Morena Lok Sabha Elections 2019 : मुरैना लोकसभा क्षेत्र, बीजेपी के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती, केंद्रीय मंत्री तोमर हैं मैदान में | Morena Lok Sabha Elections 2019 : Morena Lok sabha Constituency : BJP VS Congress

Morena Lok Sabha Elections 2019 : मुरैना लोकसभा क्षेत्र, बीजेपी के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती, केंद्रीय मंत्री तोमर हैं मैदान में

Morena Lok Sabha Elections 2019 : मुरैना लोकसभा क्षेत्र, बीजेपी के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती, केंद्रीय मंत्री तोमर हैं मैदान में

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:58 PM IST, Published Date : May 9, 2019/1:36 pm IST

लोकसभा चुनाव के तहत छठवें चरण के मतदान में मध्यप्रदेश के आठ संसदीय क्षेत्रों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर, विदिशा,भोपाल और राजगढ़ में 12 मई को वोटिंग होनी है। मध्यप्रदेश के भिंड मुरैना क्षेत्र में चंबल घाटी के बीहड़ भले ही डाकुओं के नाम से कुख्यात हो लेकिन यहीं एक गुमनाम इलाके में संसद भवन की प्रतिकृति भी मौजूद है। यहां मौजूद ‘चौंसठ योगिनी मंदिर है तो शिवालय है, लेकिन दिल्ली स्थित संसद भवन की इमारत इसी मंदिर की हूबहू प्रतिकृति है।

राजनीति की बात करें तो मध्यप्रदेश का मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव को मिलाकर यहां 13 चुनाव हो चुके हैं। जिसमें से सात बार भाजपा, दो बार कांग्रेस, एक-एक बार जनसंध, भारतीय लोकदल तो एक बार निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि इस सीट पर बसपा का भी अच्छा प्रभाव माना जाता है।

प्रत्याशी

बीजेपी ने यहां से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर दांव लगाया है तो कांग्रेस ने कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राम निवास रावत को मैदान में खड़ा किया है। इन दोनों के बीच बसपा से हरियाणा सरकार के पूर्व मंत्री करतार सिंह भड़ाना भी ताल ठोक रहे हैं।

8 विधानसभा क्षेत्र

1967 से 2004 तक यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित थी। 2009 में परिसीमन के बाद यह सीट सामान्य वर्ग के लिए हो गई। मुरैना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। माधवपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह यहां की विधानसभा सीटें हैं। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है। जबकि भाजपा के खाते में सिर्फ एक सीट है।

राजनीतिक इतिहास

1996, 1999 और 2014 में यहां बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहा। इस समय भाजपा के अनूप मिश्रा यहां से सांसद हैं। लेकिन इस बार यहां मुकाबला जोरदार है। एक ओर भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का सियासी कॅरियर दांव पर है तो दूरी ओर कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रामनिवास रावत हैं जो कांग्रेस लहर के बावजूद 4 महीने पहले विधानसभा चुनाव अपने ही मजबूत गढ़ में हार चुके हैं। तीसरे प्रत्याशी बसपा के करतार सिंह भडाना (गुर्जर) हैं। तोमर और रावत 2009 के लोकसभा चुनाव में भी आमने-सामने थे।

मुरैना लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई। अस्तित्व में आते ही इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित घोषित किया गया। पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार आत्मदास ने जीत हासिल की। 1971 में जनसंघ के हुकुमचंद चुनाव जीते। 1980 में कांग्रेस पहली बार यहां से जीती। 1984 में इंदिरा लहर के चलते इस सीट पर फिर से कांग्रेस का कब्जा हो गया। 1977 में जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीते छविराम अर्गल के बेटे अशोक अर्गल ने इस सीट पर सबसे ज्यादा समय तक सांसद रहे। अशोक अर्गल ने 1996, 1998, 1999, 2004, यहां से भाजपा के सांसद रहे। 2004 में हुए परिसीमन में ये सीट सामान्य हो गई। 2009 में यहां से भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर ने जीत दर्ज की। 2014 में मोदी लहर में नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर से चुनाव लड़ा। भाजपा ने अनूप मिश्रा को मैदान में उतारा और उन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी के वृंदावन लाल को शिकस्त दी। 

जातिगत समीकरण

उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण इस क्षेत्र में बसपा का भी बड़ा प्रभाव है। चंबल नदी के दाएं तट पर राजस्थान और उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा यह इलाका राजस्थान के कोटा से लेकर बांरा, करौली, सवाई माधौपुर, धौलपुर और यूपी के आगरा की सीमा तक फैला हुआ है। हर जगह के अलग मुद्दे और अपने जातिगत समीकरण हैं। मुरैना-श्योपुर संसदीय सीट पर जातिवाद की राजनीति हावी है। यहां ठाकुर और ब्राम्हण की लड़ाई रहती है। जातिवाद की राजनीत के कारण ही इस सीट का रूख विपरीत दिशा में बहती है। मुरैना संसदीय सीट यूपी की सीमा से लगती है। जिस कारण यहां बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभाव दिखाई देता है। एट्रोसिटी एक्ट को लेकर मध्यप्रदेश के इसी हिस्से में सबसे ज्यादा विरोध हुआ था। इस क्षेत्र में दलित, ठाकुर और ब्राह्मण मतदाता जीत और हार तय करते हैं। यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। भाजपा की यहां जीत का सबसे बड़ा कारण रहा ठाकुर और ब्राह्मण मतदाताओं को अपने पाले में लाने का। यहां से भाजपा के कई कद्दावर नेता ठाकुर और ब्राह्मण थे। जबकि कांग्रेस हमेशा यहां ब्राह्मण नेता खोजती रही, जिसके चलते हार का सामना करना पड़ा।

चुनावी मुद्दे

मुरैना ऐसी संसदीय सीट है जहां राष्ट्रीय से ज्यादा स्थानीय मुद्दे ही सामने आते हैं। राष्ट्रवाद का मुद्दा भले ही यहां उतना प्रभाव न डाल सके लेकिन ग्रामीण इलाकों में कर्ज माफी और न्याय योजना का कुछ असर हो सकता है। वहीं बीजेपी कांग्रेस सरकार की कर्ज माफी योजना को छलावा बताते हुए मैदान में है। इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और रोजगार जैसे मुद्दे तो हैं ही।

2009 का जनादेश

विजयी प्रत्याशी  : नरेंद्र तोमर (बीजेपी) 300647(42.3 फीसदी) वोट

रनरअप        :  रामनिवास रावत (कांग्रेस) 199650(28.09 फीसदी) वोट

सेकंड रनर अप  : बलवीर सिंह (बसपा) 19.99 फीसदी वोट

2014 का जनादेश

विजयी प्रत्याशी : अनूप मिश्रा (बीजेपी) 375567 (43.96 फीसदी)वोट

रनर अप      : वृन्दावन सिंह सिकरवार (बसपा) 242586(28.4 फीसदी) वोट

सेकंड रनर अप : डॉ.गोविंद (कांग्रेस) 184253(21.57 फीसदी) वोट

मुरैना-श्योपुर लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या

2019 में 18 लाख 22 हजार 101 मतदाता (22 फरवरी को मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन अनुसार)

2014 में 17 लाख 536 मतदाता

महिला मतदाता : 76,4,026

पुरुष मतदाता   : 9,38,787

 

 
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