक संरक्षित क्षेत्रों में बसाने के सरकार के कदम का जिक्र कर रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘जिस बात ने मुझे उस हिस्से (आयोग पर) को लिखने के लिए प्रेरित किया, वह प्रारंभ से शुरू होता है, जहां मैंने कश्मीर का इतिहास, आत्मसातीकरण, और यह कैसे हुआ तथा विभाजन के बाद लोग वहां कैसे रह रहे थे, जो एक दर्दनाक अवधि है, का वर्णन किया है। यहां तक ​​कि गांधीजी भी सोचते थे कि कश्मीर एक ऐसी जगह है, जहां एकता की झलक मिलती है।’’

न्यायमूर्ति कौल ने कश्मीर में अब पर्यटन को मिल रहे प्रोत्साहन को भी महसूस किया, क्योंकि पर्यटक हरी-भरी घाटी में घूमने के दौरान ‘अधिक आत्मविश्वास’ महसूस कर रहे हैं, जो दशकों की हिंसा से पीड़ित लोगों को आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि स्थिति बदल रही है। मैं व्यक्तिगत रूप से 34 वर्षों के बाद अपने घर में रहने में सक्षम हो पाया। इसलिए, अब इस बार, जब मैं गर्मियों में गया, तो लोग घूम रहे थे, वहां पर्यटन था, जिससे निश्चित रूप से सभी चीजों को बढ़ावा मिला क्योंकि कश्मीर में सबकुछ पर्यटन से जुड़ा हुआ है।’

न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘इसलिए पर्यटन को प्रोत्साहन और इसके विस्तार से लोगों को आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने में मदद मिली है तथा पर्यटक भी वहां जाने के लिए अधिक आश्वस्त महसूस करते हैं। पिछले साल, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण सम्मेलन कश्मीर में आयोजित किया गया था। उद्देश्य यह भी दिखाना है कि यह हमारे देश का एक हिस्सा है। अन्य लोगों, और न्यायपालिका ने भी देखा है कि स्थिति क्या है। आशंका दूर हो गई है, और मेरा मानना ​​है कि चीजों में सुधार होना चाहिए।”

भाषा नेत्रपाल दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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