नई दिल्ली। भारत रत्न और तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं रहे। 94 साल के अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली स्थित एम्स में आखिरी सांस ली। गुरुवार शाम 5 बजकर 5 मिनट पर एम्स ने मेडिकल बुलेटिन में इसकी घोषणा की। बुधवार शाम से ही उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी और उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। अटल बिहारी वाजपेयी को 11 जून को यूरिन इंफेक्शन, लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक इंफेक्शन और किडनी की परेशानी के चलते एम्स में भर्ती कराया गया था। मधुमेह से पीड़ित 93 वर्षीय भाजपा नेता का एक ही गुर्दा काम करता था। हालांकि, इन सबमें डिमेंशिया से भी अटल बिहारी वाजपेयी सबसे ज्यादा पीड़ित थे। उनकी तबीयत बिगड़ने की खबर मिलने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी सहित पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं का एम्स आना जाना लगा हुआ था।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों के अंदाज का हर कोई कायल है। अटल जी को हिंदी से काफी लगाव है। इस लगाव का असर उस वक्त भी देखा जा सकता था जब 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में दिया था। किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहली बार भाषण हिंदी में भाषण देने का ये पहला मौका था, जिसने सभी के दिल में हिंदी भाषा का गहरा प्रभाव छोड़ दिया था।
अटल बिहारी वाजपेयी उच्च कोटी के वक्ता के तौर पर भी पहचाने जाते रहे हैं । उनके संबोधन की गूंज ऐसी होती कि लोग अपनी जगह से हिलते भी नहीं थे । धारदार भाषण देने वाले अटल जी ओज के साथ ही व्यंग्य और हास्य के ज़रिए सबको प्रभावित करने की प्रतिभा के धनी है।अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के संघर्ष भरे रास्तों में चलते हुए अपने अंदर के कवि को कभी मरने नहीं दिया। यही वजह है कि एक शीर्ष राजनीतिज्ञ के अलावा उनकी छवि संवेदनशील कवि के रूप में है।
भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना नहीं था आसान
11 मई 1998 को राजस्थान के पोखरण में तीन बमों के सफल परीक्षण के साथ भारत न्यूक्लियर स्टेट बन गया। ये देश के लिए गर्व का पल था। ऐसे में अगर पूछा जाए कि भारत को परमाणु राष्ट्र बनाने वाला प्रधानमंत्री कौन? जवाब मिलेगा अटल बिहारी वाजपेयी। हालांकि 19 मार्च 1998 को दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए अटल को कई क्षेत्रीय पार्टियों से समझौते करने पड़े थे। इसलिए भारत को परमाणु राष्ट्र बनाना इतना आसान नहीं था।
आइए जानते हैं कि कैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम रहने के दौरान कैसे न्यूक्लियर स्टेट को हरी झंडी दिखाई थी. 1998 में भारतीय जनता पार्टी ‘देश की परमाणु नीति का और परमाणु अस्त्रों को तैनात करने के विकल्प का पुनर्मूल्यांकन’ करने तक को तैयार हो गई थी. इसका असर पार्टी की छवि पर भी पड़ा था.
अप्रैल 1998 में रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (IDSA) के निदेशक जसजीत सिंह ने कहा था, ‘उनकी (बीजेपी की) छवि तो ऐसी है कि वो मानो पहला काम ही परमाणु बम के परीक्षण का करेंगे, लेकिन उन्होंने काफी संयम दिखाया है.’ ऐसे में कहा जा सकता है कि जसजीत सिंह को अगले महीने पोखरण में होने वाले टेस्ट का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था.
न्यूक्लियर टेस्ट का काम पर्दे के पीछे जारी था. वहीं 1998 में ही सेनाध्यक्ष वीपी मलिक ने सेना की डिमांड खुलकर सामने रखी थी. 21 अप्रैल 1998 को उन्होंने कहा था, ‘परमाणु अस्त्रों और प्रक्षेपास्त्रों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार सेना की रणनीतिक प्रतिरोध क्षमता विकसित करे.’
वेब डेस्क, IBC24
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