एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…जी हां ये गाना नहीं बल्कि फिल्म का नाम है डायरेक्टर शैली चोपड़ा निर्माता विधु विनोद चोपड़ा की बहन हैं। जप इस फिल्म को लेकर आई हैं फिल्म में राजकुमार राव, अनिल कपूर, सोनम कपूर, जूही चावला जैसे बिग स्टार्स हैं.बलबीर सिंह चौधरी(अनिल कपूर) जो पंजाब के मोगा में रहता है बिजनेसमैन है वो भतीजी की शादी देखकर चाहता है कि उसकी बेटी स्वीटी (सोनम कपूर) की शादी हो जाए लेकिन स्वीटी का भाई बबलू बहन को अकेला नहीं छोड़ता, क्योंकि वो उसका एक राज जानता है लेकिन स्वीटी के राज को वो दुनिया के सामने नहीं आने देना चाहता।वहीं दिल्ली में साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) प्ले के राइटर हैं जो अपनी टीम और केटरिंग ऑनर (जूही चावला) के साथ एक नई कहानी की खोज में निकलते ।और वो स्वीटी से टक्करा जाता हैं साहिल को स्वीटी से पहली नजर में प्यार हो जाती है फिर बैकग्राउंड में एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा गाना बजता है.साहिल को लगता है कि स्वीटी भी उससे प्यार करती है वो दिल्ली से अपना नाटक करने के लिए पंजाब के मोगा पहुंच जाता है। स्वीटी से मिलने और प्रजोप करनेघरवालों समझते हैं कि स्वीटी का अफेयर एक मुसलमान लड़के से है ऐसे में बलबीर साहिल मिर्जा से मिलते हैं जहां उसकी मुलाकात जूही चावला से होती है और बलवीर को उससे प्यार हो जाता है। उधर स्वीटी और साहिल की शादी पक्की कर देते हैं लेकिन एक अजीब कश्मकश में स्वीटी साहिल को अपनी लाइफ का वो सच बताती है जिससे वो बचपन से जूझती आई है अकेले जो सिर्फ उसका भाई बबलू जानता है जिसे सुनने के बाद साहिल के भी होश उड़ जाते हैं स्वीटी साहिल से कहती है कि वो शादी नहीं कर सकती क्योंकि वो किसी लड़के से प्यार नहीं करती बल्कि एक लड़की से प्यार करती है सच्चा वाला प्यार और यहां हो जाता है इंटरवल दर्शक के साथ हम भी शॉक्ड.?
दरअसल यहां कहानी समलैंगिक और लेस्बियन रिश्तों की तरफ मुड़ जाती है और इमोशनल मोड़ ले लेती है अब बलबीर अपनी बेटी के सच से अनजान शादी का सपना देख रहा है। वहीं साहिल स्वीटी का सच सुनकर क्या करता है कहानी किस मोड़ पर पहुंची है उसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। यहां सभी कलाकारों की एक्टिंग जबरदस्त है राजकुमार राव को स्पेस थोड़ा कम मिला है सोनम कपूर के साथ उनके शॉट्स काफी अच्छे है। अनिल कपूर और सोनम कपूर की बाप-बेटी की कैमेस्ट्री शानदार है वहीं फिल्म का म्यूजिक भी ठीक ठाक है। फिल्म का पहला भाग थोड़ा स्लो है लेकिन सैकेंड भाग तेजगति से भागता है। अब सवाल ये उठता है कि आप ये फिल्म क्यों देखे तो आप ये फिल्म देख सकते हैं क्योंकि बदलते वक्त और समाज में कुछ भी हो सकता है। वैसे भी लेस्बियन या समलैंगिक रिश्तों पर पहले भी फिल्में बन चुकी हैं हां ये अलग बात है कि पहले सोशल मीडिया और मोबाईल नेटवर्क इतना फास्ट नहीं था .आपको नंदिता दास की फिल्म फायर याद ही होगी जिसने विदेशों में अवार्ड पाए, लेकिन भारत में रिलीज नहीं हो पाई फिल्म का जमकर विरोध हुआ था, ये फिल्म भी लेस्बियन रिश्तों पर बेस्ड है।
वैसे ये फिल्म देखने के बाद आपको इतना तो जरुर मेहससू होगा कि अगर आपके आस पास ऐसे लोग हैं तो उनका सम्मान करें उन्हें जीने दें क्योंकि प्राकृति ने सबको एक सा नहीं बनाया कुछ खास वर्ग अलग होता है। लेकिन उन्हें भी समाज रहने और जीने का हक है उन्हें अपनाए नफरत या हीन भावना से ना देखें, हालांकि भारतीय दर्शकों के लिहाज से सिनेमा हॉल में जाने की वजह लोग इसे मोबाइल में देखना पसंद करेंगे।खासतौर पर छोटे शहरों में ये फिल्म ज्यादा पसंद ना की जाए, लेकिन मेट्रो सीटिज़ में चल सकती है।
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