विजयवर्गीय और अन्य के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति पर तीन महीने में फैसला करें मुख्य सचिव: अदालत |

विजयवर्गीय और अन्य के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति पर तीन महीने में फैसला करें मुख्य सचिव: अदालत

विजयवर्गीय और अन्य के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति पर तीन महीने में फैसला करें मुख्य सचिव: अदालत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:47 PM IST, Published Date : September 27, 2022/10:07 am IST

इंदौर (मध्य प्रदेश), 27 सितंबर (भाषा) भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के इंदौर नगर निगम के महापौर रहने के दौरान कथित तौर पर हुए 33 करोड़ रुपये के पेंशन घोटाले में नया मोड़ आ गया है।

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता केके मिश्रा की याचिका का निपटारा करते हुए उन्हें निर्देश दिया है कि वह इस मामले में तत्कालीन लोक सेवकों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति हासिल करने के लिए दो हफ्ते के भीतर राज्य सरकार के सामने नये सिरे से अर्जी दायर करें। इन तत्कालीन लोक सेवकों में विजयवर्गीय के अलावा कथित पेंशन घोटाले के वक्त नगर निगम में पदस्थ निर्वाचित जन प्रतिनिधि और सरकारी अफसर शामिल हैं।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि मामले के पुराने दस्तावेजों के साथ दायर होने वाली मिश्रा की नयी अर्जी को लेकर राज्य के मुख्य सचिव शीघ्र कदम उठाएं और इस पर तीन महीने के भीतर कानूनी प्रावधानों के मुताबिक ‘‘तर्कपूर्ण आदेश’’ जारी करें।

उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने 23 सितंबर को ये निर्देश जारी किए और इस सिलसिले में याचिकाकर्ता की ओर से सोमवार को मीडिया के साथ जानकारी साझा की गई।

उच्च न्यायालय में याचिका पर बहस के दौरान राज्य सरकार के वकील की ओर से कहा गया कि अभियोजन स्वीकृति को लेकर मिश्रा की अर्जी पर शीघ्र फैसला किया जाएगा।

गौरतलब है कि इंदौर की एक विशेष अदालत ने कथित पेंशन घोटाले में तत्कालीन महापौर विजयवर्गीय और अन्य लोक सेवकों के खिलाफ मिश्रा की दायर शिकायत पर कार्यवाही 29 अगस्त को खत्म कर दी थी क्योंकि 17 साल का लंबा अरसा बीतने के बावजूद राज्य सरकार ने इन लोगों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी।

मिश्रा इस वक्त प्रदेश कांग्रेस इकाई के मीडिया विभाग के अध्यक्ष हैं, जबकि विजयवर्गीय 2000 से 2005 के बीच इंदौर के महापौर रहे थे और तब से लेकर अब तक नगर निगम में भाजपा की सत्ता चल रही है। मिश्रा का आरोप है विजयवर्गीय के इंदौर के महापौर रहते नगर निगम ने निराश्रितों, विधवाओं और दिव्यांगों को शहर की सहकारी साख संस्थाओं के जरिये सरकारी पेंशन बांटी, जबकि नियमत: इस पेंशन का भुगतान राष्ट्रीयकृत बैंकों या डाकघरों के जरिये किया जाना था।

मिश्रा के मुताबिक नगर निगम द्वारा अपात्रों, काल्पनिक नाम वाले लोगों और मृतकों तक को पेंशन का बेजा लाभ दिए जाने से सरकारी खजाने को कथित तौर पर 33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

भाषा हर्ष आशीष प्रशांत

प्रशांत

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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