बगीचे के घोंघे के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाकर बरकरार रख सकते हैं पारिस्थितिकी तंत्र |

बगीचे के घोंघे के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाकर बरकरार रख सकते हैं पारिस्थितिकी तंत्र

बगीचे के घोंघे के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाकर बरकरार रख सकते हैं पारिस्थितिकी तंत्र

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:48 PM IST, Published Date : May 13, 2022/5:06 pm IST

(बेथानी टर्नर कैनबरा विश्वविद्यालय और वैलेरी कैरोन, सीएसआईआरओ)

कैनबरा, 13 मई (द कन्वरसेशन) अपने बगीचे में घोंघे या ‘स्लग’ को देखकर उसे मारने से पहले इस पर गौर कीजिये कि ब्रिटेन की ‘रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी’ ने इन जीवों को ‘कीट’ की श्रेणी से हटा दिया है। बागवानी से संबंधित इतने बड़े संगठन ने यह निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि घोंघे प्रकृति का एक अंग हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

घोंघों की खासियत है कि अत्यंत धीमी गति से चलने वाले ये प्राणी ऑर्गेनिक पदार्थों को उनके घटक तत्वों में तोड़ देते हैं और नीली जीभ वाली छिपकली, मेढक और कुकाबरा जैसे जीवों को भोजन का स्रोत मुहैया कराते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या हम धरती पर मंथर गति से चलने वाले स्लग और घोंघे के साथ जीना सीख सकते हैं? जी हां, बिलकुल, अगर हम इनके प्रति अपना दृष्टिकोण बदल लें तो क्यों नहीं सीख सकते।

वैसे भी “कीट” की हमारी परिभाषा हमारे नजरिये पर आधारित है और यह समय के साथ बदल सकती है। रेंगने वाले कई जंतुओं को “कीट” की श्रेणी से हटाने और पर्यावरण के अनुकूल बागवानी करने की वकालत कर हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी ने स्थानीय तौर पर बागवानी करने वालों को वैश्विक जैव विविधता के संकट से जोड़ दिया है। संस्थान से जुड़े कीट विज्ञानी एंड्र्यू सैलिसबरी ने कहा कि “अब समय आ गया है कि हमारे बगीचों में मौजूद जीवन के इस प्रकार को सहजता से स्वीकार किया जाए तथा प्रोत्साहित किया जाए।”

इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि घोंघों को हमारी सब्जियों को नष्ट करने दिया जाए। प्रकृति इसमें हमारी मदद कर सकती है। अपने बगीचे में छिपकली, मेंढक और पक्षियों को बढ़ावा देने से स्लग और घोंघों पर नियंत्रण पाया जा सकता है और जैव विविधता को प्रोत्साहन मिल सकता है।

वैसे भी कोविड महामारी के दौरान जब कोरोना वायरस के संक्रमण से भयभीत हो कर लोग लॉकडाउन के चलते घरों में रहने को मजबूर हुए तब बागवानी की लोकप्रिता में वृद्धि हुई और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर बारिश के कारण बगीचों में घोंघों और स्लग की आमद भी खासी बढ़ गई। तो क्या ऑस्ट्रेलिया में बागवानी करने वालों को ब्रिटेन के उदाहरण पर चलना चाहिए? क्या हमें बगीचे में हर प्रजाति का स्वागत करना चाहिए?

इन प्रश्नों के उत्तर में प्रायः घोंघों और स्लग को “कीट” बताया जाता है, उनके मूल निवासी होने या नहीं होने के तर्क दिए जाते हैं या उनके द्वारा किये गए नुकसान को लेकर बात की जाती है। हम कीटों को दृष्टिकोण के आधार पर परिभाषित करते हैं।

इसका अर्थ है कि हम कीटों के बारे में जो सोचते हैं उसमें बदलाव हो सकता है। बगीचे का घोंघा इसका एक अच्छा उदाहरण है। बहुत से बागवानी करने वाले इन्हें कीट मानते हैं लेकिन जो किसान मनुष्यों के खाने के लिए घोंघे का पालन करते हैं उन्हें यह जीव अच्छे लगते हैं।

सामान्य तौर पर बगीचे में पाये जाने वाले घोंघे मूल रूप से भूमध्य सागर से आते हैं जो अब हर देश, राज्य और क्षेत्र में फैल गये हैं। लेकिन इनकी अन्य प्रजातियां अभी भी फैल रही हैं, जैसे पूर्वी तट पर मिलने वाला एशियाई घोंघा या हरा घोंघा, जो वर्तमान में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक सीमित है। इसलिए यदि हम बगीचे में सभी प्रकार के घोंघे और स्लग के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, तो हम इनमें से कुछ प्रजातियों का पता लगाने और उन्हें नियंत्रित करने के प्रयासों को निश्चित रूप से कमजोर कर सकते हैं।

एक ओर जहां स्लग और घोंघे हमारे बगीचों के लिए गंभीर खतरा नहीं होते वहीं इसकी कुछ प्रजातियों को कृषि कीट के रूप में जानी जाती हैं। बगीचे में पाया जाने वाला सामान्य घोंघा खट्टे और साइट्रस फलों तथा छोटे पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है, लेपर्ड स्लग या ग्रे फील्ड स्लग जैसे रोपाई के लिए डाले गए बीजों को नष्ट कर सकते हैं। वे जो नुकसान कर सकते हैं उसकी वजह से किसान और उनसे संबद्ध निकाय भूमि के इन मोलस्क जीवों के बारे में हमारे विचार को बदलने के बारे में असहज महसूस करेंगे।

कुछ घोंघे खतरनाक परजीवियों के वाहक भी हो सकते हैं। अगर ऐसे घोंघे का सेवन किया जाए या इनके द्वारा बगीचे में दूषित सब्जियों का सेवन किया जाए तो हमें नुकसान हो सकता है। ऐसे घोंघे इधर-उधर जा कर संक्रमण और फैला सकते हैं और इससे पालतू जानवरों तथा बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा होता है।

बहरहाल, इनकी वजह से होने वाले फायदों को देखें और पारिस्थितिकी तंत्र को बरकरार रखने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका के मद्देनजर ये मोलस्क जीव बगीचों के लिए तो बेहद ही उपयोगी हैं।

(द कन्वरसेशन) यश मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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