अंबिकापुर। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड में आज बात हो रही है छत्तीसगढ़ के लुंड्रा विधानसभा सीट के विधायक चिंतामणि सिंह की। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर लुंड्रा विधानसभा अंबिकापुर शहर की सीमा से लगा हुआ है। सीट पर पिछली दो बार से कांग्रेस का कब्जा है। चिंतामणि सिंह यहां से मौजूदा विधायक हैं लेकिन विकास की बात करें तो विधानसभा क्षेत्र के कई गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। बेहतर सड़क कनेक्टिविटी और आवागमन की सुविधा नजर आती है। वहीं बिजली और हाथी की समस्या भी यहां आने वाले चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने की पूरी संभावना है, जिसका जवाब विधायकजी को देना पड़ेगा।
लुंड्रा विधानसभा के लोगों का नसीब बन गया है कच्चे रास्तों पर चलना। रास्ता भी इतना खराब कि चंद मिनटों का सफर कई घंटों में पूरा होता है। चुनाव से पहले नेताजी ने यहां की जनता से वादे तो खूब किए थे। लेकिन धरातल पर वो कहीं नजर नहीं आते। यहां सबसे बड़ी समस्या सड़क कनेक्टिविटी की है। लुंड्रा आज भी सरगुजा के बाकी इलाकों से कटा हुआ है। इसकी वजह से यहां विकास की रफ्तार काफी धीमी है और लोग बेरोजगारी की वजह से पलायन कर रहे हैं।
लुंड्रा विधानसभा क्षेत्र में हाथियों का आतंक भी आने वाले चुनाव में बड़ा मुद्दा है। आए दिन हाथियों के पैरों तले कुचलकर लोग अपनी जान गंवाते हैं। हाथियों से बचने के लिए ग्रामीण सुरक्षित स्थान की तलाश में खुले आसमान के नीचे रातें गुजारते हैं। वहीं लोगों की ये भी शिकायत है कि इन सब के बाद भी विधायकजी उनसे मिलने नहीं आते हैं।
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लुंड्रा की जनता की नाराजगी है कि नेताजी चुनाव के वक्त ही वोट मांगने आते हैं और उसके बाद लापता हो जाते हैं। सुविधाओं के नाम पर इन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है। हाथी से बचने के लिए ग्रामीण लंबे समय से बिजली की मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी मांग अब तक अधूरी है। लेकिन विधायकजी के पास इसकी दलील समस्याओं के संबंध में अपनी अलग ही दलील है, लेकिन बीजेपी इन समस्याओं के लिए विधायक को ही जिम्मेदार मानती है।
वहीं दूसरी बुनियादी सुविधाओँ की बात की जाए तो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरगुजा के बाकी विधानसभा क्षेत्रों से काफी पिछड़ा नजर आता है। लुंड्रा में आज भी कॉलेज नहीं खुल पाया है। वहीं अस्पतालों में स्टाफ की कमी के कारण मरीजों को बाहर ले जाना पड़ता है। अवैध रूप से संचालित दर्जनों स्टोन क्रशर प्लांट यहां के पर्यावरण और सड़कों की दुश्मन बनी हुए हैं। लुंड्रा विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत जो अब नगर निगम में शामिल हो चुकी है, वहां भी समस्याएं जस की तस बनी हुयी है जिसके लिए बीजेपी के नेताओं के निशाने पर विधायक ही हैं, हालांकि विधायक इसे सही नहीं मानते हैं।
लुंड्रा विधानसभा के लुंड्रा और धौरपुर ब्लाक सबसे पिछड़े इलाके माने जाते हैं। इसकी वजह ये है कि लुंड्रा की अधिकतम आबादी गांवों में निवास करती है और उन्हें अपने रोजमर्रा के काम और दो जून की रोटी का जुगाड़ करने से फुर्सत ही नहीं मिलती है और नेता इसी बात का फायदा उठाते हैं और कुर्सी मिलने के बाद दोबारा मुड़कर भी नहीं देखते हैं।
लुंड्रा विधानसभा सीट सरगुजा जिले के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। ग्रामीण क्षेत्र की विधानसभा सीट होने के अलावा इसका सीधा दखल अंबिकापुर की राजनीति में है। ऐसा इसलिए क्योंकि लुंड्रा विधानसभा की सीमाएं अंबिकापुर शहर को चारों तरफ से घेरे हुए हैं। ये सीट पिछले दो कार्यकाल से कांग्रेस के खाते में ही जा रही है। लेकिन बीजेपी ने इस बार यहां से जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इसके लिए बीजेपी से संभावित उम्मीदवारों ने जनसंपर्क भी शुरू कर दिया है।
लुंड्रा विधानसभा ऐसी सीट है जिस पर जीत को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही आश्वस्त नजर आ रहे हैं। इस बार कांग्रेस के सामने इस सीट को बचाने की चुनौती है, क्योंकि वर्तमान विधायक के प्रति जनता में नाराजगी नजर आ रही है। जनता का सीधा आरोप है कि विधायक तो मिलते ही नहीं। हालांकि वर्तमान विधायक चिंतामणी सिंह के अलावा कांग्रेस की तरफ से अभी कोई दूसरा नाम सामने नहीं आया है, ऐसे में माना जा रहा है कि चिंतामणी ही इस बार के चुनावी मैदान में होंगे।
