मैंने 14 साल तक खेत में मजदूरी की, ‘पद्मश्री’ जैसे सम्मान के बारे में सोचा भी नहीं था: बामनिया |

मैंने 14 साल तक खेत में मजदूरी की, ‘पद्मश्री’ जैसे सम्मान के बारे में सोचा भी नहीं था: बामनिया

मैंने 14 साल तक खेत में मजदूरी की, ‘पद्मश्री’ जैसे सम्मान के बारे में सोचा भी नहीं था: बामनिया

:   Modified Date:  April 23, 2024 / 07:22 PM IST, Published Date : April 23, 2024/7:22 pm IST

इंदौर (मध्यप्रदेश), 23 अप्रैल (भाषा) ‘पद्मश्री’ से अलंकृत लोक गायक कालूराम बामनिया कभी खेतिहर मजदूर थे और तब उन्होंने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उन्हें यह प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान मिल सकता है।

बामनिया उन हस्तियों में शामिल हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली में सोमवार को आयोजित समारोह में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया।

बामनिया ने इंदौर प्रेस क्लब में मंगलवार को संवाददाताओं से कहा,‘‘मैंने 14 साल तक एक खेत में मजदूरी की है। मैं तो अपनी मस्ती में डूबकर गाता रहता था। तब मैंने कल्पना तक नहीं की थी कि मुझे पद्मश्री जैसा कोई बड़ा सम्मान मिल सकता है।’’

बामनिया, इंदौर के पड़ोसी देवास जिले के रहने वाले हैं। वह पश्चिमी मध्यप्रदेश की मालवी बोली में कबीर वाणी गाने के लिए मशहूर हैं। उनके प्रशंसक उन्हें ‘‘मालवा का कबीर’’ भी कहते हैं।

बामनिया ने कहा,‘‘पद्मश्री मिलने से मेरे जीवन में जैसे नया सूरज उगा है। मैं खुश हूं कि मुझे पद्मश्री के रूप में मेरे काम का प्रतिफल मिला। यह सम्मान समूचे मालवा अंचल का सम्मान है।’’

उन्होंने बताया कि जब वह खेत में मजदूरी करते थे तब उनके पास साइकिल भी नहीं थी।

बामनिया याद करते हैं,‘‘उस जमाने में इंदौर के क्षिप्रा कस्बे में हर महीने की दो तारीख को भजनों का कार्यक्रम होता था। मुझे भी इस कार्यक्रम में गाने का न्योता मिलता था। मैं अपने घर से साढ़े पांच किलोमीटर पैदल चलकर इसमें गाने के लिए जाता था।’’

बामनिया ने बताया कि वह अपनी पत्नी को इतनी दूर पैदल नहीं ले जा सकते थे जिन्हें घर में अकेले रहने में डर लगता था। उन्होंने कहा,‘‘…इसलिए मैं अपने घर के दरवाजे की बाहर से कुंडी लगाकर कार्यक्रम में जाता था। इस दौरान मेरी पत्नी घर में ही रहती थीं और मैं दो भजन गाकर जल्द से जल्द घर लौट आता था।’’

बामनिया ने एक सवाल पर कहा,‘‘सांप्रदायिक माहौल तो आदिकाल से चल रहा है, लेकिन मुझ जैसे कबीर अनुयायी इससे कतई नहीं डरते और अपना काम करते रहते हैं। हम हमेशा निर्भीकता से अपनी बात कहते हैं।’’

उन्होंने यह भी कहा,‘‘कबीर ने हमेशा जातियों, धर्मों और सम्प्रदायों से ऊपर उठकर बात की। उन्होंने मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने की बात की। मौजूदा वक्त में कबीर वाणी के प्रसार की बहुत जरूरत है।’’

भाषा हर्ष संतोष

संतोष

 

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