नेपाल में संसद भंग करने का मामला : वकीलों ने राष्ट्रपति भंडारी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए | Nepal's dissolution of Parliament: Lawyers question President Bhandari's impartiality

नेपाल में संसद भंग करने का मामला : वकीलों ने राष्ट्रपति भंडारी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए

नेपाल में संसद भंग करने का मामला : वकीलों ने राष्ट्रपति भंडारी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:51 PM IST, Published Date : June 24, 2021/11:50 am IST

काठमांडू, 24 जून (भाषा) संसद को 22 मई को भंग करने में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा है कि उनकी कार्रवाई से यह स्पष्ट है कि वह के पी शर्मा ओली के अलावा किसी को प्रधानमंत्री पद पर नहीं देखना चाहती हैं।

उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को सुनवाई शुरू की। इन याचिकाओं को 146 सांसदों ने संयुक्त रूप से दायर किया है जो नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री पद के दावे का समर्थन करते हैं।

प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को संसद को भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ओली 275 सदस्यीय सदन में विश्वास मत खोने के बाद फिलहाल अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।

‘काठमांडू पोस्ट’ ने वकील गोविंदा बांदी के हवाले से लिखा, ‘‘देउबा के दावे को भंडारी द्वारा खारिज किए जाने से स्पष्ट है कि वह के पी शर्मा ओली के अलावा किसी को भी प्रधानमंत्री पद पर नहीं देखना चाहती हैं।’’

शिकायतकर्ताओं की तरफ से बहस करने वाले छह वकीलों ने बुधवार को चार घंटे तक अपना पक्ष रखा।

संसद को भंग करने के विरोध में उच्चतम न्यायालय में 30 याचिकाएं दायर की गई हैं।

संविधान पीठ ने कहा है कि पहले वह देउबा की तरफ से दायर याचिका का निपटारा करेगी जिसे 146 सांसदों का समर्थन हासिल है। इसमें भंग संसद के ओली के सीपीएन-यूएमएल के 23 सांसद भी शामिल हैं।

बांदी ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा के दावे को अवैध कराने के लिए अतिरिक्त संवैधानिक अधिकार प्रदान किए, जिनके पास 149 सांसदों का समर्थन है।’’

अखबार ने लिखा कि शिकायतकर्ता के वकीलों ने दावा किया कि राष्ट्रपति ने मध्यरात्रि के समय संसद को भंग करने को मंजूरी दी जबकि उन्हें पता था कि देउबा का दावा वैध है।

वरिष्ठ वकील खांबा बहादुर खाती ने कहा, ‘‘संसद भंग करने का इरादा सही नहीं था।’’

अखबार ने कहा कि वकीलों ने तर्क दिया कि 149 सांसदों के हस्ताक्षर भंडारी को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए काफी थे और अगर उन्हें हस्ताक्षर के दुरुपयोग की आशंका थी तो वह मामले का निर्णय संसद पर छोड़ देतीं।

ओली ने अदालत से कहा कि प्रधानमंत्री नियुक्त करना न्यायपालिका का काम नहीं है।

भाषा नीरज नीरज नरेश

नरेश

 

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