भूमि अधिग्रहण विधेयक के बाद कृषि कानून प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी हार का कारण बनेंगे: हन्नान मोल्लाह | Agricultural laws will lead to PM Modi's second defeat after land acquisition bill: Hannah Moallah

भूमि अधिग्रहण विधेयक के बाद कृषि कानून प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी हार का कारण बनेंगे: हन्नान मोल्लाह

भूमि अधिग्रहण विधेयक के बाद कृषि कानून प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी हार का कारण बनेंगे: हन्नान मोल्लाह

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:39 PM IST, Published Date : January 10, 2021/9:26 am IST

नयी दिल्ली, 10 जनवरी (भाषा) अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की सरकार से आठ दौर की वार्ता के बाद भी कोई समाधान नहीं निकलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत असफलता है।

लोकसभा में पश्चिम बंगाल के उलूबेरिया संसदीय क्षेत्र का आठ बार प्रतिनिधित्व कर चुके मोल्लाह ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक संसद से पारित न करा पाना प्रधानमंत्री की पहली हार थी और अबकी बार ये तीनों कृषि कानून उनकी दूसरी हार का कारण बनेंगे।

राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन के आगे के रुख के बारे में मोल्लाह से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:

सवाल: आठ दौर की वार्ता, लेकिन कोई नतीजा नहीं। क्या उम्मीद करते हैं सरकार से और आंदोलन का रुख क्या रहेगा?

जवाब: मुझे तो कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है। क्योंकि पिछली बैठक अच्छे माहौल में नहीं हुई। माहौल गरम था और ऊंची आवाज में बात की गई। अब तक की वार्ता में ऐसा पहली बार हुआ। सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। सरकार का रवैया कहीं से भी सहयोगात्मक नहीं है। वह अपनी बातें किसानों पर थोपना चाह रही है और वह इसी लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है। अब सरकार हमें उच्चतम न्यायालय जाने को कह रही है। हमने उन्हें स्पष्ट कह दिया कि हम अदालत नहीं जाएंगे। क्योंकि किसानों का सीधा संबंध सरकार से है। सरकार ही किसानों की समस्या दूर कर सकती है। यह नीतिगत मामला है। इसमें अदालत का कोई स्थान नहीं है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह किसानों के साथ है या उद्योगपतियों के साथ। हम तो चर्चा चाहते हैं लेकिन सरकार उस चर्चा को नतीजे की ओर नहीं ले जाना चाहती। पिछले सात महीने से हम जो मांग कर रहे हैं, सरकार उसपर चर्चा तक करने को तैयार नहीं है। एक लोकतांत्रिक सरकार को जनता की आवाज सुननी चाहिए लेकिन यह सरकार नहीं सुन रही है। वह अपनी डफली बजा रही है।

सवाल: तो क्या विकल्प है और आंदोलन कब तक जारी रहेगा?

जवाब: जब तक सरकार किसानों के हित में कुछ करने का मन नहीं बनाएगी तब तक समाधान का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। हम किसानों के लिए यह जिंदगी और मौत का सवाल है। इस कानून को हमने स्वीकार कर लिया तो देश का किसान खत्म हो जाएगा। इसलिए हमने तय किया है कि 20 जनवरी तक सभी जिलों में जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया जाएगा। उसके बाद 23 से 25 जनवरी तक पूरे देश में ‘गवर्नर हाउस’ का घेराव किया जाएगा और उसके बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड समाप्त होने के बाद ‘किसान परेड’ निकाली जाएगी। संविधान ने हमें अपनी आवाज उठाने का हक दिया है। इसलिए लोकतांत्रिक तरीके से हमारा आंदोलन जारी रहेगा।

सवाल: आरोप लग रहे हैं कि किसान समाधान चाहते हैं लेकिन ‘वामपंथी तत्व’ अड़चनें पैदा कर रहे हैं। आप क्या कहेंगे?

जवाब: यह सरासर झूठ है। इस आंदोलन में 500 से अधिक संगठन हैं। इनमें सात-आठ संगठन कुछ ऐसे हैं जो वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं। हम सात महीने से यह लड़ाई लड़ रहे हैं और किसी भी राजनीतिक विचारधारा को हमने इसमें शामिल होने नहीं दिया। सरकार रोज नया झूठ बोल रही है। कभी हिंदू, मुसलमान तो कभी बंगाली बिहारी। इससे भी बात नहीं बनी तो चीन, पाकिस्तान और खालिस्तान किया गया। फिर कहा गया कि यह पंजाब का आंदोलन है। जब भारत बंद किया गया तो पटना और कोलकाता में पंजाब के किसान थोड़े ही गए थे। यह अखिल भारतीय आंदोलन है और पंजाब भी इसका हिस्सा है। हां, पंजाब सामने जरूर है।

सवाल: आंदोलन लंबा खिंच रहा है और कहा जा रहा है कि इसकी वजह से धीरे-धीरे इसके प्रति जनता की सहानुभूति कम होती जा रही है?

जवाब: बिलकुल गलत धारणा है यह। हजारों लोग रोज आ रहे हैं आंदोलन का समर्थन करने। पिछले दो दिनों में ही ओडिशा और बंगाल से सैकड़ों लोग यहां सिंघू बॉर्डर पहुंचे हैं। हर रोज पांच-सात हजार नए लोग पहुंच रहे हैं। केरल से एक-दो दिन में लगभग एक हजार लोग आ रहे हैं।

सवाल: किसान टस से मस होने को तैयार नहीं और सरकार अपने रुख पर कायम है। कैसे निकलेगा रास्ता?

जवाब: अब तक समाधान नहीं निकल पाना सही मायने में सरकार की असफलता तो है ही, प्रधानमंत्री मोदी की निजी असफलता भी है। वह इतने बड़े नेता हैं। उनके सामने किसी को कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती। वह जो कहेंगे वही होगा। तो क्या वह किसानों की समस्या का समाधान नहीं कर सकते…मोदी जब पहली बार (2014 में) आए थे तो वह भूमि अध्यादेश लेकर आए थे। उसके खिलाफ हम लोगों ने ऐसी लड़ाई लड़ी थी कि तीन बार की कोशिश के बावजूद वह इसे संसद से पारित नहीं करा सके थे। आज भी वह पड़ा हुआ है। वह मोदी जी की जिंदगी की पहली हार थी। किसानों ने उन्हें मजबूर किया था। भूमि अधिग्रहण के लिए जो बड़ा आंदोलन हुआ था, उससे उन्हें पहली बार चुनौती मिली थी। हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। भूमि अधिग्रहण आंदोलन में उनकी पहली हार हुई थी और अब इस आंदोलन में उनकी दूसरी हार होगी। हम लड़ेंगे और अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

 

 
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