शाजापुर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्य प्रदेश के शाजापुर विधानसभा क्षेत्र की। ग्रामीण और शहरी परिवेश वाली शाजापुर विधानसभा में फिलहाल बीजेपी के अरुण भीमावद विधायक हैं। उन्होंने पिछली बार कांग्रेस के कद्दावर नेता हुकुम सिंह कराड़ा को मात दी थी। शाजापुर में सियासत की बिसात बिछ चुकी है। सियासतदानों ने अपनी गोटियां भी बिछानी शुरू कर दी हैं। शाजापुर विधासभा क्षेत्र के गांवों में भी राजनीति की ये गर्मी साफ महसूस होने लगी है। पिछले चार-पांच सालों में यदा कदा नजर आने वाले नेता भी अब गलियों और चौराहों पर अक्सर नजर आने लगे हैं ।
इस इलाके में आप एक दिन घूम आइए आपको समझ में आ जाएगा कि जनता नेताओं से यूं ही नाराज नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ शहरी क्षेत्र में भी सड़क, पानी, बिजली और पेयजल की समस्या बनी हुई है। वहीं सड़कों पर आवारा पशुओँ का मुद्दा यहां बड़ी समस्या बन चुकी है। स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो कोई बड़ा अस्पताल नहीं होने के कारण अक्सर मरीजों को भोपाल-इंदौर जैसे शहरों में रेफर कर दिया जाता है। शाजापुर विधानसभा की कई कॉलोनियां पीएम नरेंद्र मोदी की स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ाती है। इन कॉलोनियों में न तो नालियां बनाई गई हैं न सड़क है, जिसे लेकर यहां रहने वाले लोगों की शिकायतों की लंबी लिस्ट है। आने वाले विधानसभा चुनाव में राज्य में भले ही बड़े–बड़े मुद्दे गूंजें। लेकिन शाजापुर में तो पानी और नाली ने बड़े मुद्दों के लिए गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है। अब आप भले ही इन्हें बासी कहें लेकिन इन इलाकों मे तो एक बार फिर पानी और नाली जैसे ही मुद्दे ही गूंजने वाले हैं।
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शाजापुर के सियासी मिजाज की बात करें तो भले ही सीट पर बीजेपी काबिज हो। लेकिन 2013 तक ये विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत किला हुआ करता था। कांग्रेस के हुकुम सिंह कराड़ा यहां लगातार 25 साल तक विधायक रहे। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां के वोटर्स का झुकाव कांग्रेस की तरफ रहा है। लेकिन पिछले चुनाव के बाद यहां के सियासी फिजा में बदलाव महसूस की जा सकती है। शाजापुर में 25 सालों बाद कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ने में सफल हुई बीजेपी तो उसमें बीजेपी के अरुण भीमावद की अहम भूमिका रही। उन्होंने 25 वर्षों तक कांग्रेस का परचम लहराने वाले हुकूमसिंह कराड़ा को हराया और शाजापुर की सियासत में अपनी धाक जमाई। अब जब चुनावी साल है तो एक बार फिर यहां चुनावी जंग की तैयारियां शुरू हो गई है। मुद्दों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है।
वैसे सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो ग्रामीण परिवेश वाली इस सीट पर शुरू से कांग्रेस का दबदबा रहा है और 1994 से 2013 तक कांग्रेस के हुकूम सिंह कराड़ा यहां से विधायक रहे। शाजापुर में हूकूम सिंह कराड़ा के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2003 में उमा भारती लहर में भी वे 18 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें अरुण भीमावद के हाथों हार का सामना करना पड़ा। हालांकि हुकूम सिंह कराड़ा 1600 वोटों के बेहद कम मार्जिन से चुनाव हारे थे। इस चुनाव में बीजेपी को जहां 76911 वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 74973 वोट मिले।
1 लाख 97 हजार 258 मतदाता वाले शाजापुर विधानसभा में पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 2601 है वहीं महिला वोटर्स की संख्या 94 हजार 657 है। शाजापुर में जाति समीकरण भी बेहद खास है। यही वजह है कि यहां की सियासत में मुद्दों के साथ–साथ जाति समीकरण भी पार्टी और प्रत्याशियों की किस्मत तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में शाजापुर का मैदान मारने के लिए सियासत के खिलाड़ी मुस्तैदी से तैयारी में जुट गए हैं। बीजेपी जहां राज्य सरकार के कामकाज गिना कर अपने पक्ष में महौल बनाने में जुटी है तो वहीं कांग्रेस अपने इतिहास की याद दिला कर लोगों को रिझाने में लगी है। जहां तक टिकट दावेदारों का सवाल है तो दोनों पार्टियों में लंबी लिस्ट नजर आती है।
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शाजापुर की सियासत में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई है। सियासी चालें चली जाने लगी हैं चौपालों और चौबारों पर इस बात की भी चर्चा होने लगी हैं कि पार्टियों के तुरुप के इक्के यानी उम्मीदवार कौन होंगे। जहां तक कांग्रेस का सवाल है वो यहां से पिछला चुनाव हारने वाले हुकुम सिंह कराड़ा एक बार फिर प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। वे कमलनाथ गुट के कद्दावर नेताओँ में गिने जाते हैं। गुर्जर समाज से ताल्लुक रखने वाले हुकुम सिंह की उम्र इस बार उनकी टिकट दावेदारी में बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। ऐसे में अगर कांग्रेस उनकी टिकट काटती है तो रामवीर सिंह सिकरवार का दावा सबसे मजबूत है। संगठन में अच्छी पैठ और राजपूत समाज से आने वाले रामसिंह को भी उम्मीद है कि इस बार पार्टी उन्हें मौका देगी। यही वजह है कि वो चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। हालांकि उन्हें पार्टी के कई कई नेताओं से चुनौती मिलनी तय है।
वहीं दूसरी ओर बीजेपी की बात करें तो सीटिंग एमएलए अरुण भीमावद टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं। पाटीदार समाज से आने के साथ ही अरुण भीमावद की युवाओं में अच्छी पकड़ है। और पिछले चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता हुकुम सिंह को हराने के बाद पूरे आत्मविश्वास से भरे हैं। लिहाजा इस बार भी वो अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। लेकिन इस बार बीजेपी के लिए टिकट फाइनल करना इतना आसान नहीं रहेगा। क्योंकि टिकट के लिए कई नेता अपनी दावेदारी कर रहे हैं। इस लिस्ट में पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष प्रदीप चंद्रवशी सहित कई नेता हैं। जो टिकट पाने के लिए क्षेत्र में सक्रिय हैं।
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कुल मिलाकर शाजापुर की सियासत में दोनों दलों में दावेदारों की लंबी कतार है। ऐसे में दोनों पार्टियों के सामने सामने सबसे बड़ी चुनौती। सही उम्मीदवार चुनने की है। उसके बाद ही वो एक दूसरे से मुकाबले को तैयार हो पाएगी।
वेब डेस्क, IBC24
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