जबलपुर लोकसभा सीट से विवेक तन्खा की लड़ाई नरेंद्र मोदी से, भाजपा के गढ़ में राकेश सिंह बने मजबूरी, देखिए पूरा विश्लेषण | Lok Sabha Elections 2019 : Jabalpur lok sabha Constituency : BJP VS Congress

जबलपुर लोकसभा सीट से विवेक तन्खा की लड़ाई नरेंद्र मोदी से, भाजपा के गढ़ में राकेश सिंह बने मजबूरी, देखिए पूरा विश्लेषण

जबलपुर लोकसभा सीट से विवेक तन्खा की लड़ाई नरेंद्र मोदी से, भाजपा के गढ़ में राकेश सिंह बने मजबूरी, देखिए पूरा विश्लेषण

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:09 PM IST, Published Date : April 25, 2019/12:44 pm IST

जबलपुर । मध्यप्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाली जबलपुर लोकसभा सीट राज्य की सबसे मुख्य और पूरे महाकौशल को साधने वाली सीटों में शामिल है। जबलपुर में RSS का काफी प्रभाव है,ये सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है, पिछले तकरीबन ढाई दशक से बीजेपी का वर्चस्व यहां कायम है। वर्ष 1996 से बीजेपी यहां से लगातार जीतती आ रही है। बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह सन 2004 से यहां के सांसद हैं। पिछले तीन बार वे जबलपुर से सासंद चुने जा रहे हैं। राकेश सिंह एक स्वच्छ छवि के नेता हैं। उन्होंने हर बार पहले से अधिक वोटों से जीत हासिल की है। एक समय कांग्रेस का गढ़ रही जबलपुर सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव परिणामों से एक उम्मीद बंध रही है।

8 विधानसभाएं

जबलपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें हैं- पाटन, जबलपुर उत्तर, पनागर, बरगी, जबलपुर कैंट, सिहोरा, जबलपुर पूर्व और जबलपुर पश्चिम।एक लंब अंतराल के बाद कांग्रेस ने 2018 में 4 सीटों पर कब्जा जमाया है। बीजेपी को जबलपुर शहर के साथ बरगी सीट पर खासा नुकसान उठाना पड़ा है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली इस अप्रत्याशित बढ़त की वजह से कांग्रेस में उत्साह है । वहीं राकेश सिंह के खिलाफ एंटी इनकम बेंसी है। विधानसभा में कांग्रेस की सीट यहां से एक से बढ़कर दो हो गईं। बावजूद जीत की राह आसान नहीं दिख रही है।

लोकसभा चुनाव 2019 : प्रत्याशी

कांग्रेस प्रत्याशी तन्खा की राजनीतिक विरासत लंबी है। मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. कैलाशनाथ काटजू उनके करीबी रिश्तेदार रहे हैं। उनका ससुराल पक्ष भी राजनीति से जुड़ा रहा। उनके दादा ससुर स्वर्गीय पं.श्याम सुंदर नारायण मुशरान मप्र के वित मंत्री रहे। मध्यप्रदेश की राजनीति में लंबे से सक्रिय रहे अजय नारायण मुशरान उनके ससुर थे, जो दिग्विजय सरकार में 10 साल तक वित मंत्री रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए यह सीट ज्यादा मायने रखती है, बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने महाकौशल को केंद्र में लाने के लिए जबलपुर से सांसद राकेश सिंह को प्रदेश की कमान सौंपी है। अब जबकि यह प्रदेश अध्यक्ष की सीट है इसलिए यहां जीतना बीजेपी की साख का सवाल बन गया है। इसके अलावा RSS लगातार अपना कार्यक्षेत्र बढ़ा रहा है। उसके लिए जबलपुर में बीजेपी के लिए जमीन बचाए रखना भी जरुरी है। महाकौशल क्षेत्र का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय जबलपुर में है। पिछले छह चुनावों में बीजेपी ने यहां जीत हासिल की है। इस सीट पर कांग्रेस अंतिम बार सन 1991 में जीती थी। जबलपुर में अब तक हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी को आठ चुनावों और कांग्रेस को सात चुनावों में जीत मिलीहै। 

