द्विपक्षीय मुद्दे क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने से सीधी बातचीत की संभावना क्षीर्ण होती है | Raising bilateral issues in regional, international fora is likely to be a direct dialogue

द्विपक्षीय मुद्दे क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने से सीधी बातचीत की संभावना क्षीर्ण होती है

द्विपक्षीय मुद्दे क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने से सीधी बातचीत की संभावना क्षीर्ण होती है

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:33 PM IST, Published Date : March 12, 2021/9:04 am IST

(योषिता सिंह)

संयुक्त राष्ट्र, 12मार्च (भाषा) भारत ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था शांति और स्थिरता संबंधी अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है और क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे मामले लाए जा रहे हैं जो पूरी तरह से द्विपक्षीय है और इससे सीधी और आपसी बातचीत की संभावना क्षीर्ण होती है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई उपप्रतिनिधि के. नगराज नायडू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि कुछ देशों की संकीर्ण नीतियों और अपने वजूद के प्रति खतरा की उनकी उनका आत्मगत सोच ने कई क्षेत्रों में संकट बढ़ा दिया है।

नायडू ने कहा, ‘‘ आज अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था शांति और स्थिरता संबंधी अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। कुछ देशों की संकीर्ण नीतियों और अपने वजूद के प्रति खतरा की उनकी उनका आत्मगत सोच ने कई क्षेत्रों में संकट बढ़ा दिया है। ’’

उन्होंने यूरोप में सुरक्षा और सहयोग के लिए संगठन (ओएससीई) के कार्यों पर बुधवार को परिषद की ब्रीफिंग में कहा,‘‘ क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे मामले लाए जा रहे हैं जो पूरी तरह से द्विपक्षीय है और इससे सीधी और आपसी बातचीत की संभावना क्षीर्ण होती है।’’

नायडू ने कहा कि मानवता के विकास के लिए शांति और सुरक्षा पहली शर्त है और यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वह संघर्ष को रोके और सतत शांति और सुरक्षा बनाने रखने की स्थितियां पैदा करे।

उन्होंने कहा कि भारत का मानना है कि संबंधित पक्षों के बीच किए गए द्विपक्षीय समझौते विवादों के शांतिपूर्ण ठंग से निपटारे का मार्ग मुहैया कराते हैं।

वैश्विक आतंकवाद रोधी प्रयासों और ओएससीई के योगदान पर चर्चा करने हुए नायडू ने कहा कि यूरोप के कई इलाकों में हाल ही में हुए हमले ये दिखाते हैं कि आतंकवादियों ने अपनी क्षमताओं को काफी बढ़ा लिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘ हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी साझा लड़ाई कमजोर नहीं पड़े।’’

साथ ही नायडू ने कहा कि ओएससीई उन क्षेत्रीय संगठनों में शामिल है जिसने भारत की संसद पर 2001 में हुए आतंकवादी हमले की सबसे पहले निंदा की थी।

नायडू ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तथा सामने आने वाले और खतरों से निपटने में ओएससीई की भूमिका अहम है।

साथ ही उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए उस आठ सूत्री कार्ययोजना का जिक्र किया जिसका प्रस्ताव विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जनवरी में परिपद में अपने संबोधन में रखा था।

उन्होंने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र और ओएससीई के बीच सक्रिय सहयोग को समर्थन देता है।

भाषा

शोभना शाहिद

शाहिद

 

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