सत्यभामा की सहायता से हुआ था बलशाली नरकासुर का वध, रुप चौदस के दिन विभिन्न राज्यों में प्रचलित हैं ये परंपराएं | Satyabhama killed the mighty Narakasura These traditions are prevalent in different states on the day of Rup Chaudas

सत्यभामा की सहायता से हुआ था बलशाली नरकासुर का वध, रुप चौदस के दिन विभिन्न राज्यों में प्रचलित हैं ये परंपराएं

सत्यभामा की सहायता से हुआ था बलशाली नरकासुर का वध, रुप चौदस के दिन विभिन्न राज्यों में प्रचलित हैं ये परंपराएं

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:56 PM IST, Published Date : November 13, 2020/6:42 am IST

धर्म। आज नरक चौदस है, इस दिन को रुप चौदस भी कहते हैं। दरअसल दैत्य राज नरकासुर इतना बलशाली था कि उनसे कुछ ही दिनों के युद्ध में देवराज इंद्र को पराजित कर दिया और स्वर्ग का शासक बन गया है। अपनी शक्ति के दंभ में उसने देवताओं की माता अदिति के कानों से कुंडल छीन लिया। ये समाचार जब कृष्णजी की पटरानी सत्यभामा तक पहुंचा तो वो बेहद नाराज हो गईं।

दरअसल सत्यभामा अदिति की संबंधी थीं। उन्होंने भगवान कृष्ण से ये अनुरोध किया कि वो नरकासुर को सजा दें, लेकिन मुश्किल ये था कि नरकासुर अपने वरदान के चलते लगभग अवध्य था। उसे कोई भी पुरुष मार नहीं सकता था। ऐसे में सत्यभामा ने अपने हाथों से उसका वध करने का निश्चय किया। कृष्णजी उनके सारथी बने और सत्यभामा ने दुष्ट नरकासुर का वध कर दिया। जिस तिथि पर नरकासुर का वध हुआ वो थी कार्तिक चतुर्दशी, तभी से ये दिन नरक चौदस के रूप में जाना जाने लगा।

ये भी पढ़ें- धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि, कुबेर और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधा…

लोक परंपरा में इस दिन का बहुत महत्व है। देश के अलग-अलग हिस्से में नरक चतुर्दशी पर कई परंपराओं का पालन किया जाता है। मिसाल के तौर पर दक्षिण भारत में ये दिन बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए शुभ माना जाता है। दक्षिण के रहवासी इस दिन सुबह स्नान के बाद तेल में कुमकुम मिलाकर उसे शरीर पर लगाते हैं। यही नहीं…इस दिन करेले को हाथ के प्रहार से तोड़कर उसका रस माथे पर लगाया जाता है। दरअसल दक्षिण में करेले को नरकासुर के सिर का प्रतीक माना जाता है।

ये भी पढ़ें- दिवाली के दिन भूलकर भी न करें ये काम, नाराज हो सकती हैं मां लक्ष्मी

महाराष्ट्र में नरक चौदस पर सुबह के वक्त पानी में तिल के कुछ दाने डालकर उसमें नहाने की परंपरा है । नरक चौदस से जुड़ी एक और परंपरा के अनुसार इस दिन घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जलाकर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे घर से दूर कहीं बाहर जाकर रख देता है। इस दौरान घर के दूसरे सदस्य अंदर रहते हैं और उस दीए को नहीं देखते। ये दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और अनिष्टकारी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।

ये भी पढ़ें- पत्नी के समर्पण को प्रदर्शित करता है करवा चौथ पर्व, चांद के इंतजार .

उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में नरक चतुर्दशी के दिन पुराने मटकों को घर से बाहर निकालकर सड़कों पर फोड़ने का रिवाज है। पुराने मटकों को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। मटके फोड़ने की परंपरा को किला भट्टी कहा जाता है। इस दिन कई इलाकों में घूरे का पूजन भी किया जाता है। लोग अपने घरों से दीपक जलाकर ले जाते हैं और उसे घूरे के पास रख देते हैं। पुराणों में कहा गया है कि नरक चतुर्दशी पर यमराज के साथ ही महाकाली की भी आराधना करनी चाहिए। मान्यता ये भी है कि इस दिन यम की पूजा करने वाले को मृत्यु के बाद नर्क का मुंह नहीं देखना पड़ता।