रायपुर। पीसीसी चीफ भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ कांग्रेस विधायकदल का नेता चुन लिया गया है। उन्होंने पांच साल अध्यक्ष रहते हुए सरकार के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक की लड़ाई लड़ी। इसी का नतीजा है कि उन्हें सीएम की कुर्सी के लिए पहला हकदार माना जा रहा था। आइए जानते हैं, उनकी सियासी पारी के बारे में।
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आइए नजर डालते हैं भूपेश बघेल के सियासी सफर पर
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा चेहरा भूपेश बघेल हैं। जिन्होंने लंबे समय तक पार्टी के लिए सड़कों पर संघर्ष किया है। बघेल ने सिर्फ रमन सिंह सरकार के खिलाफ ही नहीं बल्कि अजीत जोगी की नई पार्टी से मिली चुनौती के आगे भी डटे रहे। 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत हासिल की।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले भूपेश बघेल राजनीतिक गलियारे में अपने आक्रामक तेवर के लिए जाने जाते हैं। जीरम हमले के बाद कांग्रेस ने 2014 में भूपेश बघेल को पार्टी की कमान सौंपी। 23 अगस्त 1961 को दुर्ग जिले के पाटन में जन्मे बघेल राजनीति में अपनी तेजतर्रार छवि और तेवर के लिए जाने जाते हैं। सदन और सड़क में आक्रामक राजनीति उनकी पहचान है। 1985 में यूथ कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले भूपेश बघेल कुर्मी जाति से आते हैं।
1996 से छत्तीसगढ़ मनवा कुर्मी समाज के संरक्षक हैं। 1993 में पहली बार पाटन विधानसभा से विधायक चुने गए। दिग्विजय सिंह और अजीत जोगी की सरकार में मंत्री रहे भूपेश 2003 में विपक्ष के उपनेता बने। हालांकि 2008 में पाटन में विजय बघेल से चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाते रहे। कांग्रेस को गहरी हताशा और निराशा से उबारकर आज 68 सीटों के साथ प्रदेश में सरकार बनाने में उनका सबसे बड़ा योगदान है। एक बार फिर अपने गढ़ पाटन से उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता और सिंहदेव, महंत के साथ ताम्रध्वज को एकजुट कर पूरे प्रदेश में कांग्रेस को लहर बना।
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