सियासतदारों का बाबा प्रेम या बाबाओं का सियासत प्रेम   | BLOG:

सियासतदारों का बाबा प्रेम या बाबाओं का सियासत प्रेम  

सियासतदारों का बाबा प्रेम या बाबाओं का सियासत प्रेम  

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 06:20 AM IST, Published Date : July 5, 2018/11:30 am IST

सियासतदारों का बाबा प्रेम कोई नई बात नहीं है। अक्सर देखने-सुनने में आता है कि राजनीति से जुड़े लोग पद पाने के लिए तरह-तरह के टोटको और तंत्र मंत्र का सहारा लेते हैं। हालांकि ऐसे काम गुपचुप तरीके से ज्यादा होते हैं। लेकिन लगता है कि अब तो ऐसे कार्यों को चुपचाप करने की अनिवार्यता भी खत्म हो गई है, क्योंकि अब तो लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में खुलेआम तंत्र मंत्र का कथित प्रयोग शुरू हो गया है। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ विधानसभा की, जहां पिछले दो दिनों से एक तांत्रिक बाबा चर्चा में बने हुए हैं।

तांत्रिक बाबा की बातों पर भरोसा करें, तो वे बीजेपी की चौथी बार सरकार बनाने के लिए ‘विधानसभा को बांधने’ आए थे। गौर करने लायक बात यह है कि तांत्रिक बाबा ने तमाम बड़े नेताओं के साथ मुलाकात कर तस्वीर भी खिंचवाई। बीजेपी की सरकार बनाने में बाबा के तंत्र मंत्र का कितना असर पड़ता है, यह एक अलग मुद्दा है, लेकिन ऐसे में सवाल यह उठना लाजिमी है कि क्या विकास और तकनीक के इस युग में इस तरह के कार्यों के लिए स्थान होना चाहिए? वैसे भी छत्तीसगढ़ को पिछड़ा और रुढिवादी राज्य माना जाता रहा है। यहां पहले से अंधविश्वास और टोनही प्रथा को काफी महत्व दिया जाता है। 

सरकारें अंधविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ जागरूक करने लाखों-करोड़ों रुपए खर्च भी कर रही हैं। अगर ऐसे माहौल में सरकार के नुमाइंदे खुद इस तरह के काम करेंगे, तो स्वाभाविक है कि आम जनता के बीच गलत संदेश जाएगा। पहले भी सूबे के प्रमुख लोगों के गाड़ियों के नंबर और कमरों की दशा-दिशा का निर्धारण तांत्रिकों व बाबाओं द्वारा करने की खबरें आती रही हैं। इतना ही नहीं, पार्टियों के भवनों में शुभ-अशुभ का फेर भी देखा गया है। लेकिन लोकतंत्र के मंदिर में ऐसी घटना ने पढ़े लिखे और विकसित समाज को एक बार सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर ऐसी तरक्की हमारी किस काम की है।  

दरअसल, सियासतदारों का बाबा प्रेम एकतरफा नहीं है, बल्कि बाबाओं का सियासत प्रेम ऐसी समस्याओं की जड़ है। बाबाओं और धर्म गुरुओं की सियासत में दिलचस्पी बढ़ने के कारण भी ऐसे किस्से सुनने देखने को मिलते हैं। यहां भी तांत्रिक बाबा कोई और नहीं, बल्कि बीजेपी का मंडल अध्यक्ष है। संभव है कि दोनों ओर से सत्ता सुख की इच्छा बड़ा कारण है। जबकि दोनों के अलग-अलग कार्य और दायित्व हैं। सनातन राजतंत्र में भी यह व्यवस्था थी कि अनुष्ठान राजपाठ पाने के लिए नहीं, बल्कि प्रजातंत्र के हित के लिए हुआ करते थे। धर्म-कर्म और राजपाठ दोनों से जुड़े लोग अपने-अपने क्षेत्र के लिए काम करते थे, लेकिन मौजूदा व्यवस्था में सत्ता के लिए इस गठजोड़ और तंत्र-मंत्र से व्यक्तिगत नफा नुकसान की ज्यादा अहमियत हो गई है। इससे व्यवस्था भी बिगड़ रही है और लोकतंत्र के मंदिर का स्वरूप भी खंडित हो रहा है।

 

 

समरेन्द्र शर्मा, कंटेंट हेड, IBC24

 
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