इस दिन है श्रावण मास की आखिरी पूर्णिमा, जानिए क्या है इस पूर्णिमा का महत्व, कैसे होती है इसकी पूजा

इस दिन है श्रावण मास की आखिरी पूर्णिमा, जानिए क्या है इस पूर्णिमा का महत्व, कैसे होती है इसकी पूजा This day is the last full moon of the month of Shravan

इस दिन है श्रावण मास की आखिरी पूर्णिमा, जानिए क्या है इस पूर्णिमा का महत्व, कैसे होती है इसकी पूजा

Shravan Purnima

Modified Date: August 24, 2023 / 10:58 am IST
Published Date: August 24, 2023 10:58 am IST

Shravan Purnima इस साल सावन का महिना बहुत ही शुभ है। क्योंकि इस साल सावन पूरे 2 महिने का पड़ा है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का बहुत महत्व है। श्रावण मास में पड़ने वाली पूर्णिमा को श्रावण पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस बार यह व्रत 30 अगस्त 2023 को रखा जाएगा. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती पूजा की जाती है इसके साथ ही इसी दिन रक्षाबंधन का त्योहार भी मनाया जाता है लेकिन इस बार रक्षा बंधन का ये त्योहार 2 दिनों का पड़ रहा है। हिंदू मान्यताओँ के अनुसार इस पूजा को करने से व्यक्ति के सारे कष्ट और दुख समाप्त हो जातें हैं।

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श्रावण माह की पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। इस दिन की गई पूजा से भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओँ को पूरा करते हैं।

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जानिए क्या है पूजा का शूभ मूहूर्त

श्रावण पूर्णिमा का व्रत 30 अगस्त 2023 को रखा जाएगा।

श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023: 30 अगस्त की सुबह 10:58 मिनट से शुरू होगी।

श्रावण पूर्णिमा तिथि 2023 समाप्ति: 31 अगस्त की सुबह 7:05 मिनट तक श्रावण पूर्णिमा खत्म होगी।

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क्या है सावन की इस पूर्णिमा का महत्व

Shravan Purnima सावन की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस व्रत रखने से जीवन में कई लाभ मिलते हैं। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान गौरीशंकर की पूजा करते हैं तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है और इस व्रत को सभी पापों को नाश करने वाला माना जाता है। इस व्रत को रखने से बुद्धि,अच्छे सेहत और लंबी आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन देशभर में विशेषकर उत्तर भारत में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन दिन गरीबों को दान करना बेहद शुभ माना जाता है और इसके साथ ही गौदान का भी काफी महत्व होता है।

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सावन पू्र्णिमा की पूजा विधि

श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी में स्नान करके साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं. इस दिन स्नानादि के बाद गाय को चारा डालना, चीटियों, मछलियों को भी आटा डालना शुभ माना जाता है।

एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर उस पर भगवान सत्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित की जाती है। उन्हें पीले रंग के वस्त्र, पीले फल, पीले रंग के पुष्प अर्पित करके पूजा की जाती है।

इसके बाद भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ी या सुनी जाती है। कथा पढ़ने के बाद चरणामृत और पंजीरी का भोग लगाया जाता है, इस प्रसाद को स्वयं ही ग्रहण कर लोगों को बांटा जाता है।

माना जाता है कि विधि-विधान से श्रावण पूर्णिमा व्रत किया जाए तो वर्ष भर के व्रतों के समान फल श्रावणी पूर्णिमा के व्रत से मिलता है।

 

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