G20 Ghoshna Patra: दिल्ली में जी 20 समिट की बैठक नौ और 10 सितंबर 2023 को आयोजित होने जा रही है। इसलिए ये दो दिन भारत के लिए बेहद खास होने जा रहा है। ये पहली बार है, कि जब भारत जी-20 के किसी बड़े सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। देश की राजधानी में स्थित प्रगति मैदान में बने भारत मंडपम कन्वेंशन सेंटर में ये जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। सम्मेलन के लिए दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष समेत कई वैश्विक नेता दिल्ली पहुंच गए हैं। इस शिखर सम्मेलन को मुख्यत: तीन सत्रों में बांटा गया है-एक धरती, एक परिवार और एक भविष्य।
भारत से पहले 2022 में इंडोनेशिया ने 374 करोड़ रुपए खर्च कर G20 समिट की मेजबानी की थी। समिट के आखिरी दिन जब घोषणा पत्र जारी करने की बात आई तो रूस और अमेरिका में यूक्रेन वॉर के जिक्र को लेकर आपस में ठन गई। समिट को फेल होने से बचाने के लिए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने डिप्लोमेसी का सहारा लिया। उन्होंने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। जोको विडोडो ने लावरोव को घोषणा पत्र जारी होने से पहले ही वापस रूस चले जाने के लिए राजी कर लिया। अमेरिका और पश्चिमी देशों के मन मुताबिक घोषणा पत्र में यूक्रेन में जंग खत्म करने की मांग की गई। हालांकि, उसके अंत में ये हिस्सा जुड़वाया गया कि इस घोषणा पत्र से चीन और रूस सहमत नहीं हैं। वहीं, 10 महीने के बाद अब भारत के सामने भी यही चुनौती है।
कैसे बना G20 संगठन
1997-98 में एशिया में वित्तीय संकट का दौर आया, जब थाईलैंड ने अपनी मुद्रा बाट को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले विनियम के लिए खुला छोड़ दिया। इससे करेंसी का लगातार अवमूल्यन शुरु हुआ और देखते ही देखते इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे पड़ोसी देश भी इसकी जद में आए। ये मुद्रा संकट रूस और ब्राजील तक फैल गया और इसने वैश्विक मुद्रा संकट का रूप ले लिया। इस संकट के बाद 1999 में जी-20 का गठन एक अनौपचारिक फोरम के तौर पर किया गया जिसका मकसद था कि दुनिया की सबसे अहम औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों के बीच अंतराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता को लेकर विचार विमर्श हो और आपस में समन्वय बने। 2007 में विश्वव्यापी आर्थिक और वित्तीय संकट के बाद जी-20 फोरम को राष्ट्रप्रमुखों के स्तर का बना दिया गया. 2009 आते आते ये तय हुआ कि विश्वव्यापी आर्थिक संकट से निपटना राष्ट्रप्रमुखों के स्तर पर ही संभव होगा। इसके लिए जी-20 देशों के प्रमुखों का नियमित रूप से मिलते रहना जरूरी माना गया. इस तरह से जी-20 दुनिया के वित्तीय संकटों के निपटने का अहम फोरम बन गया।
G20 का मंच भारत के लिए कितना फायदेमंद
दुनिया की जीडीपी में 85 फीसदी हिस्सा जी-20 देशों का है। वहीं, दुनिया के व्यापार में 75 फीसदी की हिस्सेदारी भी इन्हीं की है। साथ ही जी-20 देशों में दुनिया की दो तिहाई आबादी रहती है। जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता का है, लेकिन समय के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडा भी इसमें शामिल कर लिया गया है।
भारत को कैसे मिली G20 की अध्यक्षता
G20 की अध्यक्षता रोटेशन के आधार पर एक-एक बार संगठन के सभी देशों को मिलती है। पिछली बार इंडोनेशिया को मिली थी। आर्थिक रूप से इंडोनेशिया भारत से कमजोर देश है। इसके बावजूद उसे G20 समिट की मेजबानी का मौका मिला। अगली बार भी किसी विकासशील देश को ही इसकी अध्यक्षता मिलेगी। G20 की अध्यक्षता मिलना कोई उपलब्धि की बात नहीं है। एक सर्वे के मुताबिक, 46% लोगों ने माना है कि PM मोदी की लीडरशिप की वजह से भारत को G20 की अध्यक्षता मिली है। जबकि, हकीकत ये है कि हर बार समिट की मेजबानी बदलती है।
भारत G20 समिट में किन मुद्दों को उठा सकता है?
दुनिया में फिलहाल 3 बड़े मुद्दे हैं, ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत G20 समिट में उन मुद्दों को उठा सकता है –
1. अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता: भारत यूरोपियन यूनियन की तरह ही अफ्रीकन यूनियन को इस संगठन का सदस्य बनवाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। G20 के शेरपा स्तर की बैठकों में इस बात पर सहमति भी बनी है। वहीं, इस मुद्दे पर चीन ने भारत का साथ दिया है। दरअसल, दोनों ही देश अफ्रीका में अपनी साख मजबूत करना चाहते हैं।
2. अनाज संकट: यूक्रेन जंग की वजह से दुनिया में अनाज की कीमतें बढ़ी हैं। इसका ज्यादातर असर अफ्रीकी देशों पर पड़ा है। रूस का कहना है कि हमने ब्लैक सी कॉरिडोर के जरिए जो अनाज एक्सपोर्ट किया उसका 50% हिस्सा पश्चिमी देशों ने अपने पास रख लिया। ब्लैक सी के जरिए यूक्रेन को हथियार भेजे। ऐसे में भारत ब्लैक सी अनाज डील फिर से लागू करवाने के लिए रूस को मनाने की कोशिश कर सकता है। हालांकि, पुतिन पहले ही साफ कर चुके हैं कि वो ग्रेन कॉरिडोर की फिर से शुरुआत नहीं करेंगे।
3. कर्ज: जुलाई में अमेरिका के सेंट्रल बैंक ने अपनी ब्याज दरों को बढ़ाकर 22 सालों के सबसे ऊंचे लेवल पर पहुंचा दिया है। इसकी वजह से डॉलर पहले से ज्यादा मजबूत हो गया। ज्यादातर कर्ज का भुगतान डॉलर में होता है। इसकी वजह से दुनिया के कई गरीब देशों के लिए कर्ज की कीमत काफी बढ़ गई है। फिलहाल करीब 52 देश कर्ज के संकट से जूझ रहे हैं। भारत इस मुद्दे को उठाकर दुनिया के गरीब और विकासशील देशों की मदद कर सकता है।