चुनावी मुद्दे

जबलपुर का पिछड़ापन सबसे बड़ी चुनावी मुद्दा है। राज्य के गठने के बाद राजधानी के प्रबल दावेदार रहे जबलपुर को हाईकोर्ट और विद्युत विभाग का मुख्यालय देकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई। लेकिन व्यवसायिक पिछड़ापन आज भी इस शहर के लिए नासूर है। इस वजह से एयर कनेक्टिविटी में समस्याएं आती है। जबलपुर आज भी अपने कस्बेनुमा रुप से बाहर नहीं निकल पा रहा है। शहर की कसावट भरी बसाहट भी एक बड़ी समस्या है। हालांकि हाईकोर्ट के आदेश से पहड़ियों पर से जरुर अतिक्रमण हटाए गए हैं। लेकिन सड़क तक पसरी हुई दुकानों को व्यवस्थित कर पाना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।

जबलपुर लोकसभा सीट : जातीय समीकरण

जबलपुर में 14.3 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 15.04 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की हैं

मौजूदा सांसद

बीजेपी के राकेश सिंह

2014 में कितने मतों से जीते    5,64,609 वोट
रनरअप दल :                       कांग्रेस के विवेक तन्खा
2014 में वोटर्स की संख्या        17,02,794 कुल मतदाता
महिला मतदाता                     7,95,482 
पुरुष मतदाता                        9,07,312 
2014 में वोटों का फीसदी        51.36 फीसदी

जबलपुर की जनसंख्या समेत 2014 के चुनाव का समस्त आंकड़ा

जबलपुर के मौजूदा सांसद राकेश सिंह तकरीबन 56 साल के हैं और राज्य बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं। राकेश सिंह ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान महाकौशल क्षेत्र में खास तौर पर रेलवे सुविधाओं में इजाफे के लिए काफी काम किया है। जबलपुर को एयर कनेक्टिविटी दिलाने में भी उनका बड़ा योगदान है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राकेश सिंह को 5,64,609 वोट मिले थे जो कि 56.34 फीसदी थे। उनके खिलाफ कांग्रेस के प्रत्याशी वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा को 3,55,970 यानी कि 35.52 प्रतिशत वोट मिले थे। मतदान 10,02,184 वोटरों ने किया था जो कि 58.55 फीसदी था। इससे पहले 2009 के चुनाव में राकेश सिंह को 3,43,922 वोट मिले थे जो कि 54.29 प्रतिशत थे। उनके खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्वर नीखरा को 2,37,919 वोट मिले थे जो कि कुल मतदान का 37.56 प्रतिशत थे। साल 2009 में मतदान 6,33,493 लोगों ने किया था जिसका प्रतिशत 43.80 था।

सन 2011 की जनगणना के अनुसार जबलपुर की जनसंख्या जबलपुर की जनसंख्‍या 24 लाख 60 हजार 714 है। यहां 59.74 प्रतिशत आबादी शहरी और 40.26 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान जारी की गई पुनरीक्षित मतदाता सूची के मुताबिक इस क्षेत्र में कुल मतदाता 17 लाख 63 हजार 520 है. इनमें से आठ लाख 49 हजार 848 महिला मतदाता हैं।

जबलपुर का राजनैतिक इतिहास

जबलपुर लोकसभा क्षेत्र में जहां पहले बदलाव की प्रवृत्ति रही है वहीं 1996 के बाद से बीजेपी और आरएसएस ने यहां के परिवेश को पूरी तरह से भगवामय बना दिया है। आजादी के बाद 1951 से लेकर 1974 तक इस सीट पर कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। इसके बाद यहां के मतदाता निरंतर बदलाव करते रहे। लेकिन 1996 से जबलपुर के मतदाताओं ने बदलाव पसंद नहीं किया। पहली लोकसभा के चुनाव के दौरान जबलपुर में दो सीटें थीं। सन 1951 में हुए चुनाव में जबलपुर उत्तर सीट से कांग्रेस के सुशील कुमार पटैरिया जीते थे और मंडला-जबलपुर दक्षिण सीट से पहले मंगरु गुरु उइके सांसद बने। इस सीट पर बाद में हुए उपचुनाव में देश भर में बीड़ी के उत्पादन के लिए विख्यात सेठ गोविंद दास चुने गए। साल 1957 में जबलपुर और मंडला दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बन गए। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास जीते। इसके बाद सेठ गोविंद दास का जीत का सिलसिला चलता रहा। उन्होंने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव भी जीते।

