लखनऊ, 28 मार्च (भाषा) उत्तराखंड की नवनिर्वाचित भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता लागू करने की प्रक्रिया शुरू किए जाने पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) का कहना है कि न केवल मुसलमानों बल्कि अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी सामान्य नागरिक संहिता को लेकर आपत्ति है और जमीनी हकीकत यह है कि यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यकारी समिति की रविवार को हुई बैठक में कर्नाटक में हाल में हुए हिजाब विवाद पर भी चर्चा हुई और कहा कि वह इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में मजबूती से लड़ेगी।
बोर्ड की कार्यकारी समिति की बैठक में शामिल हुए एक वरिष्ठ सदस्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर चर्चा हुई और कहा गया कि मिजोरम और अन्य जगहों पर पहले से ही आदिवासी कानून हैं, इसके अलावा बहुसंख्यक समुदाय के भीतर भी अलग-अलग कानून हैं और धार्मिक समुदायों के भी अलग-अलग कानून हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान ने पहले ही सभी को अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराओं को बनाए रखने का अधिकार दिया है। कोई भी प्रथा, परंपरा या कानून पूरे देश में संवैधानिक रूप से या भारत के लोकाचार के आधार पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।’’
सदस्य के अनुसार, ‘‘बोर्ड ने हमेशा इस रुख को बनाए रखा है, एक राज्य समान नागरिक संहिता कैसे लागू कर सकता है?’’
पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में, यह निर्णय लिया गया कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए विशेषज्ञों के पैनल का नेतृत्व उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा।
धामी ने कहा, ‘‘कैबिनेट ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन पर जल्द से जल्द विशेषज्ञों की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी है।’’
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की स्थापना 1973 में भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा और निरंतर प्रयोज्यता, खास तौर से ‘शरीयत’ की सुरक्षा और प्रयोज्यता के लिए उपयुक्त रणनीति अपनाने के लिए की गई।
बोर्ड में अधिकांश मुस्लिम संप्रदायों प्रतिनिधित्व है और इसके सदस्यों में भारतीय मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों जैसे धार्मिक नेताओं, विद्वानों, वकीलों, राजनेताओं और अन्य पेशेवरों के प्रमुख मुस्लिम शामिल हैं।
रविवार को इसके अध्यक्ष राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में कार्यकारिणी की बैठक के दौरान नियमित मुद्दों को उठाने के अलावा, हाल के हिजाब मुद्दे पर भी चर्चा हुई और यह संकल्प लिया गया कि इसे उच्चतम न्यायालय में दृढ़ता से ले जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बोर्ड पहले ही इस मुद्दे पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा चुका है। उन्होंने बताया कि बैठक में कहा गया कि सभी सरकारी संस्थानों को पता होना चाहिए कि किसी भी धार्मिक मुद्दे पर, उस धर्म के विशेषज्ञों से परामर्श करने की आवश्यकता है।
इस मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों के एक मत होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि बोर्ड ने कर्नाटक उच्च न्यायालय से भी अपील की है कि उच्चतम न्यायालय के अंतिम फैसले तक मुस्लिम लड़कियों को स्कूल जाने और हिजाब के साथ उनकी परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिए। यदि लड़कियों को परीक्षा देने से रोका जाता है तो यह उनकी शिक्षा, प्रगति और भविष्य में बाधा उत्पन्न करेगा। उन्होंने कहा कि उन्हें उनकी शिक्षा से रोकना सरकार के मानदंडों के खिलाफ होगा और इसलिए उन्हें हिजाब के साथ परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जानी चाहिए।
भाषा संगीता आनन्द अर्पणा
अर्पणा
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