विंध्य प्रांत की महत्वपूर्ण सीट है शहडोल, अजीत जोगी भी हार चुके हैं यहां से चुनाव, जानिए क्या है इस बार का हाल | Lok Sabha Elections 2019 : shahdol lok sabha Constituency : BJP VS Congress

विंध्य प्रांत की महत्वपूर्ण सीट है शहडोल, अजीत जोगी भी हार चुके हैं यहां से चुनाव, जानिए क्या है इस बार का हाल

विंध्य प्रांत की महत्वपूर्ण सीट है शहडोल, अजीत जोगी भी हार चुके हैं यहां से चुनाव, जानिए क्या है इस बार का हाल

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:03 PM IST, Published Date : April 25, 2019/11:32 am IST

भोपाल। लोकसभा चुनाव 2019 के ऐलान के साथ ही सियासी बिसात भी बिछ चुकी है। वहीं, चुनाव को लेकर चुनावी घमासान भी जोरों पर है। इसी कड़ी में हम आपको मध्यप्रदेश की शहडोल सीट की राजनीतिक समीकरण से अवगत करते हैं। शहडोल मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक है, विंध्य क्षेत्र रीवा और सीधी के बाद शहडोल भी महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक है। यहां चौथे चरण में यानि 29 अप्रैल को मतदान होना है। शहडोल लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती है। इस सीट पर बीजेपी से हिमाद्री सिंह, कांग्रेस से पर्मिला सिंह और बसपा से मोहदल सिंह पाव सहित 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं।

विधानसभा सीटें

शहडोल लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं, जिसमें 4 पर भाजपा तो 4 पर कांग्रेस का कब्जा है।
जयसिंहनगर, अनूपपुर, मानपुर, जैतपुर, पुष्पराजगढ़, बरवारा, कोटमा 

राजनीतिक समीकरण

अगर सियासी नजरिए से देखें तो इस सीट पर लंबे समय से भाजपा का कब्जा रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो इस सीट पर हाल के चुनावों में बीजेपी को ही जीत मिली है। शहडोल सीट पर सबसे पहले 1975 में चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस के कमल नारायण सिंह को जीत मिली थी। हालांकि शहडोल की जनता ने दोनों दलों के नेताओं को यहां राज करने का मौका दिया, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी को लोगों ने सर आंखों पर बैठाया है।
 
अगर देखा जाए तो भाजपा ने शहडोल सीट पर कांग्रेस ने 7 बार और भाजपा ने 5 बार जीत दर्ज किया है। साल 1996, 1998, 1999 और 2004 में जीत दर्ज की है, इससे पहले यहां कांग्रेस का कब्जा रहा है। हाल के कुछ चुनावों पर नजर डालें तो बीजेपी के दलपत सिंह और मौजूदा सांसद ज्ञान सिंह को सबसे ज्यादा जीत मिली है। दलपत सिंह का तो निधन हो चुका है, लेकिन उनका दबदबा आज भी बरकरार है। वे 2016 का उपचुनाव जीतकर तीसरी बार यहां से सांसद बनें। साल 2009 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस ने वापसी की और राजेश नंदिनी यहां के सांसद बनीं।

जातिगत समीकरण

वर्तमान हालात को अगर देखा जाए तो चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में जातिगत समीकरण का भी अहम रोल होता है। वहीं, राजनीतिक दलों के नेता भी इसी आधार पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारते हैं। हलांकि शहडोल सीट अनुसूचित जनजाति आरक्षीत है, तो राजनीतिक दलों के पास अन्य कोई विकल्प नहीं बचता। 2011 की जनगणना के मुताबिक शहडोल  की जनसंख्या 2410250 है। यहां की 79.25 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 20.75 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। यहां की 44.76 आबादी अनुसूचित जनजाति और 9.35 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति के लोगों की है।
 
वहीं, अगर मतदाताओं के आंकड़ों को देखा जाए तो चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 15,61,321 मतदाता थे। इनमें से 7,54,376 महिला मतदाता और 8,06,945 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 62.03 फीसदी मतदान हुआ था।

अजीत जोगी भी हार चुके हैं चुनाव

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए इस सीट पर बीजेपी से हिमाद्री सिंह, कांग्रेस से पर्मिला सिंह और बसपा से मोहदल सिंह पाव सहित 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो 1952 से लेकर 2016 तक शहडोल में भाजपा—कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है। शहडोल सीट पर शुरुआती दौर से 1962 तक सोशलिस्ट विचारधारा की पकड़ मजबूत रही, लेकिन 1996 के बाद से भाजपा यहां मजबूत खिलाड़ी बनकर उभरी। आदिवासी आरक्षीत सीट और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद यहां की जनता नेताओं को सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रही। दिवंगत सांसद दलवीर सिंह और अजीत जोगी जैसे कद्दावर नेताओं को भी यहां हार का स्वाद चखना पड़ा है।
 
इतिहास गवाह है कि केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे दलवीर सिंह को इस सीट ने राजनीति के हाशिए पर पहुंचा दिया तो अजीत जोगी को आखिरकार छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा था। खैर क्या एक बार फिर से यहां कमल खिलेगा या फिर कांग्रेस की वापसी होगी ये एक बड़ा सवाल सबके सामने हैं क्योंकि राज्य के सियासी समीकरण बदल गए हैं। आज एमपी में कांग्रेस की सरकार है तो वहीं भाजपा लंबे शासन के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता से बाहर हो गई है। ऐसे में क्या इस सीट पर भाजपा फिर से विजय पताका फहरा पाएगी। ये देखना दिलचस्प होगा। कहना गलत नहीं होगा कि इस बार यहां एक कड़ा चुनावी मुकाबला देखने को मिलेगा। 

2014 में क्या था जनता का जनादेश

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस सीट पर जीत दर्ज मिली थी। भाजपा के दलपत सिंह ने कांग्रेस के राजेश सिंह को हराया था। दलपत सिंह को 5,25,419 वोट मिले थे तो राजेश सिंह को  2,84,118 वोट मिले थे। इस चुनाव में दलपत सिंह 2,41,301 वोटों के भारी अंतर से जीते थे। वहीं सीपीआई यहां पर तीसरे स्थान पर रही थी।
 

उम्मीदवार

राजनीतिक दल

 वोट

 वोट प्रतिशत

दलपत सिंह  भाजपा  5,25,419 55.47 %
राजेश सिंह  कांग्रेस  2,84,118 30     %
परमेश्वर सिंह  सीपीआई  27,619 2.92  %

2009 में क्या था जनता का जनादेश

वर्ष 2009 के चुनाव में लंबे समय बाद यहां से कांग्रेस को जीत मिली थी। 2014 का चुनाव हारने वाले राजेश सिंह ने इस चुनाव में बीजेपी के नरेंद्र सिंह को हराया था। इस चुनाव में राजेश सिंह को 2,63,434 वोट मिले थे। वहीं नरेंद्र सिंह को 2,50,019 वोट मिले। राजेश सिंह ने इस चुनाव में 13,415 वोटों से जीत हासिल की थी।

उम्मीदवार

राजनीतिक दल

 वोट

वोट प्रतिशत

राजेश सिंह कांग्रेस 2,63,434 41.86 %
नरेंद्र सिंह बीजेपी 2,50,019 39.73 %
रामरतन सिंह गोंगपा 30,967 4.92   %

 
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