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विधानसभा की इन घुमावदार सड़कों की तरह ही यहां की सियासत है। 1962 से अस्तित्व में आई ये विधानसभा शुरू से ही रिजर्व कोटे के रूप में रही है। विधानसभा पर कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस काबिज रही लेकिन कभी किसी पार्टी का गढ़ नहीं रही। इस सीट पर चेहरे भी बदलते रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस अपने जीते हुए विधायकों की भी टिकटें काटती रही है और उसका ये प्रयोग सफल भी रहा। 2008 में जीतने वाले रामदेव राम के साथ भी ऐसा ही हुआ, लेकिन पहली बार टिकट पाने वाले चिंतामणी भी 10 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत कर विधानसभा पहुंच गए ।
अब एक बार फिर चुनाव नजदीक है तो बीजेपी की तरफ से विजयनाथ सिंह फिर से टिकट के लिए दावा कर रहे हैं। हालांकि दो बार चुनाव हारने के बाद उनका दावा कमजोर दिखाई दे रहा है तो वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष फुलेश्वरी सिंह पैंकरा और अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और अंबिकापुर के पूर्व महापौर प्रबोध मिंज भी बीजेपी के दावेदारों में शामिल हैं ।
लुंड्रा विधानसभा में इस बार जातिगत समीकरण पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही नजरें गढ़ाए हुए हैं। गहिरागुरू के पुत्र होने की वजह से कंवर समाज का पूरा समर्थन चिंतामणि सिंह को है। लेकिन क्षेत्र में उरांव और मसीही समाज का भी खासा दखल है, यही वजह है कि बीजेपी के लिए 10 साल तक महापौर की पारी खेलने वाले प्रबोध मिंज का दावा भी मजबूत नजर आ रहा है। वहीं क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य फुलेश्वरी सिंह पैंकरा और पूर्व विधायक विजयनाथ सिंह भी अपनी दावेदारी में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
लुंड्रा विधानसभा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो यहां की राजनीति भी बड़ी दिलचस्प है। यहां कभी भी लंबे समय तक एक दल का कब्जा नहीं रह सका है। क्षेत्र की जनता विकास और विश्वास के आधार पर विधायक चुनती है और संतुष्ट ना होने पर कुर्सी से नीचे भी उतार देती है। लंबे समय से यहां बीजेपी और कांग्रेस कुर्सी के लिए उठापटक करते नजर आए हैं और जनता भी बारी–बारी से दोनों ही दलों को मौका देती आई है।
सरगुजा जिले की लुंड्रा विधानसभा सीट आदिवासियों के लिए रिजर्व है। पहले इस विधानसभा में अंबिकापुर क्षेत्र भी आता था, लेकिन परिसीमन के बाद अंबिकापुर शहर को अलग करते हुए लुंड्रा विधानसभा की नई सीमाएं तैयार की गई। लुंड्रा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1962 में अस्तित्व में आई इस सीट पर जनसंघ के आत्मा राम इंगोले पहले विधायक चुने गए। फिर 1967 और 1972 में कांग्रेस के चमरू राम यहां से चुनाव जीते। 1977 में जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस चुनाव हारी और जनता पार्टी के आसन राम चुनाव जीते। इसके बाद 1980 से 1990 तक लगातार दो बार कांग्रेस के भोला सिंह यहां से चुनाव जीते। 1990 में यहां पहली बार बीजेपी का खाता खुला और रामकिशन सिंह विधायक चुने गए। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के भोला सिंह को जीत मिली। 1998 में कांग्रेस ने टिकट बदलते हुए पूर्व विधायक चमरू राम के बेटे रामदेव राम को टिकट दिया, जिन्होंने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2003 में कांग्रेस की जीत का सिलसिला टूटा और बीजेपी के विजयनाथ सिंह ने मात्र 42 वोट से कांग्रेस को हराया। 2008 में बीजेपी ने कमलभान सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन रामदेव राम ने इस बार बाजी मार ली। 2013 में कांग्रेस ने कंवर समाज के अगुवा चिंतामणि सिंह को टिकट दी जिन्होंने बीजेपी के विजयनाथ सिंह को करारी मात दी। कांग्रेस को इस बार जहां 84 हजार 825 वोट मिले। वहीं बीजेपी को सिर्फ 64 हजार 771 वोट ही मिल पाए।
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लुंड्रा विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण इलाका माना जाता है, लेकिन ये अंबिकापुर की नगर निगम की सीमा को भी छूता है। लुंड्रा में इस बार 1 लाख 73 हजार 488 मतदाता चुनाव में प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला करेंगे। जिसमें उरांव, कंवर और गोंड जनजाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं।
वेब डेस्क, IBC24