प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिल्ली के विज्ञान भवन में स्वच्छ भारत अभियान की तीसरी वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि ये मिशन भारत सरकार का नहीं, बल्कि देश के हर आदमी का सपना है। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत निर्माण का सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक 125 करोड़ देशवासियों की इसमें भागीदारी नहीं होती। उन्होंने कहा कि दस हज़ार महात्मा गांधी और एक लाख मोदी, सारे मुख्यमंत्री और सारी सरकारें भी मिलकर 125 करोड़ भारतीयों के बिना इसे सफल नहीं बना सकते। उन्होंने कहा कि इस अभियान को अभी तक जो सफलता मिली है, वो सफलता देशवासियों की है, भारत सरकार की नहीं। नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमने बहुत सारी चीजें सरकारी बना दीं, जो दुर्भाग्य है। हम सभी को समझना होगा कि जब तक जनभागीदारी होती है तब तक कोई समस्या नहीं आती है और इसका उदाहरण गंगा तट पर आयोजित होने वाला कुंभ महोत्सव है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अभी भी स्वच्छता अभियान का मजाक उड़ाते हैं, आलोचना करते हैं । वे कभी स्वच्छ अभियान में गए ही नहीं, लेकिन पांच साल पूरा होने पर यह खबर नहीं आएगी कि स्वच्छता अभियान में किसने हिस्सा लिया, कौन काम कर रहा है बल्कि खबर यह आयेगी कि कौन लोग इससे दूर भाग रहे हैं और कौन लोग इसके खिलाफ थे, क्योंकि जब देश किसी बात को स्वीकार कर लेता है, तब चाहे अनचाहे आपको स्वीकार करना ही होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छता अभियान के तीन साल में हम आगे बढ़े हैं। इस कार्यक्रम को तीन वर्ष पहले जब मैंने शुरू किया था, तब कई वर्गों से आलोचना का सामना करना पड़ा था। बेशक, इसके लिए लोगों ने मेरी आलोचना की कि हमारी 2 अक्टूबर की छुट्टी खराब कर दी। बच्चों की छुट्टी खराब की। मेरा स्वभाव है कि बहुत सी चीजें झेलता रहता हूं। मेरा दायित्व भी ऐसा है, झेलना भी चाहिए और झेलने की कैपेसिटी भी बढ़ा रहा हूं। हम तीन साल तक लगातार लगे रहे। समाज के लिये जो विषय बदलाव लाने वाले हैं, उन्हें मजाक का विषय नहीं बनाया जाए। उन विषयों को राजनीति के कटघरे में नहीं रखें। बदलाव के लिये हम सभी को जनभागीदारी के साथ काम करना है।
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उन्होंने कहा कि स्वच्छता के लिये वैचारिक आंदोलन भी चाहिए। व्यवस्थाओं के विकास के बावजूद भी परिवर्तन तब तक नहीं आता है जब तक वह वैचारिक आंदोलन का रूप नहीं लेता है। बच्चों समेत अन्य लोगों को पुरस्कार प्रदान करते हुए मोदी ने कहा कि चित्रकला एवं निबंध प्रतियोगिता ऐसे ही वैचारिक आंदोलन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि सरकार सोचे कि हम इमारतें बना देंगे और टीचर दे देंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा तो ऐसा नहीं है । घरवाले अगर बच्चे को स्कूल नहीं भजेंगे तो शिक्षा का प्रसार कैसे होगा। ऐसे में समाज की भागीदारी बहुत जरूरी है।
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