मलप्पुरम में आदिवासी बस्तियों के युवाओं को स्वास्थ्य स्वयंसेवकों के रूप में प्रशिक्षित किया गया |

मलप्पुरम में आदिवासी बस्तियों के युवाओं को स्वास्थ्य स्वयंसेवकों के रूप में प्रशिक्षित किया गया

मलप्पुरम में आदिवासी बस्तियों के युवाओं को स्वास्थ्य स्वयंसेवकों के रूप में प्रशिक्षित किया गया

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:15 PM IST, Published Date : February 13, 2022/5:23 pm IST

(एच एम पिल्लै)

मलप्पुरम (केरल), 13 फरवरी (भाषा) केरल में मलप्पुरम जिले के जंगलों के अंदरूनी इलाकों में आदिवासी बस्तियों के निवासियों को अब हल्का बुखार, सांप के काटने या किसी अन्य बीमारी की स्थिति में नजदीकी क्लिनिक तक जाने, उन्हें खोजने या सरकार के मोबाइल दवाखाने की प्रतीक्षा करने करने की जरूरत नहीं है और इसकी जगह वे अपने ही समुदाय में स्वास्थ्य स्वयंसेवकों की मदद ले सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में बुनियादी चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए संपर्क के प्राथमिक बिंदु के रूप में स्वास्थ्य स्वयंसेवकों प्रशिक्षित किया गया है।

ये प्रशिक्षित स्वास्थ्य स्वयंसेवक बीमार लोगों की जांच के लिए डिजिटल थर्मामीटर, ब्लड प्रेशर (बीपी) मशीन और पल्स ऑक्सीमीटर का उपयोग करेंगे तथा फोन पर अपने निष्कर्षों को डॉक्टरों को बताएंगे जो आगे की कार्रवाई की सलाह देंगे। इस तरह, इन आदिवासी बस्तियों के निवासियों को अपने सदियों पुराने और कभी-कभी इलाज के गलत तरीकों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा या सरकारी मोबाइल दवाखाने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा या शहर के किसी अस्पताल में जाने के लिए वाहन की व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी।

चोलनाइक्कर, कट्टू नायकर और पनियार जैसे आदिवासी समुदायों के निवासियों के सामने आने वाली इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए कुडुम्बश्री ने थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर, बीपी मशीन और कोविड-19 रोकथाम किट जैसे उपकरणों का उपयोग कर बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा में वहां से चुनिंदा व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए एक कार्यक्रम- ‘सुरक्षा’ का आयोजन किया।

यहां नीलांबुर में सरकारी मोबाइल दवाखाने की चिकित्सा अधिकारी डॉ अश्वथी सोमन ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को मूर्त रूप दिया।

उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य अस्पतालों की अनावश्यक यात्राओं से बचना और आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाना है।

सोमन ने कहा कि प्रशिक्षण से प्रत्येक आदिवासी बस्ती में स्वास्थ्य स्वयंसेवकों की एक टीम बनाने में मदद मिलेगी, जो रक्तचाप (बीपी), बुखार के स्तर, बीमार और थका हुआ महसूस करने वाले किसी भी व्यक्ति के ऑक्सीजन स्तर की जांच कर सकती है और इस जानकारी को आगे की कार्रवाई या उपचार के लिए फोन पर जंगलों से डॉक्टरों को भेज सकती है। सोमन ने कहा, ‘‘इससे अस्पतालों की अनावश्यक यात्राओं से बचने में मदद मिलेगी, लोगों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और उन्हें सशक्त बनाया जा सकेगा।’’

उन्होंने कहा कि यह पूरे देश में संभवत: अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है। सोमन ने कहा कि उन्हें प्रशिक्षण कार्यक्रम का विचार तब आया जब किसी ने इन उपकरणों के साथ-साथ कुछ अन्य चिकित्सा उपकरण जैसे कि स्ट्रेचर दान करने की पेशकश की।

सोमन ने कहा कि मंजिरी, मुंडक्कडवु, वेत्तिलाकोली, अंबुमाला, पलक्कयम, उचक्कुलम, अलक्कल, पंचकोल्ली, चेम्बरा, इरुट्टुकुथी, वनियामपुझा, थारिपापोट्टी और कुंबलप्पारा के वन क्षेत्रों में आदिवासी बस्तियों के स्वयंसेवियों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले चरण में भाग लिया, जिसे कुडुम्बश्री की गोत्र सखी सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल योजना के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया।

जिले में 200 से अधिक आदिवासी बस्तियां हैं, जिनमें से वन क्षेत्रों के अंदरूनी इलाकों को इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए चुना गया था। स्वयंसेवियों को जंगल के अंदर से जीपों में नीलांबुर नगर पालिका हॉल ले जाया गया और 10 फरवरी को डॉ. सोमन और अग्निशमन एवं सुरक्षा अधिकारी मुहम्मद हबीब रहमान द्वारा मलयालम एवं उनकी मातृभाषा में प्रशिक्षण दिया गया।

यहां कुडुम्बश्री जिला मिशन के आदिवासी समन्वयक शानू ने पीटीआई-भाषा को बताया कि गोत्र सखी योजना इन क्षेत्रों की आदिवासी आबादी के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के मुद्दों के संबंध में उनके क्षेत्र के तीन साल से अधिक के अनुभव का परिणाम है।

उन्होंने कहा कि इन प्रशिक्षुओं से अब उम्मीद की जाती है कि वे अपनी बस्तियों में अन्य लोगों को प्राथमिक उपचार, आग से बचाव और राहत के साथ-साथ इन उपकरणों के उपयोग का प्रशिक्षण देंगे। शानू ने कहा कि ये प्रशिक्षु अपने अर्जित ज्ञान का उपयोग सांप के काटने, बीमारियों को लेकर भ्रांतियों के खिलाफ अपने गांवों में जागरूकता पैदा करने के लिए कर सकते हैं।

इन आदिवासी बस्तियों में से एक के निवासी और पीएचडी कर रहे विनोद ने पीटीआई-भाषा को बताया कि कोविड​​​​-19 महामारी के दौरान उन्हें बीमार न पड़ने के लिए सामान्य से भी अधिक सावधान रहना पड़ा क्योंकि इलाज के लिए अस्पताल जाने से संक्रमित होने का जोखिम था।

विनोद ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी भाग लिया। उन्होंने इसके पीछे की मंशा की सराहना करते हुए कहा कि यह फायदेमंद है या नहीं, यह कुछ हफ्तों के बाद ही पता लग सकता है तथा इस तरह के और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रभाव डालने के लिए आवश्यक हैं।

उन्होंने कहा कि पहले अधिकारी यहां आते थे और हमें ये उपकरण देते थे तथा फिर हमें बताए बिना या उनका उपयोग करना सिखाए बिना ही चले जाते थे। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, इस बार उन्होंने हमें सिखाया है कि इन उपकरणों का उपयोग कैसे किया जाता है और प्रशिक्षण के परिणाम कुछ हफ्तों के बाद ही दिखाई देंगे।’’

भाषा सुरभि नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)