शरद यादव ने बदली थी जबलपुर की राजनीति

साल 1974 जबलपुर सीट पर बदलाव का साल रहा। बिहार राजनीति का बड़ा चेहरा शरद यादव ने जबलपुर से ही अपनी राजनीति शुरु की थी। जबलपुर में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे शरद यादव साल 1974 में मुख्य धारा की राजनीति में प्रवेश किया। शरद यादव, जयप्रकाश नारायण के विद्यार्थी आंदोलन से जुड़े थे और छात्र राजनीति के दौरान उन्होंने जबलपुर की राजनीति में अपनी पैठ जमा ली थी। जबलपुर हमेशा से बुध्दिजीवियों का केंद्र रहा है, हरिशंकर परसाई जैसे व्यंग्यकार ने इस धरती पर जन्म लिया, हाईकोर्ट होने की वजह से यहां वरिष्ठ वकीलों की एक बड़ी जमात रही है,पत्रकारिता के क्षेत्र में भी जबलपुर मध्यप्रदेश के अन्य नगरों से ज्यादा समृधद रहा है,यही वजह है कि जब जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के खिलाफ माहौल बनाया तो उसकी गहरा असर जबलपुर में हुआ । उस दौर में कांग्रेस के खिलाफ एक लहर भी बन गई थी, सेठ गोविंद दास उद्योगपति थे जबकि शरद यादव आम जनता के बीच का चेहरा थे। हालांकि उस समय सेठ गोविंद दास चुनाव मैदान में नहीं थे। जबलपुर की फिजां को भांप चुके शरद यादव ने भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से नाराज जबलपुर की जनता ने शरद यादव को कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी के मुकाबले ज्यादा तरजीह दी। शरद यादव पहली बार गैर कांग्रेसी के रुप में जबलपुर से सांसद चुने गए। आपातकाल के बाद सन 1977 में हुए चुनाव में एक बार फिर शरद यादव जीते।

आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी सरकार दो साल के अंदर गिर गई तो जबलपुर की जनता ने मान लिया की सरकार चलाना सबके बस की बात नहीं है। 1980 में हुए चुनाव में जबलपुर के मतदाताओं ने फिर बदलाव को अंजाम दिया। इस बार कांग्रेस के मुंदर शर्मा सांसद बने। हालांकि बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट बीजेपी ने कांग्रेस से छीन ली। बीजेपी के बाबूराव परांजपे को विजय हासिल हुई। आठवीं लोकसभा के लिए 1984 में कांग्रेस के अजयनारयण मुशरान विजयी हुए और 1989 में एक बार फिर बीजेपी के बाबूराव परांजपे चुने गए। सन 1991 में कांग्रेस के श्रवण कुमार पटेल सांसद चुने गए।

ग्यारहवीं लोकसभा के लिए 1996 में हुए चुनाव के साथ जबलपुर सीट पर बदलाव का सिलसिला थम गया। बीजेपी के बाबूराव परांजपे ने जीत हासिल की। 1998 में भी बाबूराव परांजपे ने जीत का सिलसिला कायम रखा। सन 1999 में बीजेपी की जयश्री बनर्जी जीतीं। सन 2004 में बीजेपी के राकेश सिंह जीते। इसके बाद उनकी जीत का क्रम रुका नहीं। वे 2009 और 2014 का भी चुनाव जीते। बीजेपी ने 2019 में एक बार फिर राकेश सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है।

 

